लखीमपुर खीरी : नेपाल से हर साल भारत आने वाले जंगली हाथियों ने नेपाल को बाय बाय कह दिया है. वे भारत के जंगलों से इश्क कर बैठे हैं. दुधवा टाइगर रिजर्व उन्हें रास आ गया है. इसकी वजह से उन्होंने हमेशा के लिए यहां अपना ठिकाना बना लिया है. यहां ये एशियाई हाथी अपना परिवार भी बढ़ा रहे हैं.
हर साल उत्तर प्रदेश के तराई के जंगलों में नेपाल के घुमंतू हाथी आते थे. इसके बाद वापस चले जाते थे. अब भारत के जंगलों से ये ऐसी मोहब्बत कर बैठे कि वापस जाने को तैयार ही नहीं हैं. भारत-नेपाल के बीच जंगलों से सटी सीमा है. यह कई सालों से हाथियों के आने-जाने का रास्ता रहा है. नेपाल और भारत की बढ़ती आबादी और जंगलों के किनारे तक मानवीय घुसपैठ ने हाथियों के लिए मुश्किलें पैदा कर दीं.
जंगली हाथियों ने बदला रास्ता : जंगलों के पास पिछले दो दशकों में कई नए गांव बस गए तो हाथियों ने भी अपने रास्ते बदल दिए. वाइल्ड लाइफ के जानकार मोहम्मद शकील बताते हैं कि हाथी बेहद शांत और सौम्य जानवर होता है. अपने कुनबे की सुरक्षा को लेकर बेहद सतर्क होता है. अभी तक हाथी नेपाल के वर्दिया पार्क से चलकर उत्तराखंड के राजाजी नेशनल पार्क तक जाते थे. ये उसका भोजन का रूट होता था, लेकिन पिछले कई सालों से वे दुधवा और भारत के जंगलों में खुद को ज्यादा बेहतर महसूस करने लगे हैं.
हमेशा समूहों में नजर आते हैं हाथी : हाथी सामाजिक जानवर होता है. इसीलिए वो समूहों में रहते हैं. दुधवा टाइगर रिजर्व हो या पीलीभीत टाइगर रिजर्व या उत्तराखण्ड तक फैले तराई के जंगल, हर जगह हाथी समूहों में ही नजर आते हैं. नेपाल से सटे भारत के उत्तर प्रदेश के तराई के जंगल हाथियों की पसंदीदा जगह है. दुधवा टाइगर रिजर्व के कतर्नियाघाट,दुधवा और किशनपुर सेंचुरी से लेकर पीलीभीत टाइगर तक में हाथी विचरण करते नजर आते हैं.
एशियाई हाथियों की संख्या ज्यादा : भारत में हाथियों की कोई पक्की गिनती नहीं है. न ही कोई ऐसा डेटाबेस है जिससे हाथियों की वास्तविक संख्या का पता चल सके. एक अनुमान के मुताबिक भारत में इस वक्त 27 हजार ऐशियाई हाथी मौजूद हैं. सीनियर आईएफएस अधिकारी रमेश कुमार पांडेय कहते हैं कि हाथियों की गिनती का कोई मैकेनिज्म नहीं है. भारत में सबसे बड़ी तादाद में एशियाई हाथी मौजूद हैं. जंगलों के लिए हाथी उतने ही जरूरी है जितने टाइगर या कोई अन्य वन्य जीव. हाथियों को जंगलों का इंजीनियर कहते हैं. हाथी जंगल गढ़ते हैं.
14 घंटे भोजन ढूंढते हैं हाथी : दिन में 24 घंटे होते हैं. जंगली हाथी कम से कम 14 घंटे अपना भोजन खोजने और खाने में लगाते हैं. हाथी एक बड़ा जानवर है. ऐसे में उसे भोजन की भी खूब जरूरत होती. इसमें सबसे महत्वपूर्ण रोल निभाता है हाथी दल का लीडर. वह अनुभवी भी होता, और ताकतवर भी होता है. अपने दल की सुरक्षा के लिए मतलब भर का ताकतवर भी. हाथी खतरे को तुरंत भांप जाते हैं.
हाथियों को क्यों पसंद है दुधवा की आबोहवा : जंगली घुमंतू हाथियों और नेपाल से आने वाले हाथियों को दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगल क्यों पसन्द हैं, ये सवाल बार-बार आता है. पिछले कई सालों से जंगली हाथियों ने दुधवा को अपना स्थायी ठिकाना बना लिया है. डब्लूडब्लूएफ के कोआर्डिनेटर मुदित गुप्ता कहते हैं कि किसी भी जानवर को सबसे पहले सुरक्षित आवास चाहिए होता है फिर पर्याप्त भोजन. ये दोनों ही चीजें दुधवा के जंगलों में आसानी से मिल जाते हैं. नेपाल के वर्दिया और शुक्लाफांटा से भारत के दुधवा टाइगर रिजर्व या पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगलों में आने वाले हाथी अब वापस नहीं जा रहे हैं.
दुधवा में हाथियों ने जमकर उड़ाई दावत
लखीमपुर खीरी: दुधवा टाइगर रिजर्व में विश्व हाथी दिवस पर सोमवार को हाथियों ने जमकर दावत उड़ाई. हाथियों को उनका पसंदीदा भोजन केला और गन्ना खिलाया गया, साथ ही गुड़ और मोटी मोटी रोटियां भी खाने को दिया गया. दुधवा के डिप्टी डायरेक्टर रंगाराजू टी. ने अच्छा काम करने वाले महावतों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया. दुधवा के डिप्टी डायरेक्टर रंगाराजू टी. ने कहा कि हाथियों को जो खाना पसंद है उसी का मेन्यू बनाया गया. लेकिन साथ में यह ध्यान रखा गया है कि भोजन पौष्टिक भी हो. बता दें कि, दुधवा टाइगर रिजर्व में जंगल की सुरक्षा में पालतू हाथियों का दल तैनात है. विश्व हाथी दिवस पर 25 छोटे बड़े इन्हीं गार्ड हाथियों को रिजर्व प्रशासन की तरफ से दावत दी गई
हाथियों को खिलाए गुड़ और फल
बहराइच: यूपी के बहराइच जिले के बिछिया में विश्व हाथी दिवस पर सोमवार को कतर्नियाघाट के घड़ियाल सेंटर पर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की ओर से फल कार्यक्रम का आयोजन किया गया. वन क्षेत्राधिकारी कतर्नियाघाट रामकुमार ने करीब 30 गजमित्रों और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के साथ मिलकर जयमाला और चम्पाकली को सेब,केला और गुड़ खिलाया गया. इस दौरान महावत मोहर्रम अली और विनोद ने जयमाला और चम्पाकली को सजाया.
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