सरगुजा: घर को सजाने संवारने में कालीन का अहम स्थान होता है. इस वजह से प्राचीन काल से लेकर अब तक कालीन का इस्तेमाल लगातार हो रहा है. कालीन निर्माण में भी इस वजह से उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई तरह के प्रयोग किए गए. कालीन से घर की खूबसूरती को भी चार चांद लग जाता है. छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के मैनपाट में कालीन का निर्माण होता है. यहां की महिलाएं बेजोड़ कालीन का निर्माण कर रहीं हैं. इस वजह से इनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है.
सरगुजा की दीदियां तिब्बती पैटर्न में बना रहीं कालीन: सरगुजा के मैनपाट की दीदियां तिब्बजी पैटर्न में कालीन को तैयार करती है. जिससे यह बनने के बाद बेहद खूबसूरत हो जाती है. तिब्बती कालीन जितनी खूबसूरत देखने में लगती है उतनी ही टिकाऊ भी होती होती है. खास बात है कि इस तरह के कालीन को तैयार करने में प्राकृतिक धागों का इस्तेमाल किया जाता है.
कई कलाओं में तैयार होता है कालीन: ये कालीन कई कलाओं में तैयार किया जाता है. जिसमें ड्रैगन कला, सरगुजा गोदना आर्ट और भित्तिचित्र शामिल है. इन कालीनों की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाता जा सकता है कि कि यह खादी इंडिया समेत चार अन्य ई कॉमर्स की वेबसाइट पर भी मौजूद है. सरगुजा के कालीनों को यहां पर बाजार मिल रहा है.
मिर्जापुर के कालीन उद्योग को मिली मात: सरगुजा के मैनपाट कालीन उद्योग से यूपी के मिर्जापुर कालीन बुनाई सेक्टर को मात मिल रहा है. जो कारीगर सरगुजा से मिर्जापुर और भदोही जाकर कालीन की बुनाई का काम करते थे उन्हें सरगुजा में ही रोजगार मिल रहा है. मैनपाट में बने कालीन बुनाई केंद्र से इन्हें जोड़ा गया इस तरह सरगुजा ने मिर्जापुर के कालीन सेक्टर को मात दी है.
सरगुजा शिल्प बोर्ड का कालीन को बढ़ावा देने में योगदान: कालीन सेक्टर को बढ़ावा देने में सरगुजा के शिल्प बोर्ड का अहम रोल है. जो कारीगर यूपी के मिर्जापुर और भदोही जाकर अपनी कलाकारी दिखाते थे उन्हें सरगुजा के मैनपाट में कालीन बनाने का काम मिला. इसके अलावा करीब 100 से अधिक कालीन बुनाई करने वाले कारीगरों को रोजगार से जोड़ा गया. जिससे मैनपाट का कालीन उद्योग और फलने फूलने लगा.
कालीन निर्माण में जुड़ी सरगुजा की महिलाएं: सरगुजा के मैनपाट में साल 2012 से कालीन निर्माण शुरू हुआ. मैनपाट में कालीन निर्माण 2012 में दोबारा शुरू किया गया. साल 2018 के बाद इसे जिले भर में रोजगार सृजन का माध्यम बनाया गया. जन शिक्षण संस्थान के माध्यम से युवतियों को प्रशिक्षण दिया गया. ट्रेनिंग के 7 बैच में करीब 150 महिलाओ को कालीन निर्माण सिखाया गया है. जिससे महिलाएं कालीन निर्माण की कला में पारंगत हुई.
" हर गांव में बेरोजगार लड़कियां काम के लिये भटकती हैं, लेकिन यहां आकर वो 3 महीने प्रशिक्षण लेती हैं और जब कालीन निर्माण सीख जाती हैं तो हर महीने सब 25 हजार रुपये तक कमा लेती हैं. यहां टूरिस्ट लोग आते हैं तो हम लोग उनको बताते हैं की ये कालीन हाथ से बनाया गया है तो उनको पसंद आता है और वो कालीन लेकर जाते हैं": सुगंती, कालीन निर्माण से जुड़ी महिला
"परंपरा को जीवित रखने के लिये शिल्पियों को ट्रेनिंग दिया जाता है. पहले 3 महीने की ट्रेनिंग होती है. इसे सीख लेने वालों को फिर से 6 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है. फिर इनका रजिस्ट्रेशन होता है और यहीं पर काम दिया जाता है. साइज के हिसाब से इनको पेमेंट किया जाता है. कलीन की कीमत साइज के अनुसार होती है जैसे एक 6 फीट बाई 9 फीट के कालीन की कीमत 21 हजार 200 रुपये है. इसमे 20% डिस्काउंट होता है और 5 % जीएसटी जोड़ा जाता है": कालीन उद्योग से जुड़े सेल्समैन
कालीन निर्माण से जुड़े ट्रेनर ने क्या कहा ?: कालीन निर्माण से जुड़ीं मास्टर ट्रेनर सबीना ने ईटीवी भारत से बात की. उन्होंने कहा कि"ट्राइबल युवतियों को कालीन निर्माण की ट्रेनिंग निशुल्क दी जाती है. इस प्रशिक्षण में गोदना आर्ट, भित्ति चित्र और ड्रैगन आर्ट सिखाया जाता है. ट्रेनिंग से महिलाओं को फायदा होता है उनको घर बैठे रोजगार मिल जाता है, वो कालीन बनाती हैं और जब कालीन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बिकती है तो उनको फायदा होता है"
" यहां 2018 से कालीन की ट्रेनिंग शुरू की गई जिसमे 19 से 45 वर्ष की महिलाओं को ट्रेनिंग दी जाती है. कालीन के उत्पादन और निर्माण की बात करें तो पहले कालीन निर्माण मैनपाट में तिब्बती लोग ही करते थे. उसके बाद हम लोगों ने कुछ लोगों को बनारस भेजकर कालीन निर्माण सिखाया और मास्टर ट्रेनर बनकर ट्रेनिंग देना शुरू किया. 20-20 के करीब 7-8 बैच निकाल चुके हैं. ये सभी लोग अब कालीन निर्माण से जुड़कर रोजी रोटी कमा रहे हैं": एम सिद्दीकी, डायरेक्टर, जन शिक्षण संस्थान, सरगुजा
कालीन बनाने में सरगुजा की महिलाएं हुईं माहिर: कालीन निर्माण के लिए ट्रेनिंग देने वाले एम सिद्दीकी ने बताया कि इसमें ग्रामीण और विशेष संरक्षित जनजाति के लोगों को भी जोड़ा गया है. पहले ये लोग शराब बनाने और लकड़ी कटाई के कार्य में लगे होते थे. इस कार्य में महिलाएं बढ़ चढ़कर जुड़ी हुई है. जब से इन लोगों ने कालीन बनाना सीखा है तब से इन्हें बंपर कमाई हो रही है. इन महिलाओं को स्वरोजगार शुरू करने के लिए बैंकों से लोन भी मिलता है.
इस तरह छत्तीसगढ़ के सरगुजा की दीदियां कालीन इंड्रस्ट्री के लिए पहचाने वाले मिर्जापुर और भदोही को मैनपाट से मात दे रही है. इस तरह मैनपाट के कालीन की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है.