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Valentine Day 2024 : बनारस में 400 साल पुरानी अजब कहानी, आशिक माशूक की मजार पर दुआ मांगते हैं प्रेमी जोड़े

शहर के औरंगाबाद इलाके में आशिक माशूक की मजार उन्हीं (Valentine Day 2024) दो प्रेमियों की मिसाल है, जो जिंदा रहते तो नहीं मिल सके. लेकिन, मौत ने दोनों को मिला दिया. दोनों की एक साथ मौजूद मजार पर प्रेमी जोड़े मन्नतें मांगते हैं.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 12, 2024, 8:01 PM IST

वेलेंटाइन डे पर खास रिपोर्ट

वाराणसी : युवाओं को 14 फरवरी का इंतजार रहता है. वैलेंटाइन डे के दिन लोग प्यार का इजहार करते हैं. वहीं, इन सबसे परे बनारस में सैकड़ों साल पहले लिखी गई एक दास्तां आज भी प्यार के परवानों के लिए नजीर है. यह कहानी सिर्फ किताबों में ही नहीं, बल्कि आज भी असल जिंदगी में प्यार करने वालों को अपनी तरफ आकर्षित करती है. इस कहानी में एक आशिक और एक माशूक ने प्यार की खातिर अपनी जान दे दी. दोनों की एक साथ मौजूद मजार पर प्रेमी जोड़े मन्नतें मांगते हैं.

आशिक माशूक की मजार
आशिक माशूक की मजार

वाराणसी के सिगरा के सिद्धगिरीबाग स्थित औरंगाबाद मोहल्ले में मौजूद आशिक माशूक की मजार की कहानी बनारस पर लिखी गई किताबों में भी मिलती है. शायरे बनारस, तारीखे बनारस जैसी मशहूर किताबों में इस मजार का जिक्र यह साफ करता है कि इस मजार से जुड़ी कहानी और मान्यताएं काफी पुरानी हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि लगभग 400 साल पुरानी इस मजार पर एक साथ दो कब्र मौजूद हैं और पूरे क्षेत्र में इसे आशिक माशूक की मजार के नाम से ही जाना जाता था.

मजार पर दुआ मांगते हैं प्रेमी जोड़े
मजार पर दुआ मांगते हैं प्रेमी जोड़े

यहां के मुजावर बाबा फरीद शाह बताते हैं कि करीब 400 साल पहले ईरान का एक व्यापारी अब्दुल समद बनारस आया हुआ था. उस व्यापारी के साथ उसका बेटा मोहम्मद युसूफ भी आया था, जो बनारस में एक मोहल्ले में लगने वाले गाजी मियां के मेले में घूमने गया था. यहां उसने एक घर की खिड़की में बैठी मरियम नाम की युवती को देखा और उससे प्रेम कर बैठा. प्यार परवान भी चढ़ने लगा, लेकिन मरियम के घरवालों ने उसे समाज के डर से गंगा पार कर रामनगर उसके ननिहाल भेज दिया. मरियम की याद में पागलों की तरह युसूफ इधर-उधर उसे तलाशता रहा. इस दौरान उसकी मुलाकात मरियम की दोस्त से हुई और उसने मरियम के रामनगर में होने की जानकारी यूसुफ को दी.

इसके बाद यूसुफ उस वक्त गंगा पर बने एक लकड़ी के पुल के सहारे रामनगर जाने लगा, लेकिन पुल पर मरियम की जूती पड़ी दिखी. जूती देखने पर युसुफ को लगा कि मरियम ने गंगा में कूदकर जान दे दी है. इसलिए उसने गंगा में छलांग लगा दी, लेकिन ऐसा नहीं था. युसुफ के गंगा में कूदने की जानकारी जब मरियम को हुई तो उसने भी अपने प्रेमी की याद में गंगा में कूदकर जान दे दी. कई दिन बाद दोनों की लाशें एक साथ हाथ पकड़े गंगा में उतराई मिलीं, जिसके बाद दोनों को सिद्धगिरीबाग के औरंगाबाद स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया. तब से लेकर आज तक इस जगह को प्रेमी जोड़े अपने लिए सबसे खास मानते हैं और यही वजह है कि इस मजार के चारों तरफ लगे स्टील के रेलिंग और मजार के पास छोटी-छोटी चिट्टियां लटकी हुई दिखाई भी देती हैं. अपनी मन्नतों को लेकर यहां प्रेमी जोड़े हाजिरी लगाते हैं और जोड़ा बनने के बाद या रिश्ता तय होने पर पुनः आकर यहां पर आशिक माशूक को धन्यवाद देते हैं.

यह भी पढ़ें : आशिक मिजाज दारोगा ने महिला सिपाही से नजदीकी बढ़ाने के लिए किए गंदे मैसेज, सस्पें

यह भी पढ़ें : आशिक मिजाज दारोगा ने व्हाट्सएप पर लिखा आई लव यू, महिला ने दी आत्महत्या की धमकी, निलंबित

वेलेंटाइन डे पर खास रिपोर्ट

वाराणसी : युवाओं को 14 फरवरी का इंतजार रहता है. वैलेंटाइन डे के दिन लोग प्यार का इजहार करते हैं. वहीं, इन सबसे परे बनारस में सैकड़ों साल पहले लिखी गई एक दास्तां आज भी प्यार के परवानों के लिए नजीर है. यह कहानी सिर्फ किताबों में ही नहीं, बल्कि आज भी असल जिंदगी में प्यार करने वालों को अपनी तरफ आकर्षित करती है. इस कहानी में एक आशिक और एक माशूक ने प्यार की खातिर अपनी जान दे दी. दोनों की एक साथ मौजूद मजार पर प्रेमी जोड़े मन्नतें मांगते हैं.

आशिक माशूक की मजार
आशिक माशूक की मजार

वाराणसी के सिगरा के सिद्धगिरीबाग स्थित औरंगाबाद मोहल्ले में मौजूद आशिक माशूक की मजार की कहानी बनारस पर लिखी गई किताबों में भी मिलती है. शायरे बनारस, तारीखे बनारस जैसी मशहूर किताबों में इस मजार का जिक्र यह साफ करता है कि इस मजार से जुड़ी कहानी और मान्यताएं काफी पुरानी हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि लगभग 400 साल पुरानी इस मजार पर एक साथ दो कब्र मौजूद हैं और पूरे क्षेत्र में इसे आशिक माशूक की मजार के नाम से ही जाना जाता था.

मजार पर दुआ मांगते हैं प्रेमी जोड़े
मजार पर दुआ मांगते हैं प्रेमी जोड़े

यहां के मुजावर बाबा फरीद शाह बताते हैं कि करीब 400 साल पहले ईरान का एक व्यापारी अब्दुल समद बनारस आया हुआ था. उस व्यापारी के साथ उसका बेटा मोहम्मद युसूफ भी आया था, जो बनारस में एक मोहल्ले में लगने वाले गाजी मियां के मेले में घूमने गया था. यहां उसने एक घर की खिड़की में बैठी मरियम नाम की युवती को देखा और उससे प्रेम कर बैठा. प्यार परवान भी चढ़ने लगा, लेकिन मरियम के घरवालों ने उसे समाज के डर से गंगा पार कर रामनगर उसके ननिहाल भेज दिया. मरियम की याद में पागलों की तरह युसूफ इधर-उधर उसे तलाशता रहा. इस दौरान उसकी मुलाकात मरियम की दोस्त से हुई और उसने मरियम के रामनगर में होने की जानकारी यूसुफ को दी.

इसके बाद यूसुफ उस वक्त गंगा पर बने एक लकड़ी के पुल के सहारे रामनगर जाने लगा, लेकिन पुल पर मरियम की जूती पड़ी दिखी. जूती देखने पर युसुफ को लगा कि मरियम ने गंगा में कूदकर जान दे दी है. इसलिए उसने गंगा में छलांग लगा दी, लेकिन ऐसा नहीं था. युसुफ के गंगा में कूदने की जानकारी जब मरियम को हुई तो उसने भी अपने प्रेमी की याद में गंगा में कूदकर जान दे दी. कई दिन बाद दोनों की लाशें एक साथ हाथ पकड़े गंगा में उतराई मिलीं, जिसके बाद दोनों को सिद्धगिरीबाग के औरंगाबाद स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया. तब से लेकर आज तक इस जगह को प्रेमी जोड़े अपने लिए सबसे खास मानते हैं और यही वजह है कि इस मजार के चारों तरफ लगे स्टील के रेलिंग और मजार के पास छोटी-छोटी चिट्टियां लटकी हुई दिखाई भी देती हैं. अपनी मन्नतों को लेकर यहां प्रेमी जोड़े हाजिरी लगाते हैं और जोड़ा बनने के बाद या रिश्ता तय होने पर पुनः आकर यहां पर आशिक माशूक को धन्यवाद देते हैं.

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