Vaishakh Amavasya 2024: हिंदू धर्म में वैशाख अमवस्या का बहुत महत्व है. इस साल 7 और 8 मई को वैशाख अमावस्या पड़ रही है. अमावस्या के दिन स्नान, दान और पूजा पाठ करने का बहुत अधिक महत्व होता है. इस दिन लोग अपने पूर्वजों के लिए तर्पण, पिंडदान और प्रार्थना करते हैं. यानि कह सकते हैं कि वैशाख अमवस्या पूर्वजों के तर्पण और श्राद्ध के लिए समर्पित होती है. इस दिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान की पूजा अर्चना, पितरों का पिंडदान किया जाए तो बहुत लाभ मिलते हैं, बंद किस्मत के ताले खुल जाते हैं. भगवान और पितृ प्रसन्न होते हैं व उनका आशीर्वाद भी मिलता है.
वैशाख अमावस्या का क्या है महत्व
वैशाख अमावस्या की तारीख को हिंदू धर्म में बहुत शुभ माना गया है. यह तिथि भगवान विष्णु और पूर्वजों को समर्पित है. इस दिन स्नान करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. धार्मिक मान्यता है कि वैशाख अमवस्या पर पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता है. ऐसा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है. यदि इस रात चंद्रमा के दर्शन नहीं होते तो नकारात्मकता सकारात्मकता पर हावी हो जाती है. लेकिन कुछ उपाय ऐसे होते हैं जिसे करने से इस नकारात्मकता का जातक की जिंदगी पर कोई असर नहीं होता है.
वैशाख अमावस्या पूजन के शुभ मुहुर्त
वैशाख अमावस्या बुधवार 7 मई को सुबह 11:40 लग रही है. जो गुरुवार 8 मई को सुबह 8:51 तक मान्य है. वैशाख अमावस्या पर लोग अपने पितरों के लिए तर्पण करते हैं. इस दिन स्नान भी किया जाता है. स्नान का समय सुबह 5:20 बजे से 8:50 बजे तक है. सबसे पहले सूर्य को अर्घ्य देकर शुरुआत करना चाहिए. इसके बाद जितना हो सके तांबे के लोटे का ही यूज करें. जल चढ़ाते समय ''ॐ सूर्याय नम'' मंत्र का जाप करें. साथ ही गुड़ का दान भी करना चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का बहुत अधिक महत्व है.
क्या है पौराणिक कथा
वैशाख अमावस्या को लेकर एक पौराणिक कथा है. जिसके मुताबिक, धर्मवर्ण नाम के एक ब्राह्मण व्यक्ति ने एक महात्मा के मुंह से सुना था कि कलयुग में अगर भगवान विष्णु को याद किया जाए तो उससे बहुत अधिक पुण्य मिलता है. भगवान विष्णु का स्मरण यज्ञ करने के बराबर है. यह बात सुनते ही धर्मवर्ण सांसारिक जीवन छोड़कर धर्म की राह पर चल पड़े. भ्रमण करते हुए वह अचानक वह पितृलोक पहुंच गए. जहां उन्होंने देखा कि पितृलोक में पितृ बहुत परेशानी में हैं. पितरों ने बताया कि यह सब तुम्हारे संन्यासी बनने के कारण हुई. क्योंकि अब हमारा पिंडदान और तर्पण करने वाला कोई नहीं है. पितरों ने धर्मवर्ण से कहा कि तुम वापस सांसारिक जीवन अपना लो और संतान पैदा करो, ताकि जिसके पिंडदान से हमारा मंगल हो सके और तृप्ति मिल सके. उसके बाद धर्मवर्ण ने संन्यासी जीवन छोड़कर वापस सांसारिक और गृहस्थ जीवन की शुरुआत की. जिसके बाद धर्मवर्ण ने वैशाख अमावस्या के दिन ही पूरे रीति रिवाज से पितरों का पिंडदान कर उन्हें मुक्त कराया.
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वैशाख अमावस्या पर क्या करें
- अमावस्या के दिन नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करें.
- सूर्यदेव को अर्घ्य देकर बहते हुए जल में तिल प्रवाहित करना न भूलें.
- अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए उपवास रखें. इस दिन गरीबों को दान जरूर करें.
- शनिदेव पर तिल, तेल और फूल आदि चढ़ाकर पूजा करें तो लाभ ही लाभ होगा.
- इस दिन स्नान करें मंदिर की सफाई करें, और मंदिर में घी का दीपक जलाएं. भगवान विष्णु की आरती करें.
- अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं. शाम को दीपक जलाएं, तो आपकी जिंदगी में प्रकाश ही प्रकाश होगा.
- इस दि पीपल के पेड़ की भी पूजा करना शुभ माना जाता है, कहा जाता है कि पीपल के पेड़ में पितरों का वास होता है.
- इस दिन कुछ उपाय करने से सर्पदोष से भी मुक्ति मिल जाती है.