लखनऊ: नबावों की नगरी को देखने आने वाले पर्यटकों को एक तरफ तो जहां उनको शाही इमारतों का दीदार होता है. जिसमें उस समय के शासकों की शानो शौकत की झलक देखने को मिलती है. तो वहीं दूसरी ओर शहर के चौराहे, पर्यटक स्थलों और ट्रैफिक सिग्नल पर भिखारियों का जमावड़ा दिखते है. जो राजधानी लखनऊ की भव्यता पर बट्टा लगता नजर आता है. इसके साथ ही उत्तर प्रदेश की छवि भी धूमिल होती है. शासन प्रशासन की ओर से पिछले 10 सालों में दौरान भिक्षावृत्ति पर रोक लगाने के लिए कई बार योजनाएं तो खूब बनाई गई. लेकिन हकीकत में ये योजनाएं कभी फाइलों से बाहर नहीं निकल पाई.
एक तरफ प्रदेश सरकार मुफ्त शिक्षा, मुफ्त राशन और मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करा रही है. वहीं, दूसरी तरफ बड़ी संख्या में सड़कों पर लोग भीख मांग रहे हैं. यह हाल सिर्फ राजधानी लखनऊ का नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के सभी जिलों का है. इसकी वजह से देश-विदेश स्तर पर उत्तर प्रदेश का नाम धूमिल हो रहा है. लेकिन इस ओर संबंधित विभाग कोई पहल या कार्रवाई करता नहीं दिख रहा है. जिसको देखते हुए अब बाल आयोग इस विषय पर जोरदार पहल करता दिख रहा है. बाल आयोग ने समाज कल्याण विभाग, जिला प्रशासन, पुलिस, नगर निगम को पत्र जारी किया और कहा कि इस पर जल्द से जल्द कार्रवाई शुरू हो
राजधानी के वाशिदों की माने तो शहर के ठाकुरगंज इलाके में भिक्षुक गृह पिछले कई सालों से बना हुआ है. आज से 10 साल पहले यहां पर बहुत सारे भिक्षुक आते थे. उनमें महिला, पुरुष, बच्चे और बुजुर्ग सभी शामिल थे. उनको कौशल प्रशिक्षण दिया जाता था. भिक्षुक गृह में कई कर्मचारी भी थे. लेकिन, इन दोनों यह पूरी तरह से बंद है. यहां पर कोई भिक्षुक अब नहीं आता है. कई बार देखा गया है कि, समाज कल्याण विभाग के अधिकारी या स्टाफ आते हैं. निरीक्षण करके वापस चले जाते हैं. अब यह भवन जर्जर हालत में है. साथ ही अतिक्रमण का भी शिकार हो रहा है.
जिला समाज कल्याण अधिकारी सुनीता सिंह के मुताबिक साल 2015 में प्रदेश सरकार की तरफ से आदेश जारी हुआ. जिसके बाद इसे बंद कर दिया गया. सूत्रों के मुताबिक यहां रखे जाने वाले भिखारियों की कमी, इमारत जर्जर होने और योजना का लाभ सामने न आने के कारण लखनऊ समेत प्रदेश के सभी 8 भिक्षुक गृह बंद कर दिए गए.
उत्तर प्रदेश बाल आयोग की सदस्य शुचिता चतुर्वेदी ने बताया कि, इस मामले में बाल आयोग काफी गंभीर है और कई बार समाज कल्याण विभाग और नगर निगम को पत्र लिखा गया कि, भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए आपके पास क्या नीति है. उसको बाल आयोग के साथ साझा करें. उत्तर प्रदेश में कुल 11 भिक्षुक गृह हैं. जो फिलहाल खंडहर के रूप में तब्दील हो गए हैं. समाज कल्याण विभाग अपनी जिम्मेदारियां से पल्ला झाड़ रहा है.
इस मामले में समाज कल्याण अधिकारी से जब इस मामले में बातचीत किया तो, उन्होंने कहा भिक्षुक गृह में भिक्षुक नहीं आ रहे हैं. उनसे जब डाटा उपलब्ध कराने की बात कही गई तो उन्होंने डाटा के नाम पर सिर्फ 1900 संख्या बता दिया. लेकिन, उसमें यह नहीं बताया कि उनका नाम क्या है. उनका पता क्या है. आयोग ने सवाल उठाया पर इसका कोई जवाब नहीं आया. इनको कई बार पत्र भेजा है. पर कोई जवाब नहीं आया.
समाज कल्याण विभाग के निदेशक का कहना है कि पुलिस प्रशासन इस मसले पर कोई काम नहीं कर रही है. भिक्षुक को पकड़ नहीं रही है और न ही भिक्षुक गृह पहुंचा रही है. ऐसे में भिक्षुक गृह खाली था. जिसके कारण वहां के कर्मचारियों को दूसरे विभाग में शिफ्ट करके भिक्षुक गृह पर ताला लगा दिया. यह सभी विभाग सरकार की छवि को एक साथ मिलकर धूमिल कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश बाल आयोग ने भिक्षुकों को लेकर एक सर्वे करवाया. जिसमें यह पाया गया कि पुलिस इन भिक्षुकों को नहीं पकड़ रही है. जिसकी वजह से हर सड़क चौराहे पर छोटे-छोटे बच्चे भिक्षा मांगते हुए नजर आते हैं. कई बार ये बच्चे दुर्घटना के बीच शिकार हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि क्योंकि छोटे बच्चे हैं इसलिए पुलिस इन्हें नहीं पकड़ सकती है. ऐसे में इन बच्चों को किस तरह से भिक्षुक गृह में लाया जाए इसको लेकर के बाल आयोग महिला कल्याण और समाज कल्याण विभाग का मिलकर आपस में बातचीत करना जरूरी है और एक नीति बनाना जरूरी है.
बता दें कि, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के आदेश पर लखनऊ में भिखारियों के लिए साल 2020 में पुनर्वास योजना लाई गई. इसके तहत सर्वे कर भिखारियों की पहचान और उनके पुनर्वास का जिम्मा नगर निगम को दिया गया. नगर निगम ने ग्रामीण विकास संस्थान को इसके लिए चुना. एनजीओ प्रमुख मणिशंकर के मुताबिक एक करोड़ 72 लाख रुपये का बजट और आठ जोन में आठ जगह भिखारियों को रखने के लिए जगह देने का वादा किया गया. हालांकि अब तक महज 6 लाख रुपये दिए गए. सभी आठ जोन में जगह मिलना संभव नहीं था लिहाजा तेलीबाग, चिनहट, जानकीपुरम और चौक में जगह मांगी गई लेकिन वह भी अब तक नहीं मिली. इस बीच सर्वे कराकर 5000 भिखारी की पहचान की गई है, लेकिन इन्हें कहां रखा जाए? इसका कोई जवाब नहीं है.