रांची: झारखंड की चार लोकसभा सीटों के लिए मैदान में उतरे कुल 45 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में बंद हो चुकी है. अब सभी के पास एक ही सवाल है कि खूंटी, सिंहभूम, लोहरदगा और पलामू में जीत किसकी होने जा रही है. यह भी चर्चा है कि कहीं चारों सीटों पर 50-50 का खेल तो नहीं हो जाएगा. राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले सभी लोग एक-दूसरे से समीकरण को समझना चाह रहे हैं.
ऐसा इसलिए क्योंकि इस बार के चुनाव के बाद हिसाब निकालना मुश्किल हो रहा है. जितनी मुंह उतनी बातें. कैमरे के सामने सभी दलों के नेता तो जीत के दावे कर रहे हैं लेकिन ऑफ द रिकॉर्ड बात करने पर ज्यादातर का एक ही जवाब है कि कुछ कहा नहीं जा सकता. किसी दल को अंडरकरेंट पर भरोसा है तो किसी को ध्रुवीकरण पर. वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो सेंधमारी के गणित में रिजल्ट ढूंढ रहे हैं.
दरअसल, 2014 के चुनाव में मोदी नाम की लहर थी. तब प्रत्याशी गौण हो गये थे. 2019 में पुलवामा हमले के बाद राष्ट्रवाद और सबका साथ, सबका विकास के नारे के सहारे भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला. लेकिन इस बार भाजपा का दावा है ' अबकी बार, 400 पार '. वहीं इंडिया गठबंधन फुल कॉन्फिडेंस में दावे कर रहा है कि भाजपा को इस बार 150 से ज्यादा सीट नहीं मिलेगी. लिहाजा, जनता भी कंफ्यूज हो गयी है. लेकिन झारखंड में चर्चा पहले चरण में हुई चार सीटों को लेकर हो रही है.
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर का कहना है कि चारों सीटों पर टाइट फाइट कही जा सकती है. दोनों गठबंधन की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. दोनों गठबंधन के बड़े-बड़े नेता दावे और आरोप-प्रत्यारोप की झड़ी लगाकर गये हैं लेकिन वोटरों को इस बार समझ पाना सबके लिए चुनौती बन गई है. अब इस साइलेंस का मतलब सभी अपने-अपने हिसाब से निकाल सकते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार और चुनाव विश्लेषक चंदन मिश्रा ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में इसी ओर इशारा किया है. उन्होंने कहा कि मेरे ख्याल से चारों सीट पर अच्छी लड़ाई हुई है. सिंहभूम में गीता कोड़ा को अपर एज मिलने की संभावना दिख रही है. क्योंकि उनको ' हो ' समुदाय का साथ मिला है. कांग्रेस के पुराने वर्कर उनके साथ रहे हैं. वैसे जोबा मांझी के लिए झामुमो के विधायकों ने पूरी मेहनत की है. यहां ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के वोट का अंतर निर्णायक भूमिका अदा कर सकता है.
वहीं, खूंटी में टफ फाइट कही जा सकती है. भाजपा के अर्जुन मुंडा चौतरफा घिरे नजर आ रहे हैं. विधानसभा स्तर पर देखें तो हर पॉकेट में अलग-अलग प्रभाव है. ईसाई और मुस्लिम वोट का एकजुट होना जहां भाजपा के लिए परेशानी का सबब हो सकता है वहीं सरना वोट में भी बिखराव का अनुमान भी लगाया जा रहा है. कुल मिलाकर कहें तो खूंटी में कांग्रेस के कालीचरण मुंडा और भाजपा के अर्जुन मुंडा के बीच कांटे की टक्कर हैं.
लोहरदगा में चमरा लिंडा की वजह से त्रिकोणीय मुकाबले की बात हो रही थी. लेकिन ऐसा नहीं दिखा. चंदन मिश्रा ने कहा कि स्थानीय स्तर पर मिले फीडबैक बता रहे हैं कि चमरा लिंडा को सेंधमारी करने में खास सफलता हासिल नहीं हुई है. जिस वजह से कांग्रेस को लाभ मिल सकता है. वैसे कई पॉकेट में भाजपा के लिए जबरदस्त उत्साह भी देखने को मिला है. लिहाजा, लोहरदगा सीट पर भी मामला नेक टू नेक दिख रहा है.
जहां तक पलामू की बात है तो यहां वीडी राम को एज है. पिछली बार वीडी राम साढ़े चार लाख वोट से ज्यादा के अंतर से जीते थे. वहीं पहली बार चुनावी मैदान में उतरीं राजद की ममता भुइंया के लिए जीत के इतने बड़े अंतर को पाटना आसान नहीं दिख रहा है. वैसे तेजस्वी के चुनाव प्रचार के बाद पलामू की हवा में थोड़ी हलचल जरुर हुई थी. रही बात बसपा के कामेश्वर बैठा की तो उनका कोई प्रभाव देखने को नहीं मिला है. बोलचाल की भाषा में कहें तो इस बार के चुनाव में वोटरों ने दबी जुबान से ही सही चारों सीटों पर ' मोदी हटाओ या मोदी लाओ ' के लाइन पर ही वोटिंग की है. वैसे इस रहस्य पर से 4 जून को ही पर्दा उठ पाएगा.
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