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लैंड फ्रॉड मामलों पर HC में सुनवाई, कोर्ट ने पूछा- गठित समवन्य कमेटी किस तरह कर रही काम, जवाब दे सरकार - Uttarakhand High Court - UTTARAKHAND HIGH COURT

लैंड फ्रॉड मामलों को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी, जिस पर आज गुरुवार 11 जुलाई को कोर्ट में सुनवाई हुई थी. जनहित याचिका में याचिकाकर्ता में पुलिस का कार्यशैली पर सवाल खड़े किए है, जिस पर कोर्ट ने राज्य सरकार के स्थिति स्पष्ट करने को कहा.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jul 11, 2024, 3:27 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में भूमि की धोखाधड़ी और अवैध खरीद फरोख्त पर अंकुश लगाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायधीश रितु बाहरी व न्यायमूर्ती राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा है कि 2014 में राज्य सरकार ने लैंड फ्रॉड समवन्य कमेटी गठित की थी, वह किस तरह से कार्य कर रही है और अभी तक कमेटी के पास कितने लैंड फ्रॉड से सम्बंधित शिकायते आई है. कोर्ट ने अगले मंगलवार 16 जुलाई तक स्थिति स्पष्ट करने के आदेश दिए है.

मामले के अनुसार देहरादून निवासी सचिन शर्मा ने जनहित याचिका दायर कर कहा था कि राज्य सरकार ने साल 2014 में प्रदेश में लैंड फ्रॉड व जमीन से जुड़े मामलों में होने वाले धोखाधड़ी को रोकने के लिए लैंड फ्रॉड समन्वय समिति का गठन किया था. जिसके अध्यक्ष कुमाऊं व गढ़वाल रीजन के कमिश्नर सहित परिक्षेत्रीय पुलिस उप महानिरीक्षक, आईजी, अपर आयुक्त और संबंधित वन संरक्षक, संबंधित विकास प्राधिकरण का मुखिया, सम्बंधित क्षेत्र का नगर आयुक्त व एसआईटी के अधिकारियों कमेटी में शामिल थे.

इस कमेटी का काम राज्य में हो रहे लैंड फ्रॉड व धोखाधड़ी के मामलो की जांच करना और जरूरत पड़ने पर उसकी एसआईटी से जांच करके मुकदमा दर्ज करना था. लेकिन आज की तिथि में लैंड फ्रॉड व धोखाधड़ी के जितनी भी शिकायते पुलिस को मिल रही है, पुलिस खुद ही इन मामलों में अपराध दर्ज कर रही है. जबकि शासनदेश के अनुसार ऐसे मामलों को लैंड फ्रॉड समन्वय समिति के पास जांच के लिए भेजा जाना था.

जनहित याचिका में कहा गया कि पुलिस को न तो जमीन से जुड़े मामलों के नियम पता है और न ही ऐसे मामलों में मुकदमा दर्ज करने की पावर है. शासनदेश में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि जब ऐसा मामला पुलिस के पास आता है तो लैंड फ्रॉड समन्वय समिति को भेजा जाए और वहीं इसकी जांच करेगी. अगर फ्रॉड हुआ है तो संबंधित थाने को मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया जाएगा. वर्तमान में कमेटी का कार्य थाने से हो रहा है, जो शासनादेश में दिए गए निर्देशों के विरुद्ध है. इस पर रोक लगाई जाए.

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नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में भूमि की धोखाधड़ी और अवैध खरीद फरोख्त पर अंकुश लगाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायधीश रितु बाहरी व न्यायमूर्ती राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा है कि 2014 में राज्य सरकार ने लैंड फ्रॉड समवन्य कमेटी गठित की थी, वह किस तरह से कार्य कर रही है और अभी तक कमेटी के पास कितने लैंड फ्रॉड से सम्बंधित शिकायते आई है. कोर्ट ने अगले मंगलवार 16 जुलाई तक स्थिति स्पष्ट करने के आदेश दिए है.

मामले के अनुसार देहरादून निवासी सचिन शर्मा ने जनहित याचिका दायर कर कहा था कि राज्य सरकार ने साल 2014 में प्रदेश में लैंड फ्रॉड व जमीन से जुड़े मामलों में होने वाले धोखाधड़ी को रोकने के लिए लैंड फ्रॉड समन्वय समिति का गठन किया था. जिसके अध्यक्ष कुमाऊं व गढ़वाल रीजन के कमिश्नर सहित परिक्षेत्रीय पुलिस उप महानिरीक्षक, आईजी, अपर आयुक्त और संबंधित वन संरक्षक, संबंधित विकास प्राधिकरण का मुखिया, सम्बंधित क्षेत्र का नगर आयुक्त व एसआईटी के अधिकारियों कमेटी में शामिल थे.

इस कमेटी का काम राज्य में हो रहे लैंड फ्रॉड व धोखाधड़ी के मामलो की जांच करना और जरूरत पड़ने पर उसकी एसआईटी से जांच करके मुकदमा दर्ज करना था. लेकिन आज की तिथि में लैंड फ्रॉड व धोखाधड़ी के जितनी भी शिकायते पुलिस को मिल रही है, पुलिस खुद ही इन मामलों में अपराध दर्ज कर रही है. जबकि शासनदेश के अनुसार ऐसे मामलों को लैंड फ्रॉड समन्वय समिति के पास जांच के लिए भेजा जाना था.

जनहित याचिका में कहा गया कि पुलिस को न तो जमीन से जुड़े मामलों के नियम पता है और न ही ऐसे मामलों में मुकदमा दर्ज करने की पावर है. शासनदेश में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि जब ऐसा मामला पुलिस के पास आता है तो लैंड फ्रॉड समन्वय समिति को भेजा जाए और वहीं इसकी जांच करेगी. अगर फ्रॉड हुआ है तो संबंधित थाने को मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया जाएगा. वर्तमान में कमेटी का कार्य थाने से हो रहा है, जो शासनादेश में दिए गए निर्देशों के विरुद्ध है. इस पर रोक लगाई जाए.

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