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ये टेढ़े-मेढ़े अक्षर नहीं हैं खराब लेखनी के निशान, टांकरी लिपि को मिलनी चाहिए पहचान - What is Tankari script

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Sep 8, 2024, 9:33 PM IST

Updated : Sep 8, 2024, 9:40 PM IST

Tankari script: हिमाचल में अक्सर माता-पिता और अध्यापक स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को उनकी खराब हैंडराइटिंग को लेकर ताना मारा करते थे और कहते थे "ये क्या टांकरी लिखी है". ऐसे में हिमाचल का हर एक युवा खराब हैंडराइटिंग को ही टांकरी समझता रहा. असल में टांकरी एक लिपि है जिससे हिमाचल प्रदेश के पुराने इतिहास को समझने में मदद मिलती है. डिटेल में पढ़ें खबर...

टांकरी लिपि को मिलनी चाहिए पहचान
टांकरी लिपि को मिलनी चाहिए पहचान (ETV Bharat)
टांकरी लिपि का महत्व (ETV Bharat)

कुल्लू: भारत में प्राचीन काल में कई ऐसी लिपियां सामने आईं और उन लिपियों के माध्यम से भारत का विस्तृत इतिहास भी लिखा गया. आज भी कई लिपियाँ भारत के कई अन्य राज्यों में प्रचलित हैं और पुरातन मंदिरों का इतिहास भी इन्हीं लिपियों में अंकित है लेकिन अब इन लिपियों की जानकारी कम ही लोगों को है.

उत्तर भारत में प्रयोग की जाने वाली टांकरी लिपि भी उन्हीं लिपियों में से एक हैं. टांकरी लिपि हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ उत्तर भारत के पर्वतीय इलाकों में प्राचीन काल से प्रयोग में लाई जाती रही और मंदिरों के इतिहास के अलावा व्यापारियों का लेखा-जोखा, ताम्रपत्र सहित कई अन्य चीजें हैं जिन्हें इसी लिपि के माध्यम से लिखा गया.

कुल्लू का युवा इस लिपि का दे रहा ज्ञान

अब इस लिपि की जानकारी न होने के चलते कई मंदिरों का वजूद भी खो सकता है. ऐसे में कुल्लू के युवा यतिन पंडित इस लिपि के संरक्षण के लिए आगे आए हैं. वह युवाओं को इस लिपि का ज्ञान दे रहे हैं ताकि इस पुरातन लिपि को बचाया जा सके.

टांकरी लिपि में हैं कई राजस्व रिकॉर्ड

टांकरी लिपि ब्राह्मी परिवार की लिपियों का ही हिस्सा है जो कश्मीरी में प्रयोग होने वाली शारदा लिपि से निकली है. जम्मू कश्मीर की डोगरी, हिमाचल प्रदेश की चम्ब्याली, कुल्लुवी, और उत्तराखंड की गढ़वाली समेत कई भाषाएं टांकरी में लिखी जाती थीं. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, ऊना, मंडी, बिलासपुर, हमीरपुर में व्यापारिक राजस्व रिकॉर्ड और संचार के लिए टांकरी का ही प्रयोग होता था.

बदलते समय के साथ टांकरी का इस्तेमाल कम होता गया और आज टांकरी लिपि लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है. कुल्लू के यतिन पंडित लुप्त हो रही टांकरी लिपि को जिंदा रखने में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं.

अपनी इस कोशिश में यतिन हिमाचल के अलावा पंजाब, दिल्ली, इंग्लैंड और जर्मनी के 210 लोगों को टांकरी का ज्ञान दे चुके हैं. यतिन को सिर्फ टांकरी लिपि का ज्ञान ही नहीं है बल्कि वह शारदा लिपि का भी अच्छा ज्ञान रखते हैं साथ ही भट्‌टाक्षरी, पाबुचि, भोटी लिपियां भी सीख रहे हैं.

क्यों सीखना जरूरी है टांकरी लिपि?

यतिन पंडित ने बताया कि ये प्राचीन लिपियां हमारी पहचान रही हैं. इस विरासत को अब बचाने की जरूरत है. टांकरी लिपि को सीखना जरूरी है क्योंकि पर्वतीय क्षेत्र का शुरुआती इतिहास इसी लिपि में लिखा गया. हमारे मंदिर, हमारे रीति-रिवाज, हमारे देव समाज के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए यह लिपि सीखना बहुत जरूरी है.

टांकरी की बनाई जा रही एंड्रॉएड एप्लीकेशन

टांकरी लिपि का कम्प्यूटर के लिए पहला फॉन्ट साम्भ संस्था 2016 में तैयार कर चुकी है. उसी को आधार बनाकर अब कम्प्यूटर के लिए टांकरी का दूसरा फॉन्ट भी तैयार किया जा रहा है. इसमें हिमाचली बोलियों को ध्यान में रखते हुए कुछ विशेष परिवर्तन किए जा रहे हैं. टांकरी लिपि का प्रसार अधिक से अधिक हो उसके लिए एंड्रॉएड प्लेटफॉर्म के लिए भी टांकरी की एप्लीकेशन बनाने का काम जारी है.

हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर सूरत ठाकुर ने बताया "अब हिमाचल प्रदेश सरकार भी टांकरी लिपि के संरक्षण की दिशा में काम कर रही है और हिमाचली बोली में टांकरी लिपि का उपयोग हो इसके बारे में भाषा विभाग के माध्यम से कार्य किया जा रहा है. टांकरी लिपि एक समृद्ध लिपि है. राजा-महाराजा एक दूसरे को संदेश देने के लिए विशेषकर इसी लिपि का प्रयोग करते थे. कई राजाओं की संधियों में भी इसी लिपि का प्रयोग हुआ है. अब युवा भी इस लिपि को जानने में अपनी रुचि दिखा रहे हैं."

ये भी पढ़ें: हिमाचल में अब तक इतनी महिलाओं को मिले 1500 रुपए, करीब ढाई लाख महिलाओं की बढ़ाई पेंशन

ये भी पढ़ें: हिमाचल में परिवार की सिर्फ एक ही महिला को मिलेंगे 1500 रुपये, विधानसभा में कैबिनेट मंत्री का जवाब

टांकरी लिपि का महत्व (ETV Bharat)

कुल्लू: भारत में प्राचीन काल में कई ऐसी लिपियां सामने आईं और उन लिपियों के माध्यम से भारत का विस्तृत इतिहास भी लिखा गया. आज भी कई लिपियाँ भारत के कई अन्य राज्यों में प्रचलित हैं और पुरातन मंदिरों का इतिहास भी इन्हीं लिपियों में अंकित है लेकिन अब इन लिपियों की जानकारी कम ही लोगों को है.

उत्तर भारत में प्रयोग की जाने वाली टांकरी लिपि भी उन्हीं लिपियों में से एक हैं. टांकरी लिपि हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ उत्तर भारत के पर्वतीय इलाकों में प्राचीन काल से प्रयोग में लाई जाती रही और मंदिरों के इतिहास के अलावा व्यापारियों का लेखा-जोखा, ताम्रपत्र सहित कई अन्य चीजें हैं जिन्हें इसी लिपि के माध्यम से लिखा गया.

कुल्लू का युवा इस लिपि का दे रहा ज्ञान

अब इस लिपि की जानकारी न होने के चलते कई मंदिरों का वजूद भी खो सकता है. ऐसे में कुल्लू के युवा यतिन पंडित इस लिपि के संरक्षण के लिए आगे आए हैं. वह युवाओं को इस लिपि का ज्ञान दे रहे हैं ताकि इस पुरातन लिपि को बचाया जा सके.

टांकरी लिपि में हैं कई राजस्व रिकॉर्ड

टांकरी लिपि ब्राह्मी परिवार की लिपियों का ही हिस्सा है जो कश्मीरी में प्रयोग होने वाली शारदा लिपि से निकली है. जम्मू कश्मीर की डोगरी, हिमाचल प्रदेश की चम्ब्याली, कुल्लुवी, और उत्तराखंड की गढ़वाली समेत कई भाषाएं टांकरी में लिखी जाती थीं. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, ऊना, मंडी, बिलासपुर, हमीरपुर में व्यापारिक राजस्व रिकॉर्ड और संचार के लिए टांकरी का ही प्रयोग होता था.

बदलते समय के साथ टांकरी का इस्तेमाल कम होता गया और आज टांकरी लिपि लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है. कुल्लू के यतिन पंडित लुप्त हो रही टांकरी लिपि को जिंदा रखने में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं.

अपनी इस कोशिश में यतिन हिमाचल के अलावा पंजाब, दिल्ली, इंग्लैंड और जर्मनी के 210 लोगों को टांकरी का ज्ञान दे चुके हैं. यतिन को सिर्फ टांकरी लिपि का ज्ञान ही नहीं है बल्कि वह शारदा लिपि का भी अच्छा ज्ञान रखते हैं साथ ही भट्‌टाक्षरी, पाबुचि, भोटी लिपियां भी सीख रहे हैं.

क्यों सीखना जरूरी है टांकरी लिपि?

यतिन पंडित ने बताया कि ये प्राचीन लिपियां हमारी पहचान रही हैं. इस विरासत को अब बचाने की जरूरत है. टांकरी लिपि को सीखना जरूरी है क्योंकि पर्वतीय क्षेत्र का शुरुआती इतिहास इसी लिपि में लिखा गया. हमारे मंदिर, हमारे रीति-रिवाज, हमारे देव समाज के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए यह लिपि सीखना बहुत जरूरी है.

टांकरी की बनाई जा रही एंड्रॉएड एप्लीकेशन

टांकरी लिपि का कम्प्यूटर के लिए पहला फॉन्ट साम्भ संस्था 2016 में तैयार कर चुकी है. उसी को आधार बनाकर अब कम्प्यूटर के लिए टांकरी का दूसरा फॉन्ट भी तैयार किया जा रहा है. इसमें हिमाचली बोलियों को ध्यान में रखते हुए कुछ विशेष परिवर्तन किए जा रहे हैं. टांकरी लिपि का प्रसार अधिक से अधिक हो उसके लिए एंड्रॉएड प्लेटफॉर्म के लिए भी टांकरी की एप्लीकेशन बनाने का काम जारी है.

हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर सूरत ठाकुर ने बताया "अब हिमाचल प्रदेश सरकार भी टांकरी लिपि के संरक्षण की दिशा में काम कर रही है और हिमाचली बोली में टांकरी लिपि का उपयोग हो इसके बारे में भाषा विभाग के माध्यम से कार्य किया जा रहा है. टांकरी लिपि एक समृद्ध लिपि है. राजा-महाराजा एक दूसरे को संदेश देने के लिए विशेषकर इसी लिपि का प्रयोग करते थे. कई राजाओं की संधियों में भी इसी लिपि का प्रयोग हुआ है. अब युवा भी इस लिपि को जानने में अपनी रुचि दिखा रहे हैं."

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Last Updated : Sep 8, 2024, 9:40 PM IST
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