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केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के लिए आसान नहीं है खूंटी की राह, 2019 के चुनाव में कांग्रेस से हुई थी कांटे की टक्कर, कालीचरण का कहां-कहां था दबदबा - Lok Sabha Election 2024 - LOK SABHA ELECTION 2024

Arjun Munda vs Kalicharan Munda in Khunti. अर्जुन मुंडा 2019 के लोकसभा चुनाव में मामूली अंतर से चुनाव जीते थे. इस बार भी उनके सामने पुराने प्रतिद्वंदी कालीचरण मुंडा ही हैं. ऐसे में उनके लिए फिर से संसद पहुंचने की राह आसान नहीं है. क्या कहते हैं आंकड़े, जानिए इस रिपोर्ट में.

Arjun Munda vs Kalicharan Munda in Khunti
Arjun Munda vs Kalicharan Munda in Khunti
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : May 1, 2024, 4:50 PM IST

रांची/खूंटी: खूंटी लोकसभा सीट झारखंड की सबसे हाई प्रोफाइल सीट है. इसकी वजह हैं अर्जुन मुंडा. मोदी कैबिनेट में जनजातीय मामलों के मंत्री हैं. कृषि मंत्री का भी अतिरिक्त प्रभार है. तीन बार झारखंड के सीएम रह चुके हैं. यह पहले ऐसे नेता हैं जो सबसे ज्यादा समय यानी 5 साल 303 दिन तक सीएम की कुर्सी पर काबिज रहे हैं. इनके बाद दो बार के कार्यकाल में हेमंत सोरेन 5 साल 196 दिन तक शासन चलाने वाले दूसरे सीएम रहे हैं. तीसरे नंबर पर रघुवर दास हैं. हालांकि यह पहले सीएम रहे हैं जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा करने का रिकॉर्ड बनाया.

हालांकि झारखंड की राजनीति में इतनी जबरदस्त पकड़ रखने के बावजूद साल 2014 में मोदी लहर भी अर्जुन मुंडा को नहीं बचा पाई. उन्हें अपनी परंपरागत खरसांवा सीट गंवानी पड़ी. इनकी हार का ही नतीजा था कि झारखंड में पहली बार गैर आदिवासी के रुप में रघुवर दास का पदार्पण हुआ. लेकिन 2019 में अर्जुन का राजनीतिक तीर निशाने पर लगा. खूंटी से लोकसभा का चुनाव लड़े और जीत के बाद केंद्र की राजनीति के अर्श पर पहुंच गये. एक बार फिर खूंटी के मैदान में हैं. इस बार भी उनका सामना कांग्रेस के कालीचरण मुंडा से है.

खूंटी के छह विधानसभा सीटों का समीकरण

खूंटी लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की कुल छह सीटें हैं. इनमें खरसांवा, तमाड़, तोरपा, खूंटी, सिमडेगा और कोलेबिरा विधानसभा सीटें हैं. इन छह सीटों में से तोरपा सीट पर भाजपा के कोचे मुंडा और खूंटी से भाजपा के नीलकंठ सिंह मुंडा ने 2019 का विस चुनाव जीता था. नीलकंठ सिंह मुंडा के बड़े भाई हैं कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा. शेष चार सीटों में से तमाड़ में झामुमो, खरसांवा में झामुमो, सिमडेगा में कांग्रेस और कोलेबिरा से कांग्रेस की जीत हुई थी.

Arjun Munda vs Kalicharan Munda in Khunti
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2014 के विधानसभा चुनाव में खूंटी लोकसभा की छह सीटों में खारसांवा में झामुमो, तमाड़ में आजसू, तोरपा में झामुमो, खूंटी में भाजपा, सिमडेगा में भाजपा और कोलेबिरा में झारखंड पार्टी के एनोस एक्का जीते थे. लेकिन 2019 में एनडीए के हाथ से सिमडेगा और तमाड़ सीट निकल गई थी.

खूंटी में विधानसभावार वोट का खेल

2019 के लोकसभा चुनाव में खूंटी सीट को भाजपा के अर्जुन मुंडा ने महज डेढ़ हजार वोट के अंतर से कांग्रेस के कालीचरण मुंडा को हराया था. अगर विधानसभावार बात करें तो अर्जुन मुंडा की चुनावी नैया करीब-करीब डूब गयी थी. अर्जुन मुंडा को उनके गढ़ रहे खरसांवा में 88852 वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण के खाते में 55,971 वोट आए थे. यहां अर्जुन मुंडा ने 32,881 वोट की बढ़त हासिल की थी. तमाड़ में अर्जुन मुंडा को 86352 वोट मिले थे. वहीं कालीचरण मुंडा को 44871 वोट से संतोष करना पड़ा था. यहां भी अर्जुन मुंडा को 41,481 वोट की बढ़त मिली थी.

शेष चार विधानसभा सीटों पर अर्जुन मुंडा पिछड़ गये थे. तोरपा में अर्जुन मुंडा को 43,964 वोट तो कालीचरण को 65,122 वोट मिले थे. यहां कालीचरण ने 21,158 वोट की बढ़त ली थी. खूंटी विधानसभा क्षेत्र में भी भाजपा की पैठ के बावजूद अर्जुन मुंडा को मिले 51,410 वोट की तुलना में कालीचरण को 72812 वोट मिले थे. भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले खूंटी में कांग्रेस के कालीचरण मुंडा को 21,402 वोट की बढ़त मिली थी. सिमडेगा में अर्जुन मुंडा को मिले 66,122 वोट की तुलना में कालीचरण ने 71,894 वोट लाकर 5,772 वोट की बढ़त हासिल की थी. अर्जुन मुंडा को कोलेबिरा में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था. उन्हें सिर्फ 44,866 वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस के कालीचरण मुंडा ने 69,798 वोट लाकर 24,932 वोट की बढ़त बना ली थी.

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टोटल वोट काउंटिंग में अर्जुन के पाले में कुल 3,81,566 वोट गये थे. जबकि कालीचरण को कुल 3,80,468 वोट मिले थे. लिहाजा, अर्जुन ने 1,098 वोट की बढ़त ली थी. वहीं अर्जुन मुंडा को पोस्टल बैलट से 1,072 वोट मिले जबकि कालीचरण को 725 वोट हासिल हुए थे. इस लिहाज से अर्जुन मुंडा महज 1,445 वोट से जीत हासिल करने में सफल रहे थे. हालांकि यह नतीजा देर रात को आया था. तब कांग्रेस ने वोटों की गिनती में धांधली का आरोप लगाया था.

अर्जुन मुंडा का राजनीतिक सफर

अर्जुन मुंडा ने झारखंड मुक्ति मोर्चा से राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी. 1995 में झामुमो की टिकट पर खरसांवा विधानसभा सीट जीतकर बिहार विधानसभा पहुंचे. इसके बाद भाजपा में लौटे तो अलग-अलग समय पर तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे. झारखंड में पहले सीएम रहे बाबूलाल मरांडी के कैबिनेट में बतौर समाज कल्याण मंत्री बनकर अपना दबदबा बनाया और आगे चलकर सिर्फ 35 वर्ष की उम्र की राज्य के मुख्यमंत्री बन गये. एक दौर ऐसा भी आया जब अर्जुन मुंडा जमशेदपुर के सांसद बन गये.

कुल मिलाकर देखें तो खूंटी लोकसभा सीट सबसे हॉट सीट बनी हुई है. राजनीति के पंडित भी अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं कि इस बार क्या हो सकता है. फिलहाल दोनों पक्ष अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहा है.

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हालांकि झारखंड की राजनीति में इतनी जबरदस्त पकड़ रखने के बावजूद साल 2014 में मोदी लहर भी अर्जुन मुंडा को नहीं बचा पाई. उन्हें अपनी परंपरागत खरसांवा सीट गंवानी पड़ी. इनकी हार का ही नतीजा था कि झारखंड में पहली बार गैर आदिवासी के रुप में रघुवर दास का पदार्पण हुआ. लेकिन 2019 में अर्जुन का राजनीतिक तीर निशाने पर लगा. खूंटी से लोकसभा का चुनाव लड़े और जीत के बाद केंद्र की राजनीति के अर्श पर पहुंच गये. एक बार फिर खूंटी के मैदान में हैं. इस बार भी उनका सामना कांग्रेस के कालीचरण मुंडा से है.

खूंटी के छह विधानसभा सीटों का समीकरण

खूंटी लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की कुल छह सीटें हैं. इनमें खरसांवा, तमाड़, तोरपा, खूंटी, सिमडेगा और कोलेबिरा विधानसभा सीटें हैं. इन छह सीटों में से तोरपा सीट पर भाजपा के कोचे मुंडा और खूंटी से भाजपा के नीलकंठ सिंह मुंडा ने 2019 का विस चुनाव जीता था. नीलकंठ सिंह मुंडा के बड़े भाई हैं कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा. शेष चार सीटों में से तमाड़ में झामुमो, खरसांवा में झामुमो, सिमडेगा में कांग्रेस और कोलेबिरा से कांग्रेस की जीत हुई थी.

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2014 के विधानसभा चुनाव में खूंटी लोकसभा की छह सीटों में खारसांवा में झामुमो, तमाड़ में आजसू, तोरपा में झामुमो, खूंटी में भाजपा, सिमडेगा में भाजपा और कोलेबिरा में झारखंड पार्टी के एनोस एक्का जीते थे. लेकिन 2019 में एनडीए के हाथ से सिमडेगा और तमाड़ सीट निकल गई थी.

खूंटी में विधानसभावार वोट का खेल

2019 के लोकसभा चुनाव में खूंटी सीट को भाजपा के अर्जुन मुंडा ने महज डेढ़ हजार वोट के अंतर से कांग्रेस के कालीचरण मुंडा को हराया था. अगर विधानसभावार बात करें तो अर्जुन मुंडा की चुनावी नैया करीब-करीब डूब गयी थी. अर्जुन मुंडा को उनके गढ़ रहे खरसांवा में 88852 वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण के खाते में 55,971 वोट आए थे. यहां अर्जुन मुंडा ने 32,881 वोट की बढ़त हासिल की थी. तमाड़ में अर्जुन मुंडा को 86352 वोट मिले थे. वहीं कालीचरण मुंडा को 44871 वोट से संतोष करना पड़ा था. यहां भी अर्जुन मुंडा को 41,481 वोट की बढ़त मिली थी.

शेष चार विधानसभा सीटों पर अर्जुन मुंडा पिछड़ गये थे. तोरपा में अर्जुन मुंडा को 43,964 वोट तो कालीचरण को 65,122 वोट मिले थे. यहां कालीचरण ने 21,158 वोट की बढ़त ली थी. खूंटी विधानसभा क्षेत्र में भी भाजपा की पैठ के बावजूद अर्जुन मुंडा को मिले 51,410 वोट की तुलना में कालीचरण को 72812 वोट मिले थे. भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले खूंटी में कांग्रेस के कालीचरण मुंडा को 21,402 वोट की बढ़त मिली थी. सिमडेगा में अर्जुन मुंडा को मिले 66,122 वोट की तुलना में कालीचरण ने 71,894 वोट लाकर 5,772 वोट की बढ़त हासिल की थी. अर्जुन मुंडा को कोलेबिरा में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था. उन्हें सिर्फ 44,866 वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस के कालीचरण मुंडा ने 69,798 वोट लाकर 24,932 वोट की बढ़त बना ली थी.

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टोटल वोट काउंटिंग में अर्जुन के पाले में कुल 3,81,566 वोट गये थे. जबकि कालीचरण को कुल 3,80,468 वोट मिले थे. लिहाजा, अर्जुन ने 1,098 वोट की बढ़त ली थी. वहीं अर्जुन मुंडा को पोस्टल बैलट से 1,072 वोट मिले जबकि कालीचरण को 725 वोट हासिल हुए थे. इस लिहाज से अर्जुन मुंडा महज 1,445 वोट से जीत हासिल करने में सफल रहे थे. हालांकि यह नतीजा देर रात को आया था. तब कांग्रेस ने वोटों की गिनती में धांधली का आरोप लगाया था.

अर्जुन मुंडा का राजनीतिक सफर

अर्जुन मुंडा ने झारखंड मुक्ति मोर्चा से राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी. 1995 में झामुमो की टिकट पर खरसांवा विधानसभा सीट जीतकर बिहार विधानसभा पहुंचे. इसके बाद भाजपा में लौटे तो अलग-अलग समय पर तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे. झारखंड में पहले सीएम रहे बाबूलाल मरांडी के कैबिनेट में बतौर समाज कल्याण मंत्री बनकर अपना दबदबा बनाया और आगे चलकर सिर्फ 35 वर्ष की उम्र की राज्य के मुख्यमंत्री बन गये. एक दौर ऐसा भी आया जब अर्जुन मुंडा जमशेदपुर के सांसद बन गये.

कुल मिलाकर देखें तो खूंटी लोकसभा सीट सबसे हॉट सीट बनी हुई है. राजनीति के पंडित भी अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं कि इस बार क्या हो सकता है. फिलहाल दोनों पक्ष अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहा है.

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