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300 साल पुराने जल स्त्रोत के जीर्णोद्धार का महिलाओं ने उठाया बीड़ा, मीलों की दूरी नापने से मिलेगी निजात - Restoration of Water Source

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 2 hours ago

Updated : 57 minutes ago

Restoration of Water Source in Rudraprayag रुद्रप्रयाग की कोट-तल्ला गांव की महिलाओं ने 300 साल पुराने जल स्त्रोत के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया है. यह जल स्त्रोत हरियाली घाटी में बचा एक मात्र जल स्त्रोत है. इस जल स्त्रोत के उद्धार से क्षेत्र की जनता को पानी की समस्या होने पर मीलों की दूरी से निजात मिल सकेगा.

Restoration of 300 years old water source in Rudraprayag
300 साल पुराने जल स्त्रोत के जीर्णोद्धार का महिलाओं ने उठाया बीड़ा (PHOTO- ETV Bharat)

रुद्रप्रयाग: हरियाली क्षेत्र के कोट-तल्ला गांव की महिलाओं ने 300 साल पुराने पौराणिक नौला जल स्त्रोत के पुनरुद्धार का बीड़ा उठाया है. पौराणिक जल विरासत के रूप में पूरे हरियाली घाटी में मात्र एक ही नौला जल स्त्रोत बचा हुआ है. जिसके संरक्षण को लेकर ग्राम प्रधान सुमन देवी के साथ ही ग्रामीण महिलाओं ने इसके जीर्णोद्धार का कार्य शुरू कर दिया है.

जिले के विकासखंड अगस्त्यमुनि की रानीगढ़ पट्टी का हरियाली क्षेत्र चारों ओर से हरा-भरा है. लेकिन जब पानी की समस्या होती है तो ग्रामीणों को मीलों की दूरी नापनी पड़ती है. ऐसे में ग्रामीण महिलाओं ने पौराणिक नौला जल स्त्रोत के संरक्षण का जिम्मा उठाया है. हरियाली क्षेत्र के ग्राम कोट-तल्ला की 50 महिलाओं ने नौला जल स्त्रोत की साफ-सफाई करके संरक्षण की पहल शुरू कर दी है. महिलाओं ने बताया कि यह नौला स्त्रोत जल संरक्षण के रूप में उनके पूर्वजों की सौगात है. विरासत के रूप में इसके संरक्षण के लिए वे हर प्रयास करेंगे.

जल स्त्रोत के जीर्णोद्धार का महिलाओं ने उठाया बीड़ा (वीडियो- ETV Bharat)

ग्राम प्रधान सुमन देवी ने कहा कि नौला जल स्त्रोत के संरक्षण को लेकर चाल-खाल, खंतिया, रिंगाल, बड़ी इलायची, मोटा अनाज और कीवी के पौधें लगाने की योजना है. यदि विभागीय मदद मिल जाती है तो उनका यह कार्य शीघ्र सफलता की ओर अग्रसर हो जाएगा. ग्रामीण त्रिभुवन सिंह चौधरी ने कहा कि महिलाओं का यह कार्य सराहनीय है.

नौला जल स्त्रोत का संरक्षण होना, गांव की पौराणिक विरासत का उद्धार होना है. उन्होंने कहा कि इस कार्य से सभी ग्रामीणों में खुशी की लहर है और आने वाली पीढ़ी के लिए एक विरासत कायम रहेगी. नौला जल स्त्रोत संरक्षण में महिलाओं को सहयोग कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता जयकृत सिंह चौधरी ने बताया कि आज भी जब पानी की लाइन क्षतिग्रस्त हो जाती है तो गांव के लोग पानी की पूर्ति इस नौला जल स्त्रोत से करते हैं. नौला जल स्त्रोत में एक बार में लगभग 800 लीटर स्वच्छ जल उपलब्ध रहता है.

पर्यावरणविद जंगली ने की महिलाओं के प्रयासों की सराहना: पर्यावरणविद् जुगत सिंह जंगली ने खुशी जताते हुए ग्राम कोट-तल्ला की महिलाओं एवं ग्राम प्रधान की इस पहल की सराहना की. उन्होंने बताया कि जल संरक्षण के पारंपरिक स्रोत खत्म होते जा रहे हैं और ग्रामीण लोगों का ध्यान इस ओर कम जाता है. उन्होंने कहा कि ग्राम सभा कोट-तल्ला में 300 साल पुराना यह नौला जल स्त्रोत विद्यमान है, जिसके संरक्षण का बीड़ा ग्रामीण महिलाओं ने उठाया है. ग्रामीण महिलाओं की यह पहल, आने वाली नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनेगी.

पौराणिक जल विज्ञान का उदाहरण है नौला धारा: नौला स्त्रोत पौराणिक जल संरक्षण का एक नायाब उदाहरण है, जिसमें बारामास स्वच्छ जल संचित रहता है. इस नौला स्त्रोत में संरक्षित जल से 300 साल से कई पीढ़ियों ने अपने जीवन यापन के लिए जल ग्रहण किया है. सांस्कृतिक धरोहर नौला जल स्त्रोत को गर्भगृह की भांति कटवा पत्थरों का एक ढांचा बनाया जाता था. जो भूमिगत जल नालियों से संचालित होता है और सदैव जल से भरा होता है.

नौला जल स्त्रोत पौराणिक जल विज्ञान का उदाहरण है. पूर्वजों ने नौला का निर्माण गांव के आस-पास भूमिगत जल रिसाव वाले स्थानों में किया था. उनके लिए जल आपूर्ति का यह सबसे बड़ा माध्यम था, जो आज भी देखने को मिलता है. गर्मियों में जब पानी के नलों में पानी नहीं आता है, लेकिन इस नौला धारा में शीतल जल बरकरार रहता है.

ये भी पढ़ेंः रुद्रप्रयाग के ग्रामीण इलाकों में पेयजल की किल्लत, 25 प्राकृतिक जल स्त्रोत सूखे

रुद्रप्रयाग: हरियाली क्षेत्र के कोट-तल्ला गांव की महिलाओं ने 300 साल पुराने पौराणिक नौला जल स्त्रोत के पुनरुद्धार का बीड़ा उठाया है. पौराणिक जल विरासत के रूप में पूरे हरियाली घाटी में मात्र एक ही नौला जल स्त्रोत बचा हुआ है. जिसके संरक्षण को लेकर ग्राम प्रधान सुमन देवी के साथ ही ग्रामीण महिलाओं ने इसके जीर्णोद्धार का कार्य शुरू कर दिया है.

जिले के विकासखंड अगस्त्यमुनि की रानीगढ़ पट्टी का हरियाली क्षेत्र चारों ओर से हरा-भरा है. लेकिन जब पानी की समस्या होती है तो ग्रामीणों को मीलों की दूरी नापनी पड़ती है. ऐसे में ग्रामीण महिलाओं ने पौराणिक नौला जल स्त्रोत के संरक्षण का जिम्मा उठाया है. हरियाली क्षेत्र के ग्राम कोट-तल्ला की 50 महिलाओं ने नौला जल स्त्रोत की साफ-सफाई करके संरक्षण की पहल शुरू कर दी है. महिलाओं ने बताया कि यह नौला स्त्रोत जल संरक्षण के रूप में उनके पूर्वजों की सौगात है. विरासत के रूप में इसके संरक्षण के लिए वे हर प्रयास करेंगे.

जल स्त्रोत के जीर्णोद्धार का महिलाओं ने उठाया बीड़ा (वीडियो- ETV Bharat)

ग्राम प्रधान सुमन देवी ने कहा कि नौला जल स्त्रोत के संरक्षण को लेकर चाल-खाल, खंतिया, रिंगाल, बड़ी इलायची, मोटा अनाज और कीवी के पौधें लगाने की योजना है. यदि विभागीय मदद मिल जाती है तो उनका यह कार्य शीघ्र सफलता की ओर अग्रसर हो जाएगा. ग्रामीण त्रिभुवन सिंह चौधरी ने कहा कि महिलाओं का यह कार्य सराहनीय है.

नौला जल स्त्रोत का संरक्षण होना, गांव की पौराणिक विरासत का उद्धार होना है. उन्होंने कहा कि इस कार्य से सभी ग्रामीणों में खुशी की लहर है और आने वाली पीढ़ी के लिए एक विरासत कायम रहेगी. नौला जल स्त्रोत संरक्षण में महिलाओं को सहयोग कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता जयकृत सिंह चौधरी ने बताया कि आज भी जब पानी की लाइन क्षतिग्रस्त हो जाती है तो गांव के लोग पानी की पूर्ति इस नौला जल स्त्रोत से करते हैं. नौला जल स्त्रोत में एक बार में लगभग 800 लीटर स्वच्छ जल उपलब्ध रहता है.

पर्यावरणविद जंगली ने की महिलाओं के प्रयासों की सराहना: पर्यावरणविद् जुगत सिंह जंगली ने खुशी जताते हुए ग्राम कोट-तल्ला की महिलाओं एवं ग्राम प्रधान की इस पहल की सराहना की. उन्होंने बताया कि जल संरक्षण के पारंपरिक स्रोत खत्म होते जा रहे हैं और ग्रामीण लोगों का ध्यान इस ओर कम जाता है. उन्होंने कहा कि ग्राम सभा कोट-तल्ला में 300 साल पुराना यह नौला जल स्त्रोत विद्यमान है, जिसके संरक्षण का बीड़ा ग्रामीण महिलाओं ने उठाया है. ग्रामीण महिलाओं की यह पहल, आने वाली नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनेगी.

पौराणिक जल विज्ञान का उदाहरण है नौला धारा: नौला स्त्रोत पौराणिक जल संरक्षण का एक नायाब उदाहरण है, जिसमें बारामास स्वच्छ जल संचित रहता है. इस नौला स्त्रोत में संरक्षित जल से 300 साल से कई पीढ़ियों ने अपने जीवन यापन के लिए जल ग्रहण किया है. सांस्कृतिक धरोहर नौला जल स्त्रोत को गर्भगृह की भांति कटवा पत्थरों का एक ढांचा बनाया जाता था. जो भूमिगत जल नालियों से संचालित होता है और सदैव जल से भरा होता है.

नौला जल स्त्रोत पौराणिक जल विज्ञान का उदाहरण है. पूर्वजों ने नौला का निर्माण गांव के आस-पास भूमिगत जल रिसाव वाले स्थानों में किया था. उनके लिए जल आपूर्ति का यह सबसे बड़ा माध्यम था, जो आज भी देखने को मिलता है. गर्मियों में जब पानी के नलों में पानी नहीं आता है, लेकिन इस नौला धारा में शीतल जल बरकरार रहता है.

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