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बौद्धिक संपदा का फायदा आम लोगों तक कैसे पहुंचता, जानिए - LOHIA LAW UNIVERSITY LUCKNOW

डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्विद्यालय की कार्यशाला में विषय विशेषज्ञों ने रखे विचार.

लोहिया विधि विश्विद्यालय में वक्ताओं का सम्मान.
लोहिया विधि विश्विद्यालय में वक्ताओं का सम्मान. (Photo Credit : ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 6, 2025, 8:46 AM IST

लखनऊ : डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के डीपीआईआईटी और आईपीआर चेयर द्वारा दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस अवसर पर संपत्ति संरक्षण, कानून समेत तमाम पहलुओं पर चर्चा की गई. कार्यशाला में चार तकनीकी सत्रों में प्रतिष्ठित वक्ताओं ने प्रतिभागियों को आईपीआर के विभिन्न विषयों आईपीआर आवेदन से लेकर फाइलिंग एवं मैनेजमेंट आदि की जानकारी दी.

कार्यशाला के दूसरे दिन वक्ता डॉ. विकास भाटी निदेशक आईपी प्रिसाइस सेंटर फ़ॉर आईपीआर ने बौद्धिक संपदा प्रबंधन के विषय पर चर्चा की. उन्होंने बताया कि कहा कि बौद्धिक संपदा "नॉन एक्सक्लूडेबल" है. इसका मतलब है कि एक बार उत्पादित होने पर, यह सभी के लिए उपलब्ध है क्योंकि किसी को भी उस वस्तु के उपभोग से बाहर करना संभव नहीं है. आईपीआर की सुरक्षा करना इसीलिए भी आवश्यक है क्योंकि बाज़ार की त्रासदी यही है कि यदि आईपी सभी को उपलब्ध हो जाए तो कोई भी उसकी प्रति बनाकर कम मूल्य में बेचा जा सकता है.

आईपी मैनेजमेंट की प्रक्रिया आपके शोध करने से पहले ही शुरू हो जाती है. वह तब शुरू होती है जब आप यह तय करते हैं कि शोध करना है या नहीं. उन्होंने बताया कि सही प्रकार की बौद्धिक संपदा का चयन करना महत्वपूर्ण होता है जैसे की पेटेंट आविष्कारों के लिए कॉपीराइट रचनाओं के लिए आदि एवं कॉपीराइट का दावा करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह रजिस्टर्ड/पंजीकृत हो. उन्होंने आईपीआर के बारे में कई रोचक तथ्य भी बताए जैसे की जीवाणु ऐसी इकलौती जीवित इकाई है जिसे पेटेंट कराया जा सकता है और उपचार की प्रकिया का पेटेंट नहीं कराया जा सकता है.



आईपी मैनेजमेंट के दो दृष्टिकोण हैं, रिसर्च पुश और मार्केट पुश. मार्केट पुश का अर्थ है कि इसमें आर्थिक लाभ प्राथमिक होता है. शोध व्यवसायिक अवसरों से प्रेरित होता है. व्यावसायिक अवसरों का विश्लेषण शोध से पहले करना होता है. रिसर्च पुश में किसी तकनीकी प्रश्न का उत्तर जानने के लिए शोध होता है. इसमें शोध का महत्व आर्थिक लाभ से ज्यादा होता है. आईपी मूल्यांकन के बारे में उन्होंने बताया कि यह बौद्धिक संपदा के मूल्य को निर्धारित करने की एक प्रक्रिया है. आईपी को परिभाषित करना मुश्किल हो सकता है और उचित मूल्य निर्धारण करना और भी मुश्किल हो सकता है.


कार्यशाला के समापन समारोह में आईपीआर चेयर के अध्यक्ष प्रो. मनीष सिंह ने बताया कि बौद्धिक संपदा का दायरा समय के साथ बढ़ रहा हैं. भारत ने पेटेंट, ट्रेडमार्क और औद्योगिक डिजाइन के लिए शीर्ष 10 देशों में स्थान हासिल करके बौद्धिक संपदा फाइलिंग में वैश्विक नेता के रूप में अपनी स्थिति मजबूत कर ली है. यह उपलब्धि भारत की बढ़ती नवाचार क्षमता को रेखांकित करती है. देश पेटेंट आवेदनों, ब्रांड संरक्षण और डिजाइन नवाचारों में उल्लेखनीय प्रगति कर रहा है. विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) के वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2024 में भारत की उल्लेखनीय प्रगति बौद्धिक संपदा में उभरते वैश्विक नेता के रूप में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालती है. पेटेंट, ट्रेडमार्क और औद्योगिक डिजाइन में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ, भारत वैश्विक नवाचार का केंद्र बन रहा है. कार्यशाला में प्रदेश भर से 15 से अधिक संस्थानों से प्रतिभागियों ने कार्यशाला में शिरकत की. वहीं कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली समेत अन्य शहरों से लोग ऑनलाइन प्रतिभागी जुड़े.


कार्यशाला में आईपीआर चेयर के अध्यक्ष प्रो. मनीष सिंह, सेंटर के निदेशक डॉ. विकास भाटी, आईपीआर चेयर के शोध सहायक ऋषि शुक्ला, हिमांशी तिवारी, अरुणिमा सिंह और अभिनव शर्मा समेत अन्य लोग मौजूत रहे.



यह भी पढ़ें : उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा-नई शिक्षा नीति थ्योरी के साथ प्रैक्टिकल पर भी केंद्रित - लोहिया विधि विश्विद्यालय की खबर
यह भी पढ़ें : Rahul Gandhi disqualification : राहुल गांधी को अयोग्य ठहराये जाने के विरोध में हंगामा कर रहे 16 कांग्रेसी विधायक गुजरात विधानसभा से निलंबित - Gujarat Assembly

लखनऊ : डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के डीपीआईआईटी और आईपीआर चेयर द्वारा दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस अवसर पर संपत्ति संरक्षण, कानून समेत तमाम पहलुओं पर चर्चा की गई. कार्यशाला में चार तकनीकी सत्रों में प्रतिष्ठित वक्ताओं ने प्रतिभागियों को आईपीआर के विभिन्न विषयों आईपीआर आवेदन से लेकर फाइलिंग एवं मैनेजमेंट आदि की जानकारी दी.

कार्यशाला के दूसरे दिन वक्ता डॉ. विकास भाटी निदेशक आईपी प्रिसाइस सेंटर फ़ॉर आईपीआर ने बौद्धिक संपदा प्रबंधन के विषय पर चर्चा की. उन्होंने बताया कि कहा कि बौद्धिक संपदा "नॉन एक्सक्लूडेबल" है. इसका मतलब है कि एक बार उत्पादित होने पर, यह सभी के लिए उपलब्ध है क्योंकि किसी को भी उस वस्तु के उपभोग से बाहर करना संभव नहीं है. आईपीआर की सुरक्षा करना इसीलिए भी आवश्यक है क्योंकि बाज़ार की त्रासदी यही है कि यदि आईपी सभी को उपलब्ध हो जाए तो कोई भी उसकी प्रति बनाकर कम मूल्य में बेचा जा सकता है.

आईपी मैनेजमेंट की प्रक्रिया आपके शोध करने से पहले ही शुरू हो जाती है. वह तब शुरू होती है जब आप यह तय करते हैं कि शोध करना है या नहीं. उन्होंने बताया कि सही प्रकार की बौद्धिक संपदा का चयन करना महत्वपूर्ण होता है जैसे की पेटेंट आविष्कारों के लिए कॉपीराइट रचनाओं के लिए आदि एवं कॉपीराइट का दावा करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह रजिस्टर्ड/पंजीकृत हो. उन्होंने आईपीआर के बारे में कई रोचक तथ्य भी बताए जैसे की जीवाणु ऐसी इकलौती जीवित इकाई है जिसे पेटेंट कराया जा सकता है और उपचार की प्रकिया का पेटेंट नहीं कराया जा सकता है.



आईपी मैनेजमेंट के दो दृष्टिकोण हैं, रिसर्च पुश और मार्केट पुश. मार्केट पुश का अर्थ है कि इसमें आर्थिक लाभ प्राथमिक होता है. शोध व्यवसायिक अवसरों से प्रेरित होता है. व्यावसायिक अवसरों का विश्लेषण शोध से पहले करना होता है. रिसर्च पुश में किसी तकनीकी प्रश्न का उत्तर जानने के लिए शोध होता है. इसमें शोध का महत्व आर्थिक लाभ से ज्यादा होता है. आईपी मूल्यांकन के बारे में उन्होंने बताया कि यह बौद्धिक संपदा के मूल्य को निर्धारित करने की एक प्रक्रिया है. आईपी को परिभाषित करना मुश्किल हो सकता है और उचित मूल्य निर्धारण करना और भी मुश्किल हो सकता है.


कार्यशाला के समापन समारोह में आईपीआर चेयर के अध्यक्ष प्रो. मनीष सिंह ने बताया कि बौद्धिक संपदा का दायरा समय के साथ बढ़ रहा हैं. भारत ने पेटेंट, ट्रेडमार्क और औद्योगिक डिजाइन के लिए शीर्ष 10 देशों में स्थान हासिल करके बौद्धिक संपदा फाइलिंग में वैश्विक नेता के रूप में अपनी स्थिति मजबूत कर ली है. यह उपलब्धि भारत की बढ़ती नवाचार क्षमता को रेखांकित करती है. देश पेटेंट आवेदनों, ब्रांड संरक्षण और डिजाइन नवाचारों में उल्लेखनीय प्रगति कर रहा है. विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) के वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2024 में भारत की उल्लेखनीय प्रगति बौद्धिक संपदा में उभरते वैश्विक नेता के रूप में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालती है. पेटेंट, ट्रेडमार्क और औद्योगिक डिजाइन में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ, भारत वैश्विक नवाचार का केंद्र बन रहा है. कार्यशाला में प्रदेश भर से 15 से अधिक संस्थानों से प्रतिभागियों ने कार्यशाला में शिरकत की. वहीं कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली समेत अन्य शहरों से लोग ऑनलाइन प्रतिभागी जुड़े.


कार्यशाला में आईपीआर चेयर के अध्यक्ष प्रो. मनीष सिंह, सेंटर के निदेशक डॉ. विकास भाटी, आईपीआर चेयर के शोध सहायक ऋषि शुक्ला, हिमांशी तिवारी, अरुणिमा सिंह और अभिनव शर्मा समेत अन्य लोग मौजूत रहे.



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