लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2024 में टिकट कटने के बाद पहली बार अपनी मां मेनका गांधी के लिए प्रचार करने सुलतानपुर पहुंचे वरुण गांधी ने अपने भाषण में एक बार भी भाजपा नेतृत्व का नाम नहीं लिया. सुलतानपुर में अपनी पहली नुक्कड़ सभा में उन्होंने अपने पिता और मां की तो चर्चा की.
लेकिन, उन्होंने एक बार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ या पार्टी के अन्य बड़े नेता का नाम नहीं लिया. यही नहीं उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों के उन कामों की चर्चा भी करना जरूरी नहीं समझा, जिनके दम पर पार्टी चुनाव मैदान में है.
बता दें कि 2019 में वरुण गांधी पीलीभीत संसदीय सीट से चुनकर संसद पहुंचे थे, लेकिन इसके बाद पार्टी में वरुण की स्थिति अच्छी नहीं रही. 2021 में मेनका गांधी और वरुण को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर कर दिया गया, जबकि 2019 में उम्मीद जताई जा रही थी कि वरुण गांधी मोदी सरकार में मंत्री बनाए जा सकते हैं.
दरअसल, वरुण गांधी के लिए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के संसदीय क्षेत्र में किसान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा के लेकर पार्टी विरोधी बयान देना महंगा पड़ा. उस दौरान वरुण के आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से कई ट्वीट किए गए, जिन्हें पार्टी विरोधी गतिविधि के तौर पर देखा गया.
उन्होंने किसानों के प्रदर्शन पर सरकार के रुख पर कई बार असंतोष जाहिर किया. जब वरुण और मेनका को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर किया गया, तो पार्टी ने विनय कटियार और सुब्रमण्यम स्वामी को भी कार्यकारिणी में स्थान नहीं दिया था.
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यदि भाजपा में वरुण गांधी की स्थिति की बात करें, तो जब राजनाथ सिंह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, तब वरुण गांधी को उन्होंने पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया था. यही नहीं उन्हें पश्चिम बंगाल का प्रभारी भी बनाया गया था. वह पार्टी के अब तक के सबसे युवा राष्ट्रीय महासचिव थे.
विश्लेषक बताते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान जब भाजपा के चेहरे के तौर पर नरेंद्र मोदी का नाम सामने आया था, उसी दौरान वरुण गांधी ने राजनाथ सिंह की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से करते हुए पीएम पद का बेहतर उम्मीदवार बताया था.
इसके बाद 2014 में जब अमित शाह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, तो उन्होंने वरुण गांधी को राष्ट्रीय महासचिव के पद से हटा दिया. 2019 में मेनका गांधी को मंत्रिमंडल में भी जगह नहीं मिली और 2024 के लोकसभा चुनावों में वरुण गांधी का टिकट भी काट दिया गया.
माना जा रहा है कि वरुण गांधी की पार्टी से नाराजगी कम नहीं हुई है. यही कारण है कि वह पीलीभीत व अन्य किसी भी सीट पर प्रचार के लिए नहीं गए. यह पहली बार है, जब वह अपनी मां मेनका गांधी के लिए प्रचार करने आए हैं. हालांकि वह पार्टी और पार्टी के बड़े नेताओं के नाम लेने से परहेज कर दिखाई दिए.
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