रांची: झारखंड के चुनावी रण में महिलाओं की भागीदारी वक्त के साथ बढ़ा है. मगर हकीकत यह है कि अपेक्षा के अनुरूप आज भी महिला पीछे है. मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाली आधी आबादी जब चुनाव मैदान में खुद उतरती है तो जीत से काफी दूर हो जाती है. चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य गठन के बाद सर्वाधिक महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में किस्मत आजमाने आई थी.
झारखंड की सभी 14 सीटों पर 25 महिला खड़ी हुई जिसमें 02 ही जीतने में सफल हुई, शेष 23 का जमानत जब्त हो गया. इस चुनाव में जिन दो महिलाओं ने जीत का स्वाद चखा उसमें अन्नपूर्णा देवी और गीता कोड़ा शामिल हैं. इसी तरह पूर्व के चुनाव में भी महिला प्रत्याशियों की स्थिति इसी तरह बनी रही. 2004 में सिर्फ 01 सफल रही उसके बाद के 2009 और 2014 के चुनाव में कोई सफल नहीं हो पाई.
मतदान में आगे मगर चुनाव जीतने में पीछे
लोकसभा, विधानसभा या अन्य चुनावों में महिलाएं बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं. चुनाव आयोग के आंकड़ों पर नजर दौराएं तो राज्य में वर्तमान में 1,25,20,910 महिला मतदाता हैं जो इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगी. इसके अलावे अन्य लोकसभा चुनाव की अपेक्षा महिला प्रत्याशियों की संख्या भी सर्वाधिक होने की संभावना है.
मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के रवि कुमार के अनुसार हाल के वर्षों में चुनाव को लेकर महिलाओं में जागरूकता बढ़ी है चाहे वह मतदान में भागीदारी हो या खुद चुनाव लड़ने की बात हो. अपेक्षा अनुरूप महिला प्रत्याशियों की जीत कम होने की वजह बताते हुए सामाजिक कार्यकर्ता श्रेया मल्लिक कहती हैं कि राजनीति में जो भागीदारी महिलाओं की होनी चाहिए वह नहीं हो पाई है. महिलाओं के आरक्षण की बात जरूर होती है मगर जो वास्तविक हक मिलना चाहिए वो नहीं मिल पाता है यही वजह है कि महिला चुनावी रण में सफल नहीं हो पाती है.
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