रोहतासः बिहार के रोहतास में कभी नक्सलियों का खौफ इस कदर था कि लोग उनके डर से घरों से बाहर नहीं निकाल पाते थे. ऐसे में मतदान की बात सोचना भी बेमानी था. कभी रेड कॉरिडोर के नाम से जाने जाने वाला रोहतास जिले के सुदूर पहाड़ी इलाके में इस बार 2005 के बाद यानी 19 साल बाद पहली बार सरकारी विद्यालयों में बूथ बनाया गया है. प्रातः सात बजे से चार बजे अपराह्न तक मतदान होगा.
ग्रामीणों में खुशीः नागा टोली गांव कैमूर पर्वत शृंखला की गोद में बसा हुआ है. जहां एक बार फिर से मतदान केंद्र की स्थापना से न केवल ग्रामीणों को बड़ी राहत मिलेगी, बल्कि वे अपने अधिकारों का प्रयोग आसानी से कर सकेंगे. ग्रामीणों ने इस पहल का स्वागत किया है. इसे लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया है. इस नई सुविधा से गांव के बुजुर्ग, महिलाएं और युवा सभी अपने मताधिकार का प्रयोग बिना किसी कठिनाई के कर सकेंगे.
नक्सलियों का था आतंकः इलाके में नक्सलियों का ख़ौफ था. 2005 के बाद यहां इस इलाके में मतदान नहीं हो रहा रहा था. क्योंकि उग्रवादियों का डर था. ये बाधा उत्पन्न करते थे. इसके बाद बूथ को रोहतास प्रखंड मुख्यालय में बनाया गया. यहां वोट करने के लिए काफी दूरी तय कर पहाड़ी घाटी उतर कर जाना होता था. जो काफी कष्टदायक था. वोटिंग प्रतिशत भी कम हो रहा था. पर इस बार के लोकसभा चुनाव 2024 में 19 साल बाद यहां बूथ बनाये गए हैं. गांव के लोगों में खुशी है कि पहाड़ी पर बसे आधा दर्जन भर गांवों के लोग इस बार वोट करेंगे.
मतदान को लेकर उत्साहः यह इलाका सासाराम लोकसभा क्षेत्र में आता है. यहां कुल मिलाकर 203 घर है. उरांव जनजाति के घरों की संख्या 166, यादव जाति के घरों की संख्या 30, भुइंया जाति के 5 घर तथा पासवान जाति के 3 घर हैं. 1580 फीट ऊंचाई पर बसे नागाटोली गांव प्रकृति की गोद में बसा है. पंचायत समिति सदस्य मदन उरांव, पूर्व मुखिया कृष्णा सिंह यादव ने बताया कि इस बार लोगों में मतदान को लेकर उत्साह है.
पहाड़ से उतरकर नीचे आना होता है: रोहतास जिले के कैमूर पहाड़ी पर चारों तरफ जंगल, पहाड़ झरने व प्राचीन ऐतिहासिक किला रोहतास गढ़ से घिरे राजस्व ग्राम रोहतास का नागाटोली टोला उरांव जन जाति बाहुल्य है. जहां से निर्माणाधीन रोहतास अधौरा मुख्य मार्ग की दूरी आठ किलोमीटर रेहल गांव के निकट है. यहां के अधिकतर लोग अपने आवश्यकता की सामग्री खरीदने या फिर इलाज के लिए सड़क मार्ग पर आने के लिए करीब 1580 फीट पहाड़ी से पैदल उतरकर नीचे आते हैं.
मूलभूत सुविधाओं का अभावः इस गांव में आदिवासी आवासीय उत्क्रमिक मध्य विद्यालय है. जनजाति समुदाय के बच्चों के पढ़ने की व्यवस्था है. एक स्वास्थ्य उपकेंद्र जीर्णशीर्ण अवस्था में है. जहां दो एएनएम है. इसी उपकेंद्र पर पूरे गांव की चिकित्सा व्यवस्था निर्भर है. यातायात के नाम पर आठ किलोमीटर पहाड़ी पथरीली रास्ते तय कर लोग रेहल पहुंचते हैं या फिर 1580 फीट की ऊंचाई से पहाड़ी घाटी पैदल बौलिया गांव में उतरते हैं. जहां से यदुनाथपुर डेहरी मुख्य मार्ग चार किलोमीटर दूर है, जिस रास्ते डेहरी सासाराम पहुंच पाते हैं.
जीविकोपार्जन के साधनः गांव के लोगों का जीविकोपार्जन का मुख्य स्रोत पशुपालन, कृषि व जंगली औषधीय फल की बिक्री है. गांव में भूत प्रेत को लेकर काफी अंधविश्वास है. शिक्षा के अभाव में लोग भूत प्रेत में विश्वास करते हैं. रोहतास थाने में डायन बताकर मारपीट किए जाने की कई प्राथमिकी दर्ज हुई हैं. बाल विवाह यहां जनजाति समाज के साथ साथ अन्य वर्ग में आज भी है.
प्राकृतिक संसाधनों पर किसान आश्रितः पंचायत समिति सदस्य मदन उरांव कहते हैं कि अंत्योदय योजना के तहत निशुल्क अनाज, वृद्धा अवस्था पेंशन, आयुष्मान भारत कार्ड, जन धन योजना के तहत बैंक खाता खुलने समेत केंद्र और राज्य सरकार द्वारा संचालित योजना का लाभ कुछ ही लोगों को मिलता है. ज्यादातर लोग इससे वंचित हैं. बिजली का अभाव है. प्राकृतिक संसाधनों पर किसान आश्रित हैं.
रोपवे निर्माण से उम्मीदः कैमूर पहाड़ी पर अवस्थित रोहतास गढ़ किला व रोहितेश्वर धाम भ्रमण के लिए रोपवे का निर्माण हो रहा है. रोपवे प्वाइंट गांव से लगभग पांच किमी दूरी पर है. पूर्व मुखिया कृष्णा सिंह यादव कहते हैं कि रोपवे निर्माण होने से आने जाने में सुविधा होगी. हालांकि यह जानकारी नहीं है कि पहाड़ी पर बसे गावों के लोगों को रोपवे पर आने जाने के लिए शुल्क सेवा होगी या न्यूनतम दर निर्धारित होंगे.
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