रायपुर : आजकल पूरे देश में शुगर के मरीज तेजी से बढ़ते जा रहे हैं.इसके पीछे का कारण हमारा खानपान है.हम जो चीजें बाजार से खाते हैं,उनमें इतनी ज्यादा मिलावट होती है कि खाने के बाद वो हमारे शरीर का सिस्टम खराब कर देती है. आज कम उम्र में ही लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में हैं.हम जिन चीजों को बड़ी कीमत चुकाकर खाते हैं उनमें से कई चीजें ऐसी हैं,जो हमें नुकसान पहुंचाती हैं.आज हम ऐसी ही चीज के बारे में बताने जा रहे हैं जो शुगर के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद मानी जाती है.लेकिन मुनाफाखोरों ने इसमें भी अपनी नजर लालची नजर गड़ा दी है. चंद पैसों के खातिर लोग आपको गंभीर बीमारियां दे रहे हैं.जिसके कारण जिस चीज को हम अच्छा मानकर खा रहे हैं. वही चीज हमारी मौत का कारण बन सकती है. आप सोच रहे होंगे कि ये बातें हम यहां क्यों लिख रहे हैं,लेकिन हकीकत यही है. जिस तरबूज को आप लाल और मीठा समझकर अपने गले के नीचे उतार रहे हैं.वो जहर भी हो सकता है. जी हां ठीक पढ़ा आपने जहर. अब आप ये भी सोच रहे होंगे कि फल भला जहर कैसे हो सकता है. तो आईए हम आपको बताते हैं पूरा माजरा क्या है.
शुगर के मरीजों के लिए जरुरी खबर : 92 प्रतिशत पानी से भरे तरबूज के अंदर फाइबर का भंडार होता है.इसको खाने के इतने फायदे हैं कि गिनाए नहीं जाते. क्योंकि तरबूज में कम मात्रा में शुगर होता है.इसलिए डायबिटीज के मरीज इसे आसानी से खा सकते हैं. लेकिन जरा सोचिए यदि गलती से ये तरबूज जिसके मीठे को नैचुरल समझकर हम खा रहे हैं,वो नैचुरल मीठा ना होकर आर्टिफिशियल शुगर हो तो समझ लिजिए आपको लेने के देने पड़ जाएंगे. गर्मी के मौसम में तरबूज को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है.लेकिन आपको ये पता होना चाहिए कि जल्दी मुनाफा कमाने के लिए कुछ लोग आपकी सेहत का सौदा कर रहे हैं.
ज्यादा पैसे के लालच में जान से खिलवाड़ : खुद फल उत्पादक तरबूज में ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन लगाते हैं.जिसके कारण इसका फल तय समय से पहले ही बड़ा हो जाता है.लेकिन इस बड़े फल में मिठास नहीं होती.इसलिए इसमें मिठास लाने का तरीका भी मुनाफाखोरों ने ढूंढ निकाला है. मुनाफाखोर तरबूज को लाल और मीठा बनाने में जुटे हैं. इसे लाल रंग देने के लिए आर्टिफिशियल कलर, नाइट्रेट, कैल्शियम कार्बाइड जैसे खतरनाक केमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा है. यही नहीं मार्केट की सप्लाई पूरी करने के लिए तरबूज के उत्पादन में नाइट्रोजन का इस्तेमाल होने लगा है.जिसके कारण तरबूज की फसल रातों-रात बढ़ जाती है.
आर्टिफिशियल तरबूज से किन बीमारियों का खतरा : जितने भी तत्वों का हमने जिक्र किया है ये आपके शरीर के अंदर जाकर गंभीर बीमारियों को पैदा करते हैं. फिर अचानक आप बीमार होते हैं और आपको समझ में नहीं आता कि ऐसा हुआ क्यों.ऐसा इसलिए हुआ कि जिस फल को आपने सेहत बनाने के लिए खाया है वो आपको ही खा चुका है.आर्टिफिशियल केमिकल को इंजेक्ट करने के लिए तरबूज में मोटे इंजेक्शन लगाए जाते हैं. ऐसे तरबूज को खाने से आपको कई हेल्थ इश्यूज हो सकते हैं. तरबूज में मिलाए गए आर्टिफिशियल रंगों के कारण आपको फूड पॉइजनिंग होगी. नाइट्रोजन, कैल्शियम कार्बाइड जैसे केमिकल से किडनी और लिवर का काम तमाम हो जाएगा. आपका अमाशय और आंत इन्हें पचाने के चक्कर में कैंसर से ग्रसित हो जाएगा.इसलिए बहुत जरूरी है कि आप तरबूज खाने से पहले थोड़ी सूझबूझ जरुर रखें.
कैसे करें अच्छे तरबूज की पहचान : आपने तरबूज के बारे अब तक जितनी भी चीजें पढ़ी हैं,वो डराने और चौंकाने वाली है. लेकिन अब ये भी जान लिजिए कि असली और नकली तरबूज की पहचान कैसे की जाए.आप आसानी से अपने घर पर ही तरबूज की पहचान कर सकते हैं. बस आपको नीचे दिए स्टेप्स फॉलो करने होंगे.
स्टेप नंबर 1 - आप जो तरबूज लेकर आए हैं उसे बीच से दो भागों में काट लें. इसके बाद तरबूज को 5 मिनट के लिए छोड़ दीजिए. फिर रूई या सफेद कपड़े को तरबूज के बीच और किनारे के हिस्सों में रगड़िए. यदि रूई या कपड़े का रंग लाल हो जाए तो समझ जाईए कि तरबूज में गड़बड़ है.
स्टेप नंबर 2- तरबूज हरे रंग का होता है.लेकिन कई तरबूजों में सफेद रंग का पाउडर लगा होता है.लोग इसे धूल मिट्टी समझकर खरीद लेते है.फल विक्रेता भी यही बोलकर आपको तरबूज में कपड़ा मारकर पकड़ा लेता है.लेकिन ये सफेद पाउडर मिट्टी नहीं बल्कि खतरनाक कैल्शियम कार्बाइड है. इसलिए ऐसे तरबूज को ना कहें.
स्टेप नंबर 3 - आप जब भी मार्केट में जाते हैं तो आपको बड़े-बड़े तरबूज दिखते हैं.कई बार बड़ा तरबूज सस्ते में मिल जाता है.लेकिन ये तरबूज आपको बीमार बना सकता है.क्योंकि हो सकता है कि इसमें केमिकल इंजेक्ट करके बड़ा किया गया हो.इसलिए बड़े तरबूज को ना लेने में ही भलाई है.
स्टेप नंबर 4- हमने आपको बता तो दिया कि कौन सा तरबूज ना लें.लेकिन आईए जानते हैं कि कौन सा तरबूज लेना चाहिए. तो इसकी भी जानकारी ले लिजिए. आपको तरबूज खाने का इतना ही मन है तो हमेशा ऐसा तरबूज ले जिसके नीचे या साइड में पीला घेरा हो. क्योंकि पीला घेरा तब ही बनता है जब तरबूज खेत की जमीन पर टच होता है. ऐसा तरबूज बिना केमिकल का होता है.