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मजदूर दिवस पर जानिए दिल्ली में क्या हैं मज़दूरों के मुद्दे, कैसे मज़दूर विरोधी है चार लेबर कोड ? - INTERNATIONAL LABOUR DAY 2024

international labour day special : दुनिया के सभी देशों की तरह भारत में भी एक मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य उस दिन मजदूरों की बेहतरी के लिए काम करने और मजदूरों में उनके हक के प्रति जागरूकता लाना होता है. सरकार भले ही मजदूरों के लिए कई योजनाएं चलाने की बात करती हो मगर हकीकत यह है कि आज भी कई ठेका मजदूर हैं, जिनकी आवाज मजदूर संगठनों या राज्य की सरकार तक भी नहीं पहुंच पाती. ऐसे में मजदूर दिवस को सही मायने में मजदूरों को उचित व्यवस्था देने के खास दिन के रूप में मनाया जाना चाहिए.

जानिए राजधानी में क्या हैं मज़दूरों के मुद्दे
जानिए राजधानी में क्या हैं मज़दूरों के मुद्दे
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : May 1, 2024, 12:21 PM IST

मजदूर दिवस

नई दिल्ली: दुनियाभर में 1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य मजदूरों की समस्याओं और संघर्षों को समाज के सामने उजागर करना है. साथ ही उनके अधिकारों, सामाजिक न्याय और कामकाजी परिस्थितियों पर बात करना, दिक्कतों को जानने और इन स्थितियों में सुधार करने से जुड़ा हुआ है. ये असल में मजदूरों के प्रति, उनके अधिकारों के प्रति आम लोगों और खुद मजदूरों में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है. दरअसल, इस दिन की शुरुआत भी ऐसे ही हुई थी, साल 1886 में मजदूरों ने लगातार 15-15 घंटे काम करने से मना कर दिया था. तब से शुरूआत हुई मजदूरों को हक के मांग की. कोरोना काल के दौरान लगे लॉक डाउन में मजदूओं के बड़ी तादाद ने अपने मूल निवास स्थल का रुख किया था. आज भी कई मजदूर ऐसे हैं जो दोबारा अपने कार्यस्थल पर वापस ही नहीं आ पाए. राजधानी में कई संगठन ऐसे हैं, जो मजदूरों के हित को लेकर काम करते हैं. इस एक बहुचर्चित संगठन है भारतीय ट्रेड यूनियनों का केंद्र (CITU). सीटू के जनरल सेक्रेटरी अनुराग सक्सेना से 'ETV भारत' से राजधानी में मजदूरों की समस्याओं को लेकर बातचीत की.

नए लेबर कोड से मज़दूरों को खतरा

उन्होंने बताया कि 2014 में आये नए लेबर कोड्स को लेकर सभी राजनीतिक दलों में सहमति है. इसको सभी दबाव के साथ लागू करना चाहते हैं. लेकिन मज़दूर संगठन और खुद मज़दूर वर्ग चाहता है. चार लेबर कोड्स को रद्द किया जाए. हम सभी जानते हैं 2020-21 में किसानों के 3 बिलपास किये गए थे उसी समय मज़दूर विरोधी चार लेबर कोड्स को पास किया गया था. इस दौरान कांग्रेस पार्टी ने भी इसका समर्थन किया था वहीं हर मज़दूर संगठन इसका शुरू से ही विरोध करता आ रहा है. विरोध इसलिए किया गया क्योंकि मज़दूर संगठनों का मानना है कि इसके लागू होने से मज़दूरों को मिलने वाले सभी अधिकार खत्म हो जायेंगे. देशभर की ट्रेड यूनियनों ने भाजपा सरकार द्वारा लाए गए नए लेबर कोड्स का तीखा विरोध किया है. यूनियनों का कहना है कि नए लेबर कोड के आने से मज़दूरों के लगभग सभी अधिकारों को छीन लिया जायेगा.

बता दें कि नए लेबर कोड में काम के घंटों और साप्ताहिक छुट्टियों को लेकर कई बदलाव किये गए हैं. इसमें एक सप्ताह में चार दिन ही काम करने की बात कही गई है. वही दूसरी तरफ एक सप्ताह में तीन छुट्टियों की बात भी की गयी है. गौर करने वाली बात ये है कि इस नियम के बाद हर रोज 12-12 घंटे काम करना होगा. सरकार का प्रस्ताव है कि सप्ताह में एक कर्मचारी को कम से कम 48 घंटे काम करना ही होगा. इसी तरह सरकार अर्नड लीव में भी बड़े बदलाव करने की तैयारी कर रही है. अगर यह लागू कर दिया जाता है तो नया वेतन कोड कर्मचारियों को आगे ले जाने पर 300 छुट्टियों तक नकद करने की अनुमति देगा. खासतौर पर छुट्टियों की पात्रता (leave eligibility) को एक वर्ष में काम के 240 दिनों से घटाकर 180 दिन कर दिया गया है. इसके तहत मज़दूरों से एक समय सीमा से लिए कॉन्ट्रेट साइन करवाया जायेगा. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है अग्निवीर स्कीम. इसमें युवाओं को मात्र चार वर्ष के लिए ही नौकरी दी जाएगी.

नए श्रम कानून के लागू होने से टेक होम सैलरी ( NWCTHS) घट जाएगी. वही दूसरी ओर PF कंट्रीब्यूशन के साथ कर्मचारी की ग्रेच्युटी बढ़ जाएगी. नई व्यवस्था में ग्रेच्युटी की गणना ‘डीम्ड’ बेसिक सैलरी (Deemed Basic Salary) के आधार पर होगी, जो कि टोटल सैलरी के 50 फीसदी से कम नहीं होनी चाहिए. इसके अलावा अनुराग का मानना है कि मज़दूरों के रोज़गार को समय सीमा में नहीं बांधा जाए, बल्कि उन्हें वर्ष के 365 दिन और वर्षों तक रोज़गार के अधिकार दिया जाएं.

लॉक डाउन के बाद नहीं लौटे कई मज़दूर

कोरोना काल मज़दूरों के लिए सबसे मुश्किल का दौर था इस समय लाखों की संख्या में मज़दूरों ने पलायन किया. कई तो पैदल ही सड़कों पर चल कर अपने गांव वापस गए. अनुराग ने बताया कि 2020 में जिस संख्या में मज़दूरों ने दिल्ली से पलायन किया था उनमें से मज़दूरों की वापसी काफी कम संख्या में हुई है. इसको लेकर बाजार में व्यापारी भी परेशान हैं. इसके पीछे दो कारण है पहले की मज़दूरी में गिरावट और दूसरा ठेकेदारों द्वारा काम की जानकारी न देना. इसको देखते हुए कई मज़दूरों ने गांव में ही छोटा मोटा कारोबार करना शुरू कर दिया. वहीं कई मनरेगा में मज़दूरी करने लगे.

रोज़गार खोने का डर

वर्तमान में कई संगठन मज़दूरों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं फिर भी उनका विकास उस तरीके से नहीं हो पा रहा है जिस तरह से होना चाहिए. अनुराग ने बताया कि किसी भी लड़ाई को अकेले नहीं जीता जा सकता. जीतने के लिए संगठित होना बेहद जरुरी है. लेकिन इस समय मज़दूर संगठित होने से डरते हैं इसका बड़ा कारण है अस्थाई रोज़गार. उनके मन में डर है कि अधिकारों की लड़ाई में उनकी नौकरी पर खतरा हो सकता है. तो उनको जो और जितना भी मिल रहा है वह इसमें खुद रहने के लिए मज़बूर हैं.

न्यूनतम वेतन बड़ी समस्या

मज़दूरों की सबसे बड़ी लड़ाई मज़दूरी को लेकर है. 2022 में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली के अकुशल, अर्ध कुशल और अन्य श्रमिकों का महंगाई भत्ता बढ़ाने का आदेश जारी किया था. साथ ही सभी श्रमिकों और कर्मचारियों को बढ़ी हुई दर के साथ भुगतान सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया था. उन्होंने कहा था कि दिल्ली में मजदूरों को मिलने वाला न्यूनतम वेतन देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है. महंगाई की मार झेल रहे श्रमिक वर्ग को न्यूनतम मजदूरी बढ़ने से राहत मिलेगी. इस दौरान अकुशल मज़दूरों का मासिक वेतन 16064 से बढ़कर 16506 हुए. अर्ध-कुशल मज़दूरों का मासिक वेतन 17,693 से बढ़कर 18,187 हुआ है. इसके अलावा केजरीवाल सरकार दिल्ली के मज़दूरों को राहत देने के लिए हर 6 महीने में महंगाई भत्ते की भी बढ़ोत्तरी कि थी. लेकिन CITU के जनरल सेक्रेटरी का मानना है कि राजधानी में मज़दूरों का न्यूनतम वेतन 26000 रुपए प्रति माह होना चाहिए. इसको लेकर CITU ने राष्ट्रीय स्तर भी मांग उठाई है. दुखद बात यह है कि दिल्ली सरकार द्वारा जो घोषित न्यूनतम मजदूरी है वह भी सही तरह से मज़दूरों तक नहीं पहुँचती है.

फैक्ट्रियों में है सुरक्षा मानकों का आभाव

राजधानी में 13 मई 2022 को हुए मुंडका आगजनी कांड को कोई नहीं भूल सकता है. इस दौरान भारी संख्या में महिला मज़दूरों ने फैक्ट्री की तीसरी मंज़िल के कूद कर अपनी जान बचाई थी. वही करीब 27 महिलाओं की आग में झुलसने के करना मौत ही गयी थी. इतनी बड़ी घटना के बाद भी राजधानी में लगातार ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं. मुंडका कांड में जान गंवाने वाली महिलाओं के परिवारों की मुआवजा उपलब्ध करने में CITU ने अहम भूमिका निभाई थी. अनुराग ने बताया कि आगजनी का मुद्दा सरकार कि सोच पर सवाल खड़ा करता है. कार्य स्थल पर सुरक्षा के मामले को लेकर कई प्रावधान हैं. इसके मुताबिक फैक्ट्रियों के अंदर बाकायदा सुरक्षा यंत्र होने चाहिए. लेकिन सरकार इसको गंभीरता से नहीं लेती है. इतना ही नहीं राजधानी में इंड्रस्टियल एरिया में बनी फैक्ट्रियों और रेजिडेंस में बनी फैक्ट्रियों में भी सरकार भेदभाव करती है. दिल्ली में हज़ारों की संख्या में छोटी बड़ी फैक्ट्री हैं. लेकिन लगभग 33 ऑथोराइज़्ड इंडस्ट्रियल ज़ोन हैं जहाँ सरकार सुरक्षा मानकों की जांच सीधे तौर पर कर सकती हैं. इसको लेकर हाल ही में CITU ने लेबर मिनिस्टर से मुलाकत की थी. इसमें उनको फैक्ट्रियों के अंदर मज़दूरों को मिलने वाली सुविधाओं को लेकर बातचीत हुई थी.

अनुराग आगे बताते हैं कि फैक्ट्री में अंदर सुरक्षा का मानकों के अभाव के पीछे एक और मुख्य वजह कॉस्ट कटिंग भी है. ज्यादातर फैक्ट्री मालिक पैसों की बचत करने के चक्कर में सुरक्षा उपकरणों को नहीं लगाते हैं. लेकिन बीते दो वर्षों में सामने आए मुंडका और अलीपुर अग्निकांड में मालिक के पिता की भी जान चली गयी थी. सरकार को इस मसले को काफी गंभीरता से देखने की जरुरत है.

ई श्रम पोर्टल है मददगार

भारत में लगभग 50 फीसदी जनसंख्या मज़दूर के तौर पर काम करती है. लेकिन अभी तक इसका सही आंकड़ा सामने नहीं आ पाया है. हर वर्ग के मज़दूरों की संख्या जो जानने और उनको सुविधाएं देने के लिए मोदी सरकार ने 26 अगस्त, 2021 को ई श्रम पोर्टल की शुरुआत की थी. इस पोर्टल के जरिये सरकार देश के असंगठित क्षेत्र के सभी मज़दूरों के स्थिति देखना चाहती है. साथ ही सभी मज़दूरों को कल्याण योजनाओं का लाभ प्रदान करना भी उद्देश्य भी था. अनुराग ने बताया कि तत्कालीन डेटा के मुताबिक करीब 20-22 करोड़ मज़दूरों ने ई श्रम पोर्टल पर पंजीकरण किया हैं. वहीं दिल्ली में 36 लाख मज़दूरों ने इसमें अपना पंजीकरण करा लिया है. यह सरकार की एक अच्छी पहल है. मगर इसका लाभ अबतक कर्मचारी को नहीं मिल पाया है.

ये भी पढ़ें : मजदूर दिवस स्पेशल: सिर्फ कागज़ों तक सिमट कर रह गई 13 लाख मजदूरों की फ्री बस यात्रा, दिल्ली सरकार का वादा फेल
गौरतलब है कि आगामी 25 मई को राजधानी में इलेक्शन है. वहीं कई राजनीतिक पार्टियां ऐसे भी हैं जो मज़दूरों को प्रलोभन दे कर वोट डलवाती हैं. अनुराग ने बताया कि यह बात सही है. लेकिन इसमें मज़दूरों का कोई दोष नहीं है. अगर राजनीतिक दल सही तौर पर काम करेंगे को किसी को किस तरह की लालच देने की जरुरत ही नहीं होगी.

ये भी पढ़ें : क्यों मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस, जानें इस दिन का इतिहास और महत्व

मजदूर दिवस

नई दिल्ली: दुनियाभर में 1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य मजदूरों की समस्याओं और संघर्षों को समाज के सामने उजागर करना है. साथ ही उनके अधिकारों, सामाजिक न्याय और कामकाजी परिस्थितियों पर बात करना, दिक्कतों को जानने और इन स्थितियों में सुधार करने से जुड़ा हुआ है. ये असल में मजदूरों के प्रति, उनके अधिकारों के प्रति आम लोगों और खुद मजदूरों में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है. दरअसल, इस दिन की शुरुआत भी ऐसे ही हुई थी, साल 1886 में मजदूरों ने लगातार 15-15 घंटे काम करने से मना कर दिया था. तब से शुरूआत हुई मजदूरों को हक के मांग की. कोरोना काल के दौरान लगे लॉक डाउन में मजदूओं के बड़ी तादाद ने अपने मूल निवास स्थल का रुख किया था. आज भी कई मजदूर ऐसे हैं जो दोबारा अपने कार्यस्थल पर वापस ही नहीं आ पाए. राजधानी में कई संगठन ऐसे हैं, जो मजदूरों के हित को लेकर काम करते हैं. इस एक बहुचर्चित संगठन है भारतीय ट्रेड यूनियनों का केंद्र (CITU). सीटू के जनरल सेक्रेटरी अनुराग सक्सेना से 'ETV भारत' से राजधानी में मजदूरों की समस्याओं को लेकर बातचीत की.

नए लेबर कोड से मज़दूरों को खतरा

उन्होंने बताया कि 2014 में आये नए लेबर कोड्स को लेकर सभी राजनीतिक दलों में सहमति है. इसको सभी दबाव के साथ लागू करना चाहते हैं. लेकिन मज़दूर संगठन और खुद मज़दूर वर्ग चाहता है. चार लेबर कोड्स को रद्द किया जाए. हम सभी जानते हैं 2020-21 में किसानों के 3 बिलपास किये गए थे उसी समय मज़दूर विरोधी चार लेबर कोड्स को पास किया गया था. इस दौरान कांग्रेस पार्टी ने भी इसका समर्थन किया था वहीं हर मज़दूर संगठन इसका शुरू से ही विरोध करता आ रहा है. विरोध इसलिए किया गया क्योंकि मज़दूर संगठनों का मानना है कि इसके लागू होने से मज़दूरों को मिलने वाले सभी अधिकार खत्म हो जायेंगे. देशभर की ट्रेड यूनियनों ने भाजपा सरकार द्वारा लाए गए नए लेबर कोड्स का तीखा विरोध किया है. यूनियनों का कहना है कि नए लेबर कोड के आने से मज़दूरों के लगभग सभी अधिकारों को छीन लिया जायेगा.

बता दें कि नए लेबर कोड में काम के घंटों और साप्ताहिक छुट्टियों को लेकर कई बदलाव किये गए हैं. इसमें एक सप्ताह में चार दिन ही काम करने की बात कही गई है. वही दूसरी तरफ एक सप्ताह में तीन छुट्टियों की बात भी की गयी है. गौर करने वाली बात ये है कि इस नियम के बाद हर रोज 12-12 घंटे काम करना होगा. सरकार का प्रस्ताव है कि सप्ताह में एक कर्मचारी को कम से कम 48 घंटे काम करना ही होगा. इसी तरह सरकार अर्नड लीव में भी बड़े बदलाव करने की तैयारी कर रही है. अगर यह लागू कर दिया जाता है तो नया वेतन कोड कर्मचारियों को आगे ले जाने पर 300 छुट्टियों तक नकद करने की अनुमति देगा. खासतौर पर छुट्टियों की पात्रता (leave eligibility) को एक वर्ष में काम के 240 दिनों से घटाकर 180 दिन कर दिया गया है. इसके तहत मज़दूरों से एक समय सीमा से लिए कॉन्ट्रेट साइन करवाया जायेगा. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है अग्निवीर स्कीम. इसमें युवाओं को मात्र चार वर्ष के लिए ही नौकरी दी जाएगी.

नए श्रम कानून के लागू होने से टेक होम सैलरी ( NWCTHS) घट जाएगी. वही दूसरी ओर PF कंट्रीब्यूशन के साथ कर्मचारी की ग्रेच्युटी बढ़ जाएगी. नई व्यवस्था में ग्रेच्युटी की गणना ‘डीम्ड’ बेसिक सैलरी (Deemed Basic Salary) के आधार पर होगी, जो कि टोटल सैलरी के 50 फीसदी से कम नहीं होनी चाहिए. इसके अलावा अनुराग का मानना है कि मज़दूरों के रोज़गार को समय सीमा में नहीं बांधा जाए, बल्कि उन्हें वर्ष के 365 दिन और वर्षों तक रोज़गार के अधिकार दिया जाएं.

लॉक डाउन के बाद नहीं लौटे कई मज़दूर

कोरोना काल मज़दूरों के लिए सबसे मुश्किल का दौर था इस समय लाखों की संख्या में मज़दूरों ने पलायन किया. कई तो पैदल ही सड़कों पर चल कर अपने गांव वापस गए. अनुराग ने बताया कि 2020 में जिस संख्या में मज़दूरों ने दिल्ली से पलायन किया था उनमें से मज़दूरों की वापसी काफी कम संख्या में हुई है. इसको लेकर बाजार में व्यापारी भी परेशान हैं. इसके पीछे दो कारण है पहले की मज़दूरी में गिरावट और दूसरा ठेकेदारों द्वारा काम की जानकारी न देना. इसको देखते हुए कई मज़दूरों ने गांव में ही छोटा मोटा कारोबार करना शुरू कर दिया. वहीं कई मनरेगा में मज़दूरी करने लगे.

रोज़गार खोने का डर

वर्तमान में कई संगठन मज़दूरों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं फिर भी उनका विकास उस तरीके से नहीं हो पा रहा है जिस तरह से होना चाहिए. अनुराग ने बताया कि किसी भी लड़ाई को अकेले नहीं जीता जा सकता. जीतने के लिए संगठित होना बेहद जरुरी है. लेकिन इस समय मज़दूर संगठित होने से डरते हैं इसका बड़ा कारण है अस्थाई रोज़गार. उनके मन में डर है कि अधिकारों की लड़ाई में उनकी नौकरी पर खतरा हो सकता है. तो उनको जो और जितना भी मिल रहा है वह इसमें खुद रहने के लिए मज़बूर हैं.

न्यूनतम वेतन बड़ी समस्या

मज़दूरों की सबसे बड़ी लड़ाई मज़दूरी को लेकर है. 2022 में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली के अकुशल, अर्ध कुशल और अन्य श्रमिकों का महंगाई भत्ता बढ़ाने का आदेश जारी किया था. साथ ही सभी श्रमिकों और कर्मचारियों को बढ़ी हुई दर के साथ भुगतान सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया था. उन्होंने कहा था कि दिल्ली में मजदूरों को मिलने वाला न्यूनतम वेतन देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है. महंगाई की मार झेल रहे श्रमिक वर्ग को न्यूनतम मजदूरी बढ़ने से राहत मिलेगी. इस दौरान अकुशल मज़दूरों का मासिक वेतन 16064 से बढ़कर 16506 हुए. अर्ध-कुशल मज़दूरों का मासिक वेतन 17,693 से बढ़कर 18,187 हुआ है. इसके अलावा केजरीवाल सरकार दिल्ली के मज़दूरों को राहत देने के लिए हर 6 महीने में महंगाई भत्ते की भी बढ़ोत्तरी कि थी. लेकिन CITU के जनरल सेक्रेटरी का मानना है कि राजधानी में मज़दूरों का न्यूनतम वेतन 26000 रुपए प्रति माह होना चाहिए. इसको लेकर CITU ने राष्ट्रीय स्तर भी मांग उठाई है. दुखद बात यह है कि दिल्ली सरकार द्वारा जो घोषित न्यूनतम मजदूरी है वह भी सही तरह से मज़दूरों तक नहीं पहुँचती है.

फैक्ट्रियों में है सुरक्षा मानकों का आभाव

राजधानी में 13 मई 2022 को हुए मुंडका आगजनी कांड को कोई नहीं भूल सकता है. इस दौरान भारी संख्या में महिला मज़दूरों ने फैक्ट्री की तीसरी मंज़िल के कूद कर अपनी जान बचाई थी. वही करीब 27 महिलाओं की आग में झुलसने के करना मौत ही गयी थी. इतनी बड़ी घटना के बाद भी राजधानी में लगातार ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं. मुंडका कांड में जान गंवाने वाली महिलाओं के परिवारों की मुआवजा उपलब्ध करने में CITU ने अहम भूमिका निभाई थी. अनुराग ने बताया कि आगजनी का मुद्दा सरकार कि सोच पर सवाल खड़ा करता है. कार्य स्थल पर सुरक्षा के मामले को लेकर कई प्रावधान हैं. इसके मुताबिक फैक्ट्रियों के अंदर बाकायदा सुरक्षा यंत्र होने चाहिए. लेकिन सरकार इसको गंभीरता से नहीं लेती है. इतना ही नहीं राजधानी में इंड्रस्टियल एरिया में बनी फैक्ट्रियों और रेजिडेंस में बनी फैक्ट्रियों में भी सरकार भेदभाव करती है. दिल्ली में हज़ारों की संख्या में छोटी बड़ी फैक्ट्री हैं. लेकिन लगभग 33 ऑथोराइज़्ड इंडस्ट्रियल ज़ोन हैं जहाँ सरकार सुरक्षा मानकों की जांच सीधे तौर पर कर सकती हैं. इसको लेकर हाल ही में CITU ने लेबर मिनिस्टर से मुलाकत की थी. इसमें उनको फैक्ट्रियों के अंदर मज़दूरों को मिलने वाली सुविधाओं को लेकर बातचीत हुई थी.

अनुराग आगे बताते हैं कि फैक्ट्री में अंदर सुरक्षा का मानकों के अभाव के पीछे एक और मुख्य वजह कॉस्ट कटिंग भी है. ज्यादातर फैक्ट्री मालिक पैसों की बचत करने के चक्कर में सुरक्षा उपकरणों को नहीं लगाते हैं. लेकिन बीते दो वर्षों में सामने आए मुंडका और अलीपुर अग्निकांड में मालिक के पिता की भी जान चली गयी थी. सरकार को इस मसले को काफी गंभीरता से देखने की जरुरत है.

ई श्रम पोर्टल है मददगार

भारत में लगभग 50 फीसदी जनसंख्या मज़दूर के तौर पर काम करती है. लेकिन अभी तक इसका सही आंकड़ा सामने नहीं आ पाया है. हर वर्ग के मज़दूरों की संख्या जो जानने और उनको सुविधाएं देने के लिए मोदी सरकार ने 26 अगस्त, 2021 को ई श्रम पोर्टल की शुरुआत की थी. इस पोर्टल के जरिये सरकार देश के असंगठित क्षेत्र के सभी मज़दूरों के स्थिति देखना चाहती है. साथ ही सभी मज़दूरों को कल्याण योजनाओं का लाभ प्रदान करना भी उद्देश्य भी था. अनुराग ने बताया कि तत्कालीन डेटा के मुताबिक करीब 20-22 करोड़ मज़दूरों ने ई श्रम पोर्टल पर पंजीकरण किया हैं. वहीं दिल्ली में 36 लाख मज़दूरों ने इसमें अपना पंजीकरण करा लिया है. यह सरकार की एक अच्छी पहल है. मगर इसका लाभ अबतक कर्मचारी को नहीं मिल पाया है.

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गौरतलब है कि आगामी 25 मई को राजधानी में इलेक्शन है. वहीं कई राजनीतिक पार्टियां ऐसे भी हैं जो मज़दूरों को प्रलोभन दे कर वोट डलवाती हैं. अनुराग ने बताया कि यह बात सही है. लेकिन इसमें मज़दूरों का कोई दोष नहीं है. अगर राजनीतिक दल सही तौर पर काम करेंगे को किसी को किस तरह की लालच देने की जरुरत ही नहीं होगी.

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