सरगुजा : डीलिस्टिंग को लेकर एक बार फिर देशभर में बवाल शुरू हो सकता है. करीब 10 लाख की संख्या में जनजातीय समाज के लोग दिल्ली में आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं. पारंपरिक ग्राम सभाओं में डीलिस्टिंग कानून के लिये प्रस्ताव पारित कराए जा रहे हैं. इसके साथ ही पूरे देश से 1 करोड़ पोस्ट कार्ड प्रधानमंत्री को भेजने की तैयारी है, जिनमें 5 लाख पोस्ट कार्ड भेजे जा चुके हैं. अकेले सरगुजा संभाग से 1 लाख पोस्टकार्ड भेजने की तैयारी है, जिसमें से 30 हजार पोस्ट कार्ड भेजे गये हैं.
क्या है डीलिस्टिंग ? : ह पूरा वाकया आदिवासियों को मिल रहे आरक्षण का है, जिसका लाभ वो लोग भी ले रहे हैं, जिन्होंने आदिवासी परम्परा को छोड़ दिया और दूसरे धर्मों को अपना चुके हैं. जनजातीय समाज का कहना है कि ऐसे लोगों को लिस्टेड करके आरक्षण की सूची से बाहर किया जाए. इसलिए इस कानून को नाम दिया जा रहा है डीलिस्टिंग.
धर्मांतरण के चलते उठी डिलिस्टिंग की मांग : इस विषय पर ईटीवी भारत ने जनजातीय समाज के प्रान्तीय सह संयोजक इंदर भगत से बात की. उन्होंने बताया, " 'जो नहीं भोलेनाथ का, वो नहीं हमारी जात का' इस तरह के नारों के साथ हमारा आंदोलन आगे बढ़ रहा है. ये लड़ाई तो चल रही है लेकिन अब आगे हम लोग गांव में उपवास, ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित कराने जैसे कदम उठ रहे हैं. दिल्ली में दिसंबर में हुंकार रैली प्रस्तावित है, जिसमें देश भर से करीब 10 लाख लोगों के पहुंचने की तैयारी है. वर्तमान में प्रधानमंत्री को पोस्टकार्ड में लिखकर डीलिस्टिंग की मांग की जा रही है. देश भर से 1 करोड़ पोस्टकार्ड भेजे जाने हैं. अब तक 5 लाख पोस्टकार्ड भेजे जा चुके हैं."
"संविधान में अनुच्छेद 342 में संसोधन करके धर्मान्तरण कर चुके आदिवासियों को आरक्षण की सूची से बाहर किया जाए. अनुच्छेद 341 में आरक्षण की परिभाषा के साथ आरक्षण दिया गया था, उसमें स्पष्ट उल्लेख है कि 'वह समाज हिन्दू है और अगर हिन्दू धर्म को छोड़कर भारतीय धर्मो में रहता है, तो उसे आरक्षण की सुविधाएं मिलती हैं. लेकिन जैसे ही वह धर्मांतरण कर ईसाई या मुस्लिम बनता है, तो उसका अरक्षण स्वतः समाप्त हो जाता है." - इंदर भगत, प्रान्तीय सह संयोजक, जनजातीय समाज
जनजातीय समाज की क्या है मांग ? : जनजातीय समाज की मांग है कि जो प्रावधान अनुच्छेद 341 में अनुसूचित जाति वर्ग को दिया गया है, वही प्रावधान अनुच्छेद 342 में किया जाए. ऐसे अनुसूचित जनजाती के लोग, जो ईसाई या मुस्लिम बन गये हैं. उनको जनजाति की सूची से बाहर करने का मांग पत्र हम प्रधानमंत्री जी को भेज रहे हैं. क्योंकि जनजाति की सूची में शामिल होकर यही लोग सबसे अधिक आरक्षण का लाभ ले रहे हैं.
आंदोलन की किया है मुख्य वजह ? : इंदर भगत का कहना है कि, "जब संविधान बन रहा था, बाबा साहब ने अनुसूचित जाति के लोगों को आरक्षण के साथ भारतीय धर्मों में रहने की परिभाषा के साथ इस जाति को अनुच्छेद 341 में सुरक्षित कर दिया. वहीं अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण के लिए अनुच्छेद 342 में सभी धर्मिक स्वतंत्रता दे दी."
"एक तरफ हमको आरक्षण दिया गया है, हमारी रूढ़ी पद्धति, पूजा पद्धति, विशिष्ट परंपराओं के कारण. लेकिन दूसरी तरफ ये लोग (धर्मांतरण करने वाले जनजातीय लोग) समाज को छोड़कर हमारा ही विरोध कर रहे हैं और आरक्षण का लाभ भी रहे हैं. इस कमी को दूर करने जनजातीय सुरक्षा मंच पूरे देश मे आंदोलनरत है." - इंदर भगत, प्रान्तीय सह संयोजक, जनजातीय समाज
जनजातीय समाज का मानना है कि आदिवासियों की परंपरा छोड़ने से समाज में कुरितियां भी पनप रही है. समूह में रहने वाला समाज विघटित हो रहा है. परिवार बिखर रहे हैं. इसलिए अगर डीलिस्टिंग कानून आता है तो इससे जनजातीय समाज के लोगों को ना सिर्फ अरक्षण का सही लाभ मिलेगा, बल्कि उसका सामाजिक ढांचा भी सही होगा.