रोहित डिमरी, रुद्रप्रयाग: अगस्त्यमुनि नगर पंचायत में अध्यक्ष सीट पर चुनाव रोचक हो गया है. मुख्य मुकाबला बीजेपी प्रत्याशी सतीश गोस्वामी और कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र प्रसाद गोस्वामी में दिख रहा है. जबकि, निर्दलीय प्रत्याशी सुशील गोस्वामी इसे त्रिकोणीय बनाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, सभी प्रत्याशी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन मतदाताओं की चुप्पी से प्रत्याशियों के पसीने छूट रहे हैं.
अचानक सीट बदलने से प्रत्याशियों को लगा झटका: अगस्त्यमुनि नगर पंचायत की बात करें तो पहले अध्यक्ष पद पर सीट सामान्य घोषित हो गई थी. प्रत्याशियों ने भी अपनी चुनावी बिसात बिछा दी थी, लेकिन अचानक से यह सीट ओबीसी के लिए आरक्षित हो गई. इससे जहां सामान्य सीट पर संभावित प्रत्याशियों में घोर निराशा हुई तो वहीं राष्ट्रीय दलों तक को ओबीसी प्रत्याशी ढ़ूढ़ने में ऐड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा.
जो प्राथमिक सदस्य तक नहीं थे, उन्हें कांग्रेस और बीजेपी ने दिया टिकट: कांग्रेस ने जहां राजेंद्र प्रसाद गोस्वामी पर दांव लगाया तो बीजेपी ने सतीश गोस्वामी पर विश्वास जताया है. सतीश गोस्वामी का नाम पूर्व में कांग्रेस के पैनल में था, लेकिन कांग्रेस की ओर से राजेंद्र गोस्वामी को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद उन्हें बीजेपी ने लपक लिया. दोनों ही दलों ने ऐसे व्यक्तियों को टिकट दिया, जो उनके प्राथमिक सदस्य तक नहीं थे.
बीजेपी से नहीं मिला टिकट तो नाराज होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे सुशील गोस्वामी: वहीं, बीजेपी से टिकट न मिलने से नाराज सुशील गोस्वामी ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला ले लिया. अचानक से सीट ओबीसी होने से प्रत्याशियों की संख्या भी सीमित ही रही. अध्यक्ष पद पर केवल 3 ही प्रत्याशियों ने नामांकन कराया.
कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र गोस्वामी के जीत और हार के फैक्टर: कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र प्रसाद गोस्वामी जहां सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेने की वजह से आम जनता में पहले से ही जाने पहचाने चेहरे रहे हैं, जिससे उन्हें चुनाव में शुरूआती बढ़त भी मिली.
अपने सौम्य स्वभाव एवं मिलनसार प्रवृति ने उन्हें जनता के बीच जल्द ही लोकप्रिय बना दिया, जिसका पूरा फायदा उन्हें मिलता दिख रहा है. पूर्व विधायक मनोज रावत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल उनके पक्ष में रोड शो कर चुके हैं, लेकिन कांग्रेस संगठन की गुटबाजी से उनको नुकसान भी उठाना पड़ सकता है.
बीजेपी प्रत्याशी सतीश गोस्वामी को पहचान बनाने में हुई दिक्कतें: वहीं, बीजेपी प्रत्याशी सतीश गोस्वामी पेशे से शिक्षक हैं, लेकिन सामाजिक क्षेत्र में उनकी सक्रियता न के बराबर होने से उन्हें शुरूआती दौर में अपनी पहचान बनाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.
उन्हें बीजेपी प्रत्याशी बनाने में केदारनाथ विधायक आशा नौटियाल का विशेष सहयोग रहा. सतीश की जीत आशा नौटियाल के लिए विशेष महत्व रखती है. इसको देखते हुए उन्होंने नगर क्षेत्र में लगातार भ्रमण कर सतीश को जिताने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाया.
इसके साथ ही बीजेपी संगठन भी पूरी तरह से उनके प्रचार में जुटा. बीजेपी जिलाध्यक्ष महावीर पंवार, रुद्रप्रयाग विधायक भरत चौधरी, सीमांत अनुश्रवण परिषद के उपाध्यक्ष चंडी प्रसाद भट्ट, बीकेटीसी के निवर्तमान अध्यक्ष अजेंद्र अजय भी उनके प्रचार में उतरे. जिससे वे अब मुख्य मुकाबले में नजर आ रहे हैं.
निर्दलीय प्रत्याशी सुशील गोस्वामी ने मुकाबले को बनाया त्रिकोणीय: निर्दलीय प्रत्याशी सुशील गोस्वामी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं. उन्होंने बीजेपी से टिकट मांगा था, लेकिन नहीं मिला. जिससे उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया. उनकी माताजी पूर्व में बीजेपी से नगर पंचायत सभासद रही हैं. सुशील गोस्वामी रामलीला में महत्वपूर्ण पात्रों को निभाने के साथ ही कमेटी में विभिन्न पदों पर रहने की वजह से काफी लोकप्रिय हैं.
रामलीला कमेटी से जुड़े लोग हर वार्ड से सभासद का चुनाव भी लड़ रहे हैं. सबका चुनाव चिह्न भी गैस सिलेंडर है. अब इसका फायदा अध्यक्ष पद पर सुशील गोस्वामी को कितना मिलता है, वो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन वे पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि बीजेपी से नाराज मतदाता एवं नगर क्षेत्र की जनता के सहयोग से जीत की ओर बढ़ रहे हैं.
अब चुनाव को मात्र दो दिन रह गए हैं. पहाड़ में इसे सिरतू की रात भी कहा जाता है. इन्हीं दो दिनों में फ्लोटिंग वोट को साधने का काम भी किया जाता है. जो भी प्रत्याशी इन दो दिनों में अपने कैडर वोट को संभाल कर इन फ्लोटिंग वोटों को साधने में सफल होगा, जीत का सेहरा भी उसी के सिर बंधेगा, ऐसा कहा जाता है.
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