जयपुर. संस्कृति के प्रचार-प्रसार और संरक्षण के लिए 21 मई को देशभर में सांस्कृतिक विविधता दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन पूरे विश्व में अलग-अलग देशों की सांस्कृतिक महत्व को दर्शाने के लिए, उनकी विविधता को जानने और प्रचार-प्रसार के साथ उसके संरक्षण के लिए मनाया जाता है. इसी तरह की संस्कृति से सराबोर राजस्थान भी है. मरुप्रदेश के लिए कहा भी जाता है कि यहां कोस कोस पर बोली और पानी बदला जाता है और हर अंचल का अपना खान-पान और पहनावा है. यहां की संस्कृति इस कदर रंग रंगीली है कि हर कोई खींचा चला आता है, लेकिन धीरे-धीरे आधुनिकता की दौड़ ने इस संस्कृति को धूमिल करना शुरू कर दिया है. तीज-त्योहार, रीति-रिवाज बदलने लगे हैं. ऐसे में संस्कृति से जुड़े एक्सपर्ट भी इसको लेकर चिंतित हैं, उन्हें भी लगता है कि आधुनिकता की दौड़ के बीच युवाओं को संस्कृति से जोड़ना जरूरी है, नहीं तो परम्पराएं लुप्त होती जा रही हैं.
क्यों और कब मनाया जाता है : राजस्थानी भाषा पर लम्बे समय से राजस्थानी संस्कृति और संरक्षण को लेकर काम काम कर रही मनीषा सिंह कहती हैं कि विश्व में सांस्कृतिक विविधता दिवस 21 मई को मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य विश्व में अलग-अलग देशों की सांस्कृतिक महत्व को दर्शाने और उनकी विविधता को जानना है. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पहली बार 2002 में इस दिवस की घोषणा की थी. इसके बाद ये दिन मनाया जाने लगा. इस दिन सभी देश अपनी अलग भाषा, अलग परिधान और अलग-अलग सांस्कृतिक विशेषताओं को सेलिब्रेट करते हैं. किस तरह से ज्यादा से ज्यादा संस्कृति का प्रचार प्रसार कर सकते हैं उस पर काम किया जाता है.
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संस्कृति के प्रति जागरूकता जरूरी : मनीषा ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति भी विविधता की परिचायक है. इतनी अधिक विविधताओं के बावजूद भी भारतीय संस्कृति में एकता की झलक दिखती है. माना जाता है कि विश्व में मनाए जाने वाले अधिकतर पर्वों का जन्म भारतीय संस्कृति के मध्य से ही हुआ है. भारतीय संस्कृति न सिर्फ स्मारकों और कला वस्तुओं का संग्रहण है, बल्कि यह अनेक परंपराओं और विचारों का संग्रहण है. भारतीय संस्कृति एक ऐसे खजाने की तरह है जो कभी भी खत्म नहीं हो सकती और पीढ़ी दर पीढ़ी यह विरासत के रूप में बस बढ़ती ही रहती है, बशर्ते इससे युवा पीढ़ी को जोड़कर रखा जाए. मनीषा कहती हैं कि पिछले कुछ सालों में आधुनिकता के इस दौर में युवा पीढ़ी कहीं न कहीं हमारी संस्कृति से दूर होती जा रही. इसीलिए मान द वैल्यू फाउंडेशन की कोशिश होती है कि छोटे-छोटे कार्यक्रमों के जरिए युवा पीढ़ी की जोड़ा जाए.
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संस्कृति का खजाना : लम्बे समय से राजस्थानी भाषा और साहित्य पर काम कर रही अभिलाषा पारीक कहती हैं कि राजस्थान संस्कृति के लिहाज से कभी खत्म न होने वाला खजाना है. यहां का साहित्य, संगीत, तीर्थ स्थल, धर्मों, भाषाओं, बोलियों और विभिन्न नृत्य शैलियों की अद्भुत संग्राहक है. अगर राजस्थानी संस्कृति की विरासत को इसी तरह आगे बढ़ाना है तो बस जरूरत है इसे और संजोने की. इसे संरक्षित रखने की. इसकी अहमियत दुनिया को बताने की. अभिलाषा पारीक ने कहा कि राजस्थानी भाषा में मिठास है सभी को अपनी मायड़ भाषा में बात करनी चाहिए, युवाओं को संस्कृति से जोड़कर पर्यटन में उन्हें रोजगार के अवसर दिए जाने चाहिए. घूमर नृत्य में पारंगत प्रिया महेचा ने बताया कि घूमर नृत्य और लोकनृत्य में बहुत अंतर है. उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी को स्कूली शिक्षा में राजस्थानी संस्कृति, तीज त्योहार, परम्पराओं के बारे में पढ़ने की जरूरत है.