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बनारस की इस बर्फी से डरते थे अंग्रेज; 80 साल पुराना लाजवाब स्वाद, जबरदस्त डिमांड, GI टैग भी मिल चुका - Tiranga barfi GI tag

आज हम आपको बताने जा रहे हैं काशी की एक खास बर्फी के बारे में. इस बर्फी को देखते ही अंग्रेजों का सर्दी में भी पसीना छूट जाता था. आखिर क्या थी इसकी वजह जानिए?

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 6, 2024, 12:47 PM IST

Updated : May 6, 2024, 1:37 PM IST

वाराणसी की तिरंगा बर्फी को मिला जीआई टैग, दुकानदार वरुण गुप्ता ने दी जानकारी (etv bharat reporter)

वाराणसी: बनारस धार्मिक नगरी है. साथ ही साथ यह जायकों का भी शहर है. वाराणसी में अलग-अलग तरह के पर्यटन के लिए स्थल हैं, तो खाने के लिए विभन्न प्रकार के व्यंजन भी मिलते हैं. उसी में से एक है ऐतिहासिक तिरंगा बर्फी. बीते दिनों कुल 32 उत्पादों को जीआई का दर्जा दिया गया, जिसमें तिरंगा बर्फी भी शामिल है. आपने इस बर्फी के बारे में सुना तो जरूर होगा. लकिन, आज हम आपको इस मिठाई के बारे में बताएंगे कि यह कैसे तैयार होती है, इसे पहली बार कब बनाया गया और इस बर्फी का जायका कैसा होता है.

बनारस में बनाई जाने वाली तिरंगा बर्फी आज से नहीं बल्कि आजादी के लिए देश में चल रहे संघर्ष के समय की है. एक समय था जब इस बर्फी का प्रयोग लोगों में देशभक्ति की भावना जगाने के लिए किया जाता था. तिरंगा बर्फी को बाजार में देखकर उस समय अंग्रेज भी परेशान हो गए थे. इस तिरंगा बर्फी में रंग इस्तेमाल किए जा रहे थे, जो देश के राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) में हैं. यही वजह थी कि इसका विरोध अंग्रेजों ने काफी किया था. आज इसी बर्फी की मांग काफी अधिक रहती है और इसे जीआई टैग भी मिल चुका है. आइए जानते हैं आजादी के समय से चली आ रही इस ऐतिहासिक बर्फी के बारे में.

आजादी की मुहिम का हिस्सा रही तिरंगा बर्फी: वाराणसी में चल रहा राम भंडार इस तिरंगा बर्फी को बड़ी मात्रा में तैयार करता है. ये सबसे प्रसिद्ध तिरंगा बर्फी की दुकान है,जो शहर के चौक इलाके के ठठेरी बाजार में मौजूद है.इस दुकान के संस्थापक ने ही इसको बनाने की शुरुआत की थी. राम भंडार के संचालक वरुण गुप्ता इसके बारे में जानकारी देते हैं. उन्होंने बताया, 'इसकी शुरुआत मेरे बाबा मदन गोपाल ने की थी. जब देश में आजादी की मुहिम अपने चरम पर थी, तो उसमें अपना योगदान देने के लिए और आजादी के लिए लोगों में भाव जगाने के लिए तिरंगा बर्फी बनाने की शुरुआत की थी. साल 1940 में मदन गोपाल गुप्ता ने जब इसको बनाना शुरू किया, तो क्रांतिकारियों ने उनकी मदद की थी.

इसे भी पढ़े-BHU के पीजी कोर्स में दाखिले के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू, 25 मई तक कर सकते हैं आवेदन - BHU PG Course

राष्ट्रवाद का भाव जगाने के लिए फ्री में बंटी: वरुण बताते हैं कि, उस दौर में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई छेड़ने के लिए इस बर्फी को फ्री में बांटा जाता था. बर्फी में तिरंगा होने के कारण लोगों के मन में राष्ट्रवाद का भाव जगाने का प्रयास किया जाता था. जब इस बर्फी को लोगों तक पहुंचाने की प्रक्रिया शुरू हुई, तो इसे देख अंग्रेज भी परेशान हो गए थे. अंग्रेजो ने इसका विरोध भी किया था. आज 1940 के बाद लगभग 80 साल से ऊपर का समय बीत चुका है. यह बर्फी आज वाराणसी की लगभग सभी मिठाई की दुकानों पर मिल जाती है. लेकिन, इसकी शुरुआत करने वाले मदन गोपाल गुप्ता थे.

इस तरह से तैयार होती है तिरंगा मिठाई: तिरंगा बर्फी को बनाने की प्रक्रिया के बारे में वरुण गुप्ता ने बताया कि, तिरंगा बर्फी को तैयार करने के लिए किसी भी तरह के केमिकल रंग का प्रयोग नहीं किया जाता है. इसके लिए प्राकृतिक चीजों का प्रयोग किया जाता है. बर्फी को बनाने के लिए केसर, पिस्ता का इस्तेमाल किया जाता है. उन्होंने बताया कि, बर्फी को तीन स्टेप में तैयार किया जाता है. इसकी आखिरी लेयर मेवे की होती है. बीच वाली परत खोये की होती है और ऊपर वाली परत मेवे की होती है. इस प्रक्रिया से तिरंगा बर्फी तैयार की जाती है.

तिरंगा बर्फी बनाने में इस्तेमाल होती हैं ये चीजें: वाराणसी की ऐतिहासिक तिरंगा बर्फी लोगों को बहुत पसंद आती है. आम दिनों में तो लोग इसे खरीदते ही हैं. गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर भी लोग इसे खूब खरीदकर ले जाते हैं. स्कूल आदि में इस बर्फी की मांग बढ़ जाती है. वरुण गुप्ता बताते हैं, कि इस बर्फी को बनाने के लिए खोया/मावा, चीनी, घी, पिस्ता, बादाम, केसर के धागे, इलायची पाउडर, खाद्य रंग (केसरिया, हरा) का प्रयोग किया जाता है. यह पूरी प्रक्रिय केमिकल रहित होती है. ऐसे में इसका स्वाद भी प्रभावित नहीं होता है और शुद्धता बनी रहती है. इसके स्वाद के बनारस के साथ ही साथ आस-पास के जिलों के लोग दीवाने हैं.


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बनारस की इस बर्फी से डरते थे अंग्रेज; 80 साल पुराना लाजवाब स्वाद, जबरदस्त डिमांड, GI टैग भी मिल चुका
वाराणसी की तिरंगा बर्फी को मिला जीआई टैग, दुकानदार वरुण गुप्ता ने दी जानकारी (etv bharat reporter)

वाराणसी: बनारस धार्मिक नगरी है. साथ ही साथ यह जायकों का भी शहर है. वाराणसी में अलग-अलग तरह के पर्यटन के लिए स्थल हैं, तो खाने के लिए विभन्न प्रकार के व्यंजन भी मिलते हैं. उसी में से एक है ऐतिहासिक तिरंगा बर्फी. बीते दिनों कुल 32 उत्पादों को जीआई का दर्जा दिया गया, जिसमें तिरंगा बर्फी भी शामिल है. आपने इस बर्फी के बारे में सुना तो जरूर होगा. लकिन, आज हम आपको इस मिठाई के बारे में बताएंगे कि यह कैसे तैयार होती है, इसे पहली बार कब बनाया गया और इस बर्फी का जायका कैसा होता है.

बनारस में बनाई जाने वाली तिरंगा बर्फी आज से नहीं बल्कि आजादी के लिए देश में चल रहे संघर्ष के समय की है. एक समय था जब इस बर्फी का प्रयोग लोगों में देशभक्ति की भावना जगाने के लिए किया जाता था. तिरंगा बर्फी को बाजार में देखकर उस समय अंग्रेज भी परेशान हो गए थे. इस तिरंगा बर्फी में रंग इस्तेमाल किए जा रहे थे, जो देश के राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) में हैं. यही वजह थी कि इसका विरोध अंग्रेजों ने काफी किया था. आज इसी बर्फी की मांग काफी अधिक रहती है और इसे जीआई टैग भी मिल चुका है. आइए जानते हैं आजादी के समय से चली आ रही इस ऐतिहासिक बर्फी के बारे में.

आजादी की मुहिम का हिस्सा रही तिरंगा बर्फी: वाराणसी में चल रहा राम भंडार इस तिरंगा बर्फी को बड़ी मात्रा में तैयार करता है. ये सबसे प्रसिद्ध तिरंगा बर्फी की दुकान है,जो शहर के चौक इलाके के ठठेरी बाजार में मौजूद है.इस दुकान के संस्थापक ने ही इसको बनाने की शुरुआत की थी. राम भंडार के संचालक वरुण गुप्ता इसके बारे में जानकारी देते हैं. उन्होंने बताया, 'इसकी शुरुआत मेरे बाबा मदन गोपाल ने की थी. जब देश में आजादी की मुहिम अपने चरम पर थी, तो उसमें अपना योगदान देने के लिए और आजादी के लिए लोगों में भाव जगाने के लिए तिरंगा बर्फी बनाने की शुरुआत की थी. साल 1940 में मदन गोपाल गुप्ता ने जब इसको बनाना शुरू किया, तो क्रांतिकारियों ने उनकी मदद की थी.

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राष्ट्रवाद का भाव जगाने के लिए फ्री में बंटी: वरुण बताते हैं कि, उस दौर में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई छेड़ने के लिए इस बर्फी को फ्री में बांटा जाता था. बर्फी में तिरंगा होने के कारण लोगों के मन में राष्ट्रवाद का भाव जगाने का प्रयास किया जाता था. जब इस बर्फी को लोगों तक पहुंचाने की प्रक्रिया शुरू हुई, तो इसे देख अंग्रेज भी परेशान हो गए थे. अंग्रेजो ने इसका विरोध भी किया था. आज 1940 के बाद लगभग 80 साल से ऊपर का समय बीत चुका है. यह बर्फी आज वाराणसी की लगभग सभी मिठाई की दुकानों पर मिल जाती है. लेकिन, इसकी शुरुआत करने वाले मदन गोपाल गुप्ता थे.

इस तरह से तैयार होती है तिरंगा मिठाई: तिरंगा बर्फी को बनाने की प्रक्रिया के बारे में वरुण गुप्ता ने बताया कि, तिरंगा बर्फी को तैयार करने के लिए किसी भी तरह के केमिकल रंग का प्रयोग नहीं किया जाता है. इसके लिए प्राकृतिक चीजों का प्रयोग किया जाता है. बर्फी को बनाने के लिए केसर, पिस्ता का इस्तेमाल किया जाता है. उन्होंने बताया कि, बर्फी को तीन स्टेप में तैयार किया जाता है. इसकी आखिरी लेयर मेवे की होती है. बीच वाली परत खोये की होती है और ऊपर वाली परत मेवे की होती है. इस प्रक्रिया से तिरंगा बर्फी तैयार की जाती है.

तिरंगा बर्फी बनाने में इस्तेमाल होती हैं ये चीजें: वाराणसी की ऐतिहासिक तिरंगा बर्फी लोगों को बहुत पसंद आती है. आम दिनों में तो लोग इसे खरीदते ही हैं. गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर भी लोग इसे खूब खरीदकर ले जाते हैं. स्कूल आदि में इस बर्फी की मांग बढ़ जाती है. वरुण गुप्ता बताते हैं, कि इस बर्फी को बनाने के लिए खोया/मावा, चीनी, घी, पिस्ता, बादाम, केसर के धागे, इलायची पाउडर, खाद्य रंग (केसरिया, हरा) का प्रयोग किया जाता है. यह पूरी प्रक्रिय केमिकल रहित होती है. ऐसे में इसका स्वाद भी प्रभावित नहीं होता है और शुद्धता बनी रहती है. इसके स्वाद के बनारस के साथ ही साथ आस-पास के जिलों के लोग दीवाने हैं.


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Last Updated : May 6, 2024, 1:37 PM IST
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