चतरा: राज्य सरकार ने नक्सल क्षेत्रों को मूलभूत सुविधाओं से जोड़ने की बड़े-बड़े दावे करती है. ये दावे राजधानी से करीब 150 किमी दूर चतरा के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र प्रतापपुर पहुंचते ही खोखले हो जाते हैं. आज भी जिले के अंदरूनी इलाकों में जिम्मेदारों की उदासीनता और लापरवाही से ग्रामीण मुलभूत सुविधाओं से वंचित हैं.
लोग आज भी लकड़ी के बने पुल और पगडंडियों से होते हुए प्रखंड मुख्यालय तक पहुंचते हैं. सुविधाओं के नाम पर गांव में चार चापानल लगे हुए हैं, जिसमें तीन खराब पड़े हुए हैं. पीएचईडी के द्वारा दो पानी टंकी बनाई गई है, जिसमें एक में बोरिंग ही नहीं है. बच्चों को इसी पुल के जरिये स्कूल जाना पड़ता है.
बारिश के दिनों में अगर नदियां उफान पर आ जाती हैं तो बच्चे स्कूल जाना छोड़ देते हैं. कई बार बारिश से नदी में आए उफान में फंसने से लोगों की मौत भी हो चुकी है. ऐसा नहीं है कि जिला प्रशासन इस दिशा में काम नहीं कर रहा है, लेकिन प्रशासन के नुमाईदें ही शासन और प्रशासन के प्रयासों पर पानी फेरते जा रहे हैं.
नक्सलियों के गढ़ रहे चतरा के प्रतापपुर प्रखंड के योगियारा पंचायत अंतर्गत बरहे गांव मूलभूत सुविधाओं को तरस रहा है. अभी तो इन इलाकों में नक्सली गतिविधियों पर विराम लग गया है, जिससे लोग राहत महसूस कर रहे हैं. लेकिन ग्रामीणों का दुर्भाग्य कहें या फिर जिम्मेदारों की उदासीनता, जो आजादी के 76 वर्ष बीत जाने के बाद भी गांव तक पहुंचने के लिए ग्रामीणों के द्वारा बनाये गए लकड़ी का पुल का इस्तेमाल करना पड़ता है.
अधिकारी व जनप्रतिनिधि भी इसी पुल से यहां पहुंचते हैं. आपातकालीन स्थिति में लोग खाट को सहारा बनाकर अस्पताल पहुंचते हैं. इस मामले को लेकर जब स्थानीय विधायक जनार्दन पासवान से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मामले की जांच की जाएगी. इसके बाद जल्द पुल का निर्माण कार्य शुरू करा दिया जाएगा.
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