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जीआई फैसिलिटेशन में बनारस बना देश का सबसे बड़ा केंद्र, 5 महीने में 12 राज्यों के 80 जीआई आवेदन वाराणसी से फाइल - GI Facilitation

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 31, 2024, 10:39 AM IST

देश के खास उत्पादों को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन दिलवाने के मामले में यूपी का वाराणसी सेंटर नंबर एक पर पहुंच गया है. 5 महीने में यहां से सबसे ज्यादा आवेदन किए गए हैं.

जीआई फैसिलिटेशन में बनारस सबसे बड़ा केंद्र.
जीआई फैसिलिटेशन में बनारस सबसे बड़ा केंद्र. (Photo Credit; ETV Bharat)

वाराणसी : देशभर में विशिष्ट और किसी जिले या राज्य की पहचान रखने वाली चीजों को जी यानी ज्योग्राफिकल इंडिकेशन दिलवाने के मामले में वाराणसी कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. इस दिशा में काम करने वाली संस्था ने 12 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के 5 माह में ही 80 जीआई आवेदन जमा किए. अपना ही रिकार्ड तोड़ते हुए इतने कम समय (अप्रैल से अगस्त 2024) में इतने जीआई आवेदन जमा करने का रिकार्ड जीआई विशेषज्ञ पद्मम्श्री डॉ. रजनीकांत की ओर से बनाया गया. यह 30 अगस्त को यह नया कीर्तिमान स्थापित किया गया.

जीआई विशेषज्ञ डॉक्टर रजनीकांत ने बताया कि वाराणसी से किया गया यह प्रयास अब जीआई रजिस्ट्री चेन्नई के वेबसाइट पर भी दिख रहा है. 30 अगस्त को इस वेबसाइट पर अरुणाचल प्रदेश के 6 जीआई आवेदनों को ज्यों ही पोस्ट किया गया, उसके अनुसार ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के तकनीकी सहयोग से इस वित्तीय वर्ष अप्रैल से अगस्त 2024 में यह संख्या 80 पहुंच गई. इसमें 12 राज्य जैसे यूपी से 7, राजस्थान 10, छत्तीसगढ़ 3, गुजरात 3, त्रिपुरा 9, असम 4, झारखंड 6, हरियाणा 3, जम्मू कश्मीर 20, लद्दाख 6, बिहार 3 और अरुणाचल प्रदेश के 6 प्रोडक्ट के जीआई आवेदन जीआई रजिस्ट्री चेन्नई को भेजे गए और स्वीकार भी हुए.

इसमें कुछ प्रमुख उत्पाद जैसे बनारस क्ले क्राफ्ट, लखनउ क्ले क्राफ्ट, मेरठ बिगुल, राजस्थान का रावणहत्था, जोधपुर वुड क्राफ्ट, जयपुर मार्बल क्राफ्ट, बस्तर स्टोन क्राफ्ट, छत्तीसगढ़ पनिका साड़ी, झारखंड डोकरा, पंछी परहन साड़ी, जादू पटिया पेन्टिंग, त्रिपुरा केन क्राफ्ट, त्रिपुरा बम्बू क्राफ्ट, त्रिपुरा पेन्टिंग, त्रिपुरा बिन्नी राईस, हरिनारायन राईस, कालीखासा धान, गुजरात पाटन मशरू साड़ी, सौराष्ट्रा बीड्स वर्क, लद्दाख थांका पेंटिंग, लद्दाख चिली मेटल क्राफ्ट, लेह लिकिर पाटरी, लेह चाल टेक्सटाईल, कश्मीर अम्बरी सेव एवं महराजी सेव, अखरोट, काश्मीरी नदरू, काश्मीरी हाक, किश्तवार चिलगोजा, गुरेज राजमाश, किश्तवारी ब्लैंकेट, सांभा कैलिको प्रिन्ट, हरियाणा बहादुरगढ़ वुडेन क्राफ्ट, हिसार मंगाली वुडेन बीड्स, उदयपुर ठीकरी और डंका क्राफ्ट, दरभंगा टेराकोटा, पटना कलम पेंटिंग, तवांग याक चुरकम, याक टोपी, याक ब्लैंकेट, कमन दिगारो मिश्मी टेक्सटाइल, वान्चों बीड्स क्राफ्ट के साथ ही असम से करबी एंगलांग हैण्डलूम, देवरी हैण्डलूम, आसाम बम्बू क्राफ्ट सहित कुल 80 परंपरागत उत्पाद इस जीआई पंजीकरण प्रक्रिया में शामिल हुए.

पद्मश्री डॉ. रजनीकांत ने बताया कि पूर्व में आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में इसी संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के तकनीकी सहयोग से एक वर्ष में 75 जीआई आवेदन किया गया था. अब इस उपलब्धि को पीछे छोड़ दिया गया है. वाराणसी और आसपास के जनपदों में अभी भी 34 जीआई टैग के साथ भारत नहीं बल्कि पूरे विश्व में एक भूभाग में सर्वाधिक जीआई का गौरव प्राप्त है. इसमें लगभग 20 लाख लोग परोक्ष व अपरोक्ष रूप से 25500 करोड़ का सालाना कारोबार करते हैं.

वर्ष 2007 से शुरू हुए भारत की समृद्ध विरासत को बचाने व बढ़ाने के लिए डॉ. रजनीकांत के प्रयास एवं संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन वाराणसी के तकनीकी सहयोग से अब तक 20 राज्यों के 303 जीआई फाइल किए जा चुके हैं, जिसमें 148 जीआई टैग ग्रांट भी हुए हैं और बाकी सभी लगभग एक वर्ष के अंदर भारत की बौद्धिक संपदा में शुमार हो जाएंगे.

यह भी पढ़ें : माफिया अतीक का खास गुर्गा गिरफ्तार, 4 देसी बम भी मिले, जल्द पकड़ी जा सकती है 50 हजार की इनामी शाइस्ता परवीन

वाराणसी : देशभर में विशिष्ट और किसी जिले या राज्य की पहचान रखने वाली चीजों को जी यानी ज्योग्राफिकल इंडिकेशन दिलवाने के मामले में वाराणसी कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. इस दिशा में काम करने वाली संस्था ने 12 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के 5 माह में ही 80 जीआई आवेदन जमा किए. अपना ही रिकार्ड तोड़ते हुए इतने कम समय (अप्रैल से अगस्त 2024) में इतने जीआई आवेदन जमा करने का रिकार्ड जीआई विशेषज्ञ पद्मम्श्री डॉ. रजनीकांत की ओर से बनाया गया. यह 30 अगस्त को यह नया कीर्तिमान स्थापित किया गया.

जीआई विशेषज्ञ डॉक्टर रजनीकांत ने बताया कि वाराणसी से किया गया यह प्रयास अब जीआई रजिस्ट्री चेन्नई के वेबसाइट पर भी दिख रहा है. 30 अगस्त को इस वेबसाइट पर अरुणाचल प्रदेश के 6 जीआई आवेदनों को ज्यों ही पोस्ट किया गया, उसके अनुसार ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के तकनीकी सहयोग से इस वित्तीय वर्ष अप्रैल से अगस्त 2024 में यह संख्या 80 पहुंच गई. इसमें 12 राज्य जैसे यूपी से 7, राजस्थान 10, छत्तीसगढ़ 3, गुजरात 3, त्रिपुरा 9, असम 4, झारखंड 6, हरियाणा 3, जम्मू कश्मीर 20, लद्दाख 6, बिहार 3 और अरुणाचल प्रदेश के 6 प्रोडक्ट के जीआई आवेदन जीआई रजिस्ट्री चेन्नई को भेजे गए और स्वीकार भी हुए.

इसमें कुछ प्रमुख उत्पाद जैसे बनारस क्ले क्राफ्ट, लखनउ क्ले क्राफ्ट, मेरठ बिगुल, राजस्थान का रावणहत्था, जोधपुर वुड क्राफ्ट, जयपुर मार्बल क्राफ्ट, बस्तर स्टोन क्राफ्ट, छत्तीसगढ़ पनिका साड़ी, झारखंड डोकरा, पंछी परहन साड़ी, जादू पटिया पेन्टिंग, त्रिपुरा केन क्राफ्ट, त्रिपुरा बम्बू क्राफ्ट, त्रिपुरा पेन्टिंग, त्रिपुरा बिन्नी राईस, हरिनारायन राईस, कालीखासा धान, गुजरात पाटन मशरू साड़ी, सौराष्ट्रा बीड्स वर्क, लद्दाख थांका पेंटिंग, लद्दाख चिली मेटल क्राफ्ट, लेह लिकिर पाटरी, लेह चाल टेक्सटाईल, कश्मीर अम्बरी सेव एवं महराजी सेव, अखरोट, काश्मीरी नदरू, काश्मीरी हाक, किश्तवार चिलगोजा, गुरेज राजमाश, किश्तवारी ब्लैंकेट, सांभा कैलिको प्रिन्ट, हरियाणा बहादुरगढ़ वुडेन क्राफ्ट, हिसार मंगाली वुडेन बीड्स, उदयपुर ठीकरी और डंका क्राफ्ट, दरभंगा टेराकोटा, पटना कलम पेंटिंग, तवांग याक चुरकम, याक टोपी, याक ब्लैंकेट, कमन दिगारो मिश्मी टेक्सटाइल, वान्चों बीड्स क्राफ्ट के साथ ही असम से करबी एंगलांग हैण्डलूम, देवरी हैण्डलूम, आसाम बम्बू क्राफ्ट सहित कुल 80 परंपरागत उत्पाद इस जीआई पंजीकरण प्रक्रिया में शामिल हुए.

पद्मश्री डॉ. रजनीकांत ने बताया कि पूर्व में आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में इसी संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के तकनीकी सहयोग से एक वर्ष में 75 जीआई आवेदन किया गया था. अब इस उपलब्धि को पीछे छोड़ दिया गया है. वाराणसी और आसपास के जनपदों में अभी भी 34 जीआई टैग के साथ भारत नहीं बल्कि पूरे विश्व में एक भूभाग में सर्वाधिक जीआई का गौरव प्राप्त है. इसमें लगभग 20 लाख लोग परोक्ष व अपरोक्ष रूप से 25500 करोड़ का सालाना कारोबार करते हैं.

वर्ष 2007 से शुरू हुए भारत की समृद्ध विरासत को बचाने व बढ़ाने के लिए डॉ. रजनीकांत के प्रयास एवं संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन वाराणसी के तकनीकी सहयोग से अब तक 20 राज्यों के 303 जीआई फाइल किए जा चुके हैं, जिसमें 148 जीआई टैग ग्रांट भी हुए हैं और बाकी सभी लगभग एक वर्ष के अंदर भारत की बौद्धिक संपदा में शुमार हो जाएंगे.

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