नैनीतालः उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में भूमि की धोखाधड़ी और अवैध खरीद फरोख्त पर अंकुश लगाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ती राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के आधार पर जनहित याचिका निस्तारित कर दी है.
दरअसल, पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि 2014 में राज्य सरकार ने लैंड फ्रॉड समन्वय कमेटी गठित की थी. वह किस तरह से कार्य कर रही है और अभी तक कमेटी के पास कितने लैंड फ्रॉड से संबंधित शिकायतें आई हैं? रिपोर्ट पेश करें. राज्य सरकार ने रिपोर्ट पेश कर कहा है कि कमेटी के पास अभी तक 426 शिकायतें आई और कमेटी ने उनपर सुनवाई की है. सरकार की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए कोर्ट ने जनहित याचिका को निस्तारित कर दिया है.
मामले के मुताबिक, देहरादून निवासी सचिन शर्मा ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार ने 2014 में प्रदेश में लैंड फ्रॉड और जमीन से जुड़े मामलों में होने वाले धोखाधड़ी को रोकने के लिए लैंड फ्रॉड समन्वय समिति का गठन किया था. जिसका अध्यक्ष कुमाऊं और गढ़वाल रीजन के कमिश्नर समेत परिक्षेत्रीय पुलिस उप महानिरीक्षक, आईजी, अपर आयुक्त, संबंधित वन संरक्षक, संबंधित विकास प्राधिकरण का मुख्या, संबंधित क्षेत्र के नगर आयुक्त और एसआईटी के अधिकारियों की कमेटी गठित की थी. जिनका कार्य राज्य में हो रहे लैंड फ्रॉड और धोखाधड़ी के मामलों की जांच करना, जरूरत पड़ने पर उसकी एसआईटी से जांच करके मुकदमा दर्ज करना था. परंतु आज की तिथि में लैंड फ्रॉड और धोखाधड़ी के जितनी भी शिकायतें पुलिस को मिल रही है. पुलिस खुद ही इन मामलों में अपराध दर्ज कर रही है. जबकि शासनादेश के अनुसार ऐसे मामलों को लैंड फ्रॉड समन्वय समिति के पास जांच के लिए भेजा जाना था.
जनहित याचिका में कहा गया कि पुलिस को न तो जमीन से जुड़े मामलों के नियम पता है, न ही ऐसे मामलों में मुकदमा दर्ज करने की पावर. शासनादेश में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि जब ऐसा मामला पुलिस के पास आता है तो लैंड फ्रॉड समन्वय समिति को भेजा जाए. वही इसकी जांच करेगी. अगर फ्रॉड हुआ है तो संबंधित थाने को मुकदमा दर्ज करने का आदेश देगी. वर्तमान में कमेटी का कार्य थाने से हो रहा है, जो शासनादेश में दिए गए निर्देशों के विरुद्ध है. इस पर रोक लगाई जाए.
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