रांची: लोकसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं. झारखंड में इंडिया गठबंधन का प्रदर्शन शानदार रहा है. लेकिन अकेले चुनाव लड़ने वाली वामपंथी पार्टी सीपीआई को इंडिया गठबंधन से सीटें न मिलने पर करारी हार का सामना करना पड़ा. ऐसे में सीपीआई के भविष्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं. झारखंड में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में इस बात पर चर्चा जोरों पर है कि उस चुनाव में सीपीआई का क्या रुख रहेगा.
बता दें कि लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर हजारीबाग सीट पर चुनाव लड़ना चाहती थी, लेकिन इंडिया गठबंधन ने सीपीआई को हजारीबाग सीट देने से साफ इनकार कर दिया. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 2004 और 1990 के दशक में हजारीबाग लोकसभा सीट पर जीत दर्ज कर चुकी है. इसी आधार पर सीपीआई इंडिया गठबंधन से हजारीबाग सीट की मांग कर रही थी. जो उसे नहीं मिला.
अब सवाल यह उठता है कि इंडिया गठबंधन ने लोकसभा चुनाव में सीपीआई को भागीदार नहीं बनाया, लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन सीपीआई को अहमियत देता है या नहीं.
विधानसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जनाधार और पिछले राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो झारखंड में कई विधानसभा सीटों पर सीपीआई का दबदबा रहा है. वर्ष 2000 तक सीपीआई के विधायक शब्बीर अहमद कुरैशी उर्फ भेड़ा सिंह रामगढ़ विधानसभा सीट से जीतते रहे हैं. इसके अलावा हजारीबाग जिले के बरकट्ठा विधानसभा सीट पर भी सीपीआई की खासा पकड़ है. सीपीआई के वरिष्ठ नेता भुनेश्वर मेहता तीन बार जीत भी चुके हैं. बरकट्ठा विधानसभा वर्ष 2003 तक सीपीआई के कब्जे में थी.
इसके अलावा संथाल क्षेत्र के नाला विधानसभा सीट पर सीपीआई की खास पकड़ है. डॉ विशेश्वर खान वर्ष 2005 तक नाला विधानसभा से विधायक के रूप में जीतते रहे और सीपीआई का झंडा बुलंद करते रहे. रामचंद्र राम भी चतरा के सिमरिया विधानसभा सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल कर चुके हैं.
वर्ष 2008 में तत्कालीन यूपीए गठबंधन के साथ मिलकर रामचंद्र राम सिमरिया विधानसभा से जीते थे. बिहार और झारखंड के अलग होने से पहले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने बरही विधानसभा, बड़कागांव विधानसभा, बहरागोड़ा विधानसभा, घाटशिला विधानसभा में जीत हासिल की है. बरही से राम लखन यादव, घाटशिला से टीका राम मांझी, गिरिडीह से चतुरानंद मिश्रा और ओमी लाल आजाद ने झारखंड में सीपीआई का झंडा बुलंद किया है.
राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो झारखंड के कई विधानसभाओं में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा रहा है. भले ही वर्तमान में सीपीआई का कोई विधायक नहीं है, लेकिन अपनी पूर्व की राजनीतिक पकड़ के कारण आज भी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का कैडर वोट विभिन्न विधानसभाओं में मौजूद है, जो इंडिया गठबंधन के नेताओं के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है.
विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ने को लेकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता अजय सिंह कहते हैं कि आगे की रणनीति क्या होगी इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन एक बात तय है कि झारखंड में जिस तरह से सीपीआई इंडिया गठबंधन से अलग हुई, उसका खामियाजा सिर्फ सीपीआई को ही नहीं बल्कि इंडिया गठबंधन को भी भुगतना पड़ा. हजारीबाग का चुनाव परिणाम भी इसका जीता जागता उदाहरण है.
उन्होंने कहा कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने को तैयार है, लेकिन अगर टिकट वितरण में हमारी क्षमताओं के अनुसार हमें सम्मान नहीं दिया गया तो निश्चित रूप से लोकसभा की तरह विधानसभा में भी भाकपा अकेले लड़ेगी और इसका नुकसान फिर से पूरे इंडिया गठबंधन को उठाना पड़ेगा.
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