देहरादून: आधुनिकता के इस दौर में साइबर क्राइम के बढ़ते मामले पुलिस के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं. क्रिमिनल AI (Artificial Intelligence) का इस्तेमाल कर नए-नए तरीकों से अपराध कर रहे हैं. इस तरह के मामले पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं. यही कारण है कि अब पुलिस भी खुद को अपडेट कर AI (Artificial Intelligence) जैसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने जा रही है, ताकि क्रिमिनल्स को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया जा सके.
दरअसल, भारतीय न्याय संहिता भी तकनीक बेस पुलिसिंग पर जोर देती है और इसीलिए क्राइम सीन से लेकर कोर्ट तक की प्रक्रिया को तकनीकी आधारित किया जा रहा है. भारत में तीन नए आपराधिक कानून तकनीक बेस इन्वेस्टिगेशन को प्रमुखता देते हैं. स्मार्ट पुलिसिंग की परिकल्पना वाले यह कानून कम से कम समय में लोगों को न्याय दिलाने की सोच के साथ लाए गए हैं.
इसीलिए आधुनिक युग में तकनीक के बढ़ते उपयोग के बीच पुलिसिंग को भी तकनीक बेस्ड करने के प्रयास हो रहे हैं और इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को पुलिस अपनाने जा रही है. हाल ही में अहमदाबाद में राष्ट्रीय स्तरीय बैठक के दौरान भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल को लेकर देश भर के पुलिस अधिकारी इकट्ठा हुए थे, जहां AI के उपयोग की जरूरत और तरीकों को लेकर बात की गई थी.
उत्तराखंड में तैयार हो रहे हैं साइबर कमांडो: उत्तराखंड में साइबर अपराध से निपटने के लिए 10-10 के ग्रुप में पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षण के लिए भेजा जा रहा है. पुलिस अधिकारियों को यह प्रशिक्षण दिल्ली में अलग-अलग नामी कंपनियों से दिलवाया जा रहा है. इस दौरान साइबर कमांडो के रूप में प्रशिक्षण लेते हुए साइबर अपराध से जुड़े सभी गुर यह पुलिसकर्मी सीख रहे हैं. साथ ही साइबर अपराध को नियंत्रण करने का तरीके भी जान रहे हैं. उत्तराखंड पुलिस के प्रशिक्षित साइबर कमांडो बाकी पुलिसकर्मियों को भी तकनीक की जानकारी देंगे और साइबर अपराध के लिए नए प्रशिक्षित जवानों को तैयार करेंगे.
आपराधिक घटनाओं की रोकथाम के लिए भी होगा AI का इस्तेमाल: क्राइम सीन की स्कैनिंग से लेकर चेहरों की पहचान करने तक के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कारगर साबित होगी. इस तरह आपराधिक घटनाओं की रोकथाम और अपराधियों तक पहुंचने के लिए भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मददगार साबित होगी. घटना के बाद फॉरेंसिक टीम को भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से मदद मिलेगी. यानी फॉरेंसिक कार्यों के लिए भी एआई का उपयोग किया जा सकेगा. इसमें अपराध के पैटर्न से लेकर इलाके की पहचान करने और क्षेत्र में फेस स्कैनिंग के जरिए संदिग्धों की पहचान करने तक भी AI मददगार होगा
ट्रैफिक में भी मददगार बन रहा है AI: इस वक्त आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सबसे ज्यादा उपयोग ट्रैफिक पुलिस द्वारा किया जा रहा है. यहां पर डीप लर्निंग टेक्नोलॉजी यानी नंबर प्लेट की पहचान करने से लेकर इंटेलीजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए हो रहा है.
इस दौरान चौराहों पर ऑटोमेटिक नंबरिंग के साथ ही रियल टाइम ट्रैफिक का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई तक के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बेहतर है. हालांकि इसमें अभी उत्तराखंड पुलिस के पास सभी विकल्प मौजूद नहीं हैं, लेकिन ड्रोन कैमरा के जरिए चालान काटने और तमाम सिग्नल पर लगे कैमरों के जरिए निगरानी रखने जैसे मामलों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल हो रहा है.
साइबर अपराध पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का होगा बड़ा रोल: साइबर अपराधों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बड़ा रोल अपना सकता है, जिसके लिए उत्तराखंड पुलिस तैयारी कर रही है. इसीलिए उत्तराखंड पुलिस के अधिकारी दिल्ली में साइबर अपराध से जुड़े मामलों की विशेष ट्रेनिंग ले रहे हैं. इसी के साथ इस तरह के मामलों के कैसे निपटा जाए, उसकी भी रणनीति बन रही है.
आंकड़ों पर एक नजर: आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तराखंड में साइबर अपराध इस वक्त की सबसे बड़ी चिंता बन गया है. साल 2023 में जहां 20,000 शिकायत साइबर अपराध से जुड़ी दर्ज हुई थी. वहीं, इस साल 2024 में ये आंकड़ा और बढ़ सकता है. ये इसीलिए कहा जा रहा है कि क्योंकि साल दर साल साइबर क्राइम के मामले बढ़ते जा रहे हैं. साल 2022 में साइबर क्राइम में 13 हजार मामले दर्ज हुए थे, जबकि साल 2023 में आठ हजार ज्यादा यानी बीस हजार.
उत्तराखंड पुलिस विभाग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े उपकरण खरीदेगा: उत्तराखंड पुलिस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपनाने जा रही है. इसके लिए विभाग को AI से जुड़े उपकरण भी खरीदने होंगे. उत्तराखंड पुलिस विभाग में IG लॉ एंड ऑर्डर नीलेश आनंद भरणे बताते हैं कि उत्तराखंड पुलिस विभाग जल्द ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को मजबूत करने वाले उपकरणों की खरीद करने जा रहा है. इसमें हाईटेक ड्रोन कैमरों के साथ ही स्कैनिंग करने से जुड़े कैमरों को भी खरीदा जाएगा. इसके अलावा साइबर अपराधों पर नियंत्रण के लिए तमाम सॉफ्टवेयर और टूल्स की भी पुलिस विभाग को जरूरत होगी, जिन्हें खरीदने की योजना है.
बता दें कि भारतीय न्याय संहिता देशवासियों को न्याय दिलाने की सोच के साथ लाई गई. इसमें अपराधियों को सलाखों के पीछे तक पहुंचाने के लिए मजबूत पक्ष को लेकर उपकरण आधारित एविडेंस को प्रमुखता दी गई है. इसीलिए पुलिस खुद को बेहतर इक्विप्ड करने के साथ प्रशिक्षित होने पर भी काम कर रही है.
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