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उच्च हिमालयी क्षेत्रों में 10 फीसदी घास के मैदानों पर खतरा! उत्तराखंड वन विभाग कर रहा बुग्यालों का ये ट्रीटमेंट - Uttarakhand Bugyal

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 2 hours ago

Updated : 6 minutes ago

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद घास के मैदानों पर संकट गहरा रहा है. हालात यह हैं कि उत्तराखंड स्थित कुल बुग्याल का 10 फीसदी क्षेत्र भूस्खलन समेत दूसरे खतरों की जद में है. हालांकि बिगड़ते प्राकृतिक स्वरूप को सुधारने के प्रयास भी जारी हैं और एक नई इको फ्रेंडली तकनीक पर काम करते हुए वन महकमा सफलतम प्रयोग को आगे बढ़ा रहा है.

UTTARAKHAND BUGYAL
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में 10 फीसदी घास के मैदानों पर खतरा (photo- ETV Bharat)

देहरादून: उच्च हिमालय में हिम रेखा और ट्री लाइन के बीच का इलाका इको सिस्टम के संतुलन की अहम कड़ी है. करीब 3500 मीटर से 4500 मीटर ऊंचाई के बीच का ये क्षेत्र पर्यावरण के स्वास्थ्य का थर्मामीटर माना जाता है, लेकिन पिछले कुछ दशकों से बुग्यालों (ऊंचे पहाड़ों में स्थित घास के मैदान) की सेहत बिगड़ रही है और घास का एक बड़ा इलाका लगातार बर्बाद हो रहा है. इसके पीछे की वजह केवल प्राकृतिक नहीं, बल्कि इंसानों का इन क्षेत्रों में दखल भी यहां की सूरत को बदल रहा है.

बुग्यालों की जरूरत और इस पर बढ़ता प्रेशर: उच्च हिमालय के निचले इलाके में घास के कई बड़े मैदान हैं. इंसानी स्वरूप के रूप में देखें तो उच्च हिमालय का बर्फ वाला क्षेत्र यदि मुकुट है, तो घास के मैदान इसकी गर्दन का परिक्षेत्र कहा जा सकता है. इस हिमालय इकोलॉजी का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है. वेस्टर्न हिमालय में उत्तराखंड से लेकर अफगानिस्तान तक बुग्याल के कई क्षेत्र मिलते हैं. हालांकि अलग-अलग क्षेत्र में इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है. जम्मू-कश्मीर में गुलमर्ग जैसे बड़े घास के मैदान हैं, जबकि उत्तराखंड के कई जिलों में घास के बड़े बुग्याल मौजूद हैं. हिमालय में ग्लेशियर से निकलने वाली जलधारा इन्हीं बुग्याल से होते हुए नदियों के रूप में आगे बढ़ती है. इस दौरान बुग्याल में मौजूद तमाम जड़ी बूटियों से निकलने वाला पानी नदियों को भी औषधीय गुण वाला बनाता है.

घास के मैदानों पर लगातार दबाव बढ़ रहा: घास के मैदानों पर पिछले कई दशकों से लगातार दबाव बढ़ रहा है. यह दबाव केवल प्राकृतिक रूप से ही नहीं है, बल्कि इंसानों की तमाम गतिविधियों ने भी घास के इन बड़े मैदानों को खतरे में डाला है. जलवायु परिवर्तन के कारण घास के मैदान सिमट रहे हैं. इन इलाकों में भारी मृदा अपरदन भी हो रहा है. इसके अलावा लैंडस्लाइड से भी घास के मैदानों का स्वरूप बदल रहा है. बादल फटने जैसी घटनाओं ने भी बुग्यालों को कम किया है. इन प्राकृतिक वजहों के अलावा घास के मैदानों में पर्यटन के लिहाज से कैंपिंग और चरवाहों द्वारा घास के मैदानों में जानवरों को ले जाने, जड़ी बूटियां के अवैध दोहन की घटनाओं समेत पर्यटन गतिविधियों में प्लास्टिक के कचरे के उपयोग ने भी बुग्यालों के लिए खतरा पैदा कर दिया है.

वन विभाग ने 83 हेक्टेयर बुग्याल क्षेत्र में ट्रीटमेंट किया: राज्य में कुल बुग्याल क्षेत्र का 10% इलाका प्रभावित होने के बाद उत्तराखंड वन विभाग ने अब तक 83 हेक्टेयर बुग्याल क्षेत्र में ट्रीटमेंट का काम किया है. बड़ी बात यह है कि बुग्याल को पहले जैसा बनने के लिए इको फ्रेंडली तकनीक का उपयोग किया जा रहा है, जिसमें ड्रेसिंग के लिए जूट के साथ पिरूल और बैंबू का भी उपयोग हो रहा है. अच्छी बात यह है कि इस नई तकनीक के परिणाम भी अच्छे आ रहे हैं.

Eco friendly तकनीक से लोगों को मिल रहा रोजगार: इको फ्रेंडली (Eco friendly) इस तकनीक का प्रयोग करने से लोगों को रोजगार भी उपलब्ध हो रहा है. वन विभाग द्वारा तकनीक का उपयोग करते हुए इन क्षेत्रों का चिन्हीकरण किया जा रहा है. राज्य में कुल 13 डिवीजन में बुग्याल के ट्रीटमेंट पर काम हो रहा है. इस तरह जहां बुग्याल पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है, तो वहीं वन विभाग घास के इन बड़े मैदाने को बचाने में जुटा हुआ है. अच्छी बात यह है कि इसके लिए इको फ्रेंडली टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हो रहा है और इसके अच्छे परिणाम आने के कारण वन विभाग भी बेहद खुश नजर आ रहा है.

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देहरादून: उच्च हिमालय में हिम रेखा और ट्री लाइन के बीच का इलाका इको सिस्टम के संतुलन की अहम कड़ी है. करीब 3500 मीटर से 4500 मीटर ऊंचाई के बीच का ये क्षेत्र पर्यावरण के स्वास्थ्य का थर्मामीटर माना जाता है, लेकिन पिछले कुछ दशकों से बुग्यालों (ऊंचे पहाड़ों में स्थित घास के मैदान) की सेहत बिगड़ रही है और घास का एक बड़ा इलाका लगातार बर्बाद हो रहा है. इसके पीछे की वजह केवल प्राकृतिक नहीं, बल्कि इंसानों का इन क्षेत्रों में दखल भी यहां की सूरत को बदल रहा है.

बुग्यालों की जरूरत और इस पर बढ़ता प्रेशर: उच्च हिमालय के निचले इलाके में घास के कई बड़े मैदान हैं. इंसानी स्वरूप के रूप में देखें तो उच्च हिमालय का बर्फ वाला क्षेत्र यदि मुकुट है, तो घास के मैदान इसकी गर्दन का परिक्षेत्र कहा जा सकता है. इस हिमालय इकोलॉजी का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है. वेस्टर्न हिमालय में उत्तराखंड से लेकर अफगानिस्तान तक बुग्याल के कई क्षेत्र मिलते हैं. हालांकि अलग-अलग क्षेत्र में इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है. जम्मू-कश्मीर में गुलमर्ग जैसे बड़े घास के मैदान हैं, जबकि उत्तराखंड के कई जिलों में घास के बड़े बुग्याल मौजूद हैं. हिमालय में ग्लेशियर से निकलने वाली जलधारा इन्हीं बुग्याल से होते हुए नदियों के रूप में आगे बढ़ती है. इस दौरान बुग्याल में मौजूद तमाम जड़ी बूटियों से निकलने वाला पानी नदियों को भी औषधीय गुण वाला बनाता है.

घास के मैदानों पर लगातार दबाव बढ़ रहा: घास के मैदानों पर पिछले कई दशकों से लगातार दबाव बढ़ रहा है. यह दबाव केवल प्राकृतिक रूप से ही नहीं है, बल्कि इंसानों की तमाम गतिविधियों ने भी घास के इन बड़े मैदानों को खतरे में डाला है. जलवायु परिवर्तन के कारण घास के मैदान सिमट रहे हैं. इन इलाकों में भारी मृदा अपरदन भी हो रहा है. इसके अलावा लैंडस्लाइड से भी घास के मैदानों का स्वरूप बदल रहा है. बादल फटने जैसी घटनाओं ने भी बुग्यालों को कम किया है. इन प्राकृतिक वजहों के अलावा घास के मैदानों में पर्यटन के लिहाज से कैंपिंग और चरवाहों द्वारा घास के मैदानों में जानवरों को ले जाने, जड़ी बूटियां के अवैध दोहन की घटनाओं समेत पर्यटन गतिविधियों में प्लास्टिक के कचरे के उपयोग ने भी बुग्यालों के लिए खतरा पैदा कर दिया है.

वन विभाग ने 83 हेक्टेयर बुग्याल क्षेत्र में ट्रीटमेंट किया: राज्य में कुल बुग्याल क्षेत्र का 10% इलाका प्रभावित होने के बाद उत्तराखंड वन विभाग ने अब तक 83 हेक्टेयर बुग्याल क्षेत्र में ट्रीटमेंट का काम किया है. बड़ी बात यह है कि बुग्याल को पहले जैसा बनने के लिए इको फ्रेंडली तकनीक का उपयोग किया जा रहा है, जिसमें ड्रेसिंग के लिए जूट के साथ पिरूल और बैंबू का भी उपयोग हो रहा है. अच्छी बात यह है कि इस नई तकनीक के परिणाम भी अच्छे आ रहे हैं.

Eco friendly तकनीक से लोगों को मिल रहा रोजगार: इको फ्रेंडली (Eco friendly) इस तकनीक का प्रयोग करने से लोगों को रोजगार भी उपलब्ध हो रहा है. वन विभाग द्वारा तकनीक का उपयोग करते हुए इन क्षेत्रों का चिन्हीकरण किया जा रहा है. राज्य में कुल 13 डिवीजन में बुग्याल के ट्रीटमेंट पर काम हो रहा है. इस तरह जहां बुग्याल पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है, तो वहीं वन विभाग घास के इन बड़े मैदाने को बचाने में जुटा हुआ है. अच्छी बात यह है कि इसके लिए इको फ्रेंडली टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हो रहा है और इसके अच्छे परिणाम आने के कारण वन विभाग भी बेहद खुश नजर आ रहा है.

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