रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर आदिवासियों के अधिकार को लेकर 'पेसा' एक्ट, 1996 यानी "पंचायत एक्सटेंशन टू शिड्यूल एरिया" का मामला गरमाने लगा है. विश्व आदिवासी दिवस के दिन राज्यपाल संतोष गंगवार भी कह चुके हैं कि राज्य में पेसा कानून लागू करने की जरूरत है. हालांकि आदिवासी बुद्धिजीवी मंच पी-पेसा एक्ट के तहत नियमावली की बात कर रहा है. यहां P-PESA में P का मतलब उन 23 प्रोविजंस (प्रावधान) से है, जो अनुसूचित क्षेत्रों को विशेष अधिकार देता है.
यह मामला इसलिए भी गंभीर हो गया है क्योंकि 29 जुलाई 2024 को आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद झारखंड हाईकोर्ट ने दो माह के भीतर पेसा नियमावली अधिसूचित करने का आदेश दिया है. यह मियाद कुछ दिन में पूरी होने वाली है. लेकिन पंचायती राज विभाग की ओर से अभी तक नियमावली को लेकर तस्वीर साफ नहीं की गई है. चूंकि बहुत जल्द झारखंड में विधानसभा का चुनाव होना है. इसलिए आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ने वाले बुद्धिजीवी संगठनों ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है.
'फर्जी ग्राम सभा कर रही है जमीन अधिग्रहण'
आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के विक्टर मालतो का कहना है कि झारखंड में जब पी-पेसा के तहत नियमावली बनी ही नहीं है तो फिर अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा कैसे गठित हो सकती है. जाहिर है कि फर्जी ग्रामसभा बनाकर जमीन अधिग्रहण, बालू घाटों की नीलामी हो रही है. यह संविधान के खिलाफ है. इससे अदिवासियों का हक छीना जा रहा है. यही नहीं फर्जी ग्राम सभा के जरिए डीएमएफटी और ट्राइबल सब प्लान के फंड का दुरुपयोग हो रहा है.
तीन तरह की होती है ग्राम सभा
मंच के विक्टर मालतो ने बताया कि तीन तरह की ग्राम सभाएं होती हैं. एक आर्टिकल 243(A) के तहत ग्राम सभा होती है जो ग्राम पंचायत के माध्यम से चलती है. दूसरा फॉरेस्ट राइट एक्ट, 2006 के तहत ग्राम सभा होती है जो जमीन आवंटन के लिए होती है. तीसरी ग्राम सभा पारंपरिक होती है. जो संसद से पारित पेसा कानून के तहत चलती है. लेकिन राज्य सरकार इस संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन कर रही है. इसलिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया. तब कोर्ट ने हमारे हक में आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को दो माह के भीतर पी-पेसा के तहत नियमावली अधिसूचित करने का आदेश दिया है.
नियमावली पर पंचायती राज विभाग का स्टैंड
पंचायती राज विभाग की निदेशक निशा उरांव ने ईटीवी भारत को बताया कि ड्राफ्ट नियमावली को लेकर टीआरआई से सुझाव लिए गये थे. इसके अलावा 14 विभागों का भी मंतव्य लिया गया था. इसके बाद अगस्त 2023 में ड्राफ्ट नियमावली प्रकाशित की गई थी. इस आधार पर करीब 400 अतिरिक्त सुझाव आए. इनमें से 267 सुझाव लिए जा चुके हैं. इस मामले में विधि विभाग से भी सहमति मिल गई है. इसी बीच टीएसी में भी बात उठी. कुछ विधायकों की ओर से आपत्तियां भी आईं. उन आपत्तियों पर मंथन किया जा चुका है.
निदेशक निशा उरांव ने बताया कि इस मसले पर मुख्य सचिव के स्तर पर एक और समीक्षा संभव है. रही बात कोर्ट के आदेश के आलोक में फाइनल नियमावली जारी करने की तो सरकार के स्तर पर कोर्ट में राय प्रस्तुत की जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के जो सुझाव हैं वो सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के 2010 और 2017 के आदेश के दायरे में नहीं आते हैं.
केंद्र सरकार के पंचायती राज मंत्रालय का आदेश
पेसा के तहत ग्राम सभा को सशक्त बनाने के लिए मॉड्यूल बनाने को लेकर केंद्र सरकार के पंचायती राज मंत्रालय ने 15 मार्च 2024 को एक आदेश जारी किया था. इसके तहत लघु वन उत्पाद, लघु खनिज, भूमि के हस्तांतरण की रोकथाम, शराब और नशीले पदार्थों के सेवन पर प्रतिबंध, धन उधार देने पर नियंत्रण, प्रथागत तरीके से विवाद के समाधान जैसे छह बिंदुओं पर अलग-अलग कमेटी गठित कर ग्राम सभा को मजबूत करने के लिए मॉड्यूल बनाने को कहा था. मंत्रालय ने 30 जून 2024 तक ड्राफ्ट मॉड्यूल और 15 जुलाई 2024 तक फाइनल एसओपी ड्राफ्ट तैयार करने को कहा था. इस मामले में मॉड्यूल तैयार हो चुका है और सेलेक्टेड मास्टर ट्रेनर को ट्रेनिंग भी दी जा रही है. यही ट्रेनर ग्राम प्रधान को तमाम विषयों पर जागरूक करेंगे.
पेसा नियमावली को लेकर आदिवासी बुद्धिजीवी मंच का स्टैंड
दरअसल, 1992 में 73वें संविधान संशोधन के तहत त्रि-स्तरीय पंचायती राज संस्था को कानूनी रूप मिला था. लेकिन इसमें आदिवासी बहुल (शिड्यूल एरिया) के लिए कोई प्रावधान नहीं था. इसलिए 1992 में पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शिड्यूल एरिया) एक्ट कानून को संसद ने पारित किया. यह कानून शिड्यूल एरिया में पेसा के तहत ग्राम सभाओं को विशेष शक्ति देता है.
लगातार बढ़ते दबाव के बीच पंचायती राज विभाग ने 26 जुलाई 2023 को पेसा नियम को लेकर गजट प्रकाशित कर आम लोगों से राय मांगी. इस नियमावली को " झारखंड पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार नियमावली , 2022" नाम दिया गया. इसके जरिए शिड्यूल एरिया के ग्राम सभाओं को लघु वन उत्पाद, लघु खनिज, भूमि के हस्तांतरण की रोकथाम, शराब और नशीले पदार्थों के सेवन पर प्रतिबंध, धन उधार देने पर नियंत्रण, प्रथागत तरीके से विवाद के समाधान के अधिकार को जोड़ा गया. लेकिन इसको आजतक अंतिम रूप नहीं दिया गया है.
10 राज्य पांचवी अनुसूची में शामिल
आपको बता दें कि देश में पांचवी अनुसूची में छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और गुजरात समेत कुल 10 राज्य शामिल हैं. झारखंड में 24 में से 13 जिले अनुसूचित क्षेत्र में आते हैं. इनमें रांची, गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, लातेहार, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसांवा, दुमका, साहिबगंज, जामताड़ा, पाकुड़ के अलावा पलामू जिला के सतबरवा प्रखंड के रबदा और बकोरिया पंचायत के साथ-साथ गोड्डा जिला के सुंदरपहाड़ी और बोआरीजोर प्रखंड शामिल हैं. लेकिन अभी तक इन क्षेत्र के लोगों को पी-पेसा के तहत अधिकार नहीं मिला है. सबसे बड़ी बात है कि फाइनल नियमावली नहीं बनने पर केंद्र से मिलने वाला फंड मिलना बंद हो सकता है.
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