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यूपी में 2 करोड़ मुस्लिम वोटरों ने किया मतदान, भाजपा को मिले एक लाख से भी कम वोट, जानिए इसके पीछे क्या रही वजह - lok sabha election 2024

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भाजपा ने यूपी के मुस्लिम वोटरों को अपनी तरफ खींचने के लिए हर जतन किया. हालांकि जब परिणाम आया तो भाजपा अपने मिशन में पूरी तरह फेल रही. इसके पीछे की वजह पर एक रिपोर्ट.

यूपी लोकसभा चुनाव 2024.
यूपी लोकसभा चुनाव 2024. (photo credit etv bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 16, 2024, 6:43 PM IST

लखनऊ : लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भाजपा ने यूपी के मुस्लिम वोटरों को अपनी तरफ खींचने के लिए हर जतन किया. करीब एक दर्जन कार्यक्रमों का आयोजन, लगातार अभियान चले और इसके साथ ही कई MLC और एक मंत्री भी बनाया. हालांकि जब परिणाम आया तो भाजपा अपने मिशन में पूरी तरह फेल रही. पसमांदा मुस्लिमों का वोट बैंक पाने की जुगत भी काम नहीं आई. मुस्लिमों के हर तबके ने उसी पार्टी को वोट दिया, जो भाजपा को हरा सकता था. इस चुनाव में भाजपा को मुस्लिमों का 1 प्रतिशत वोट भी नहीं मिल सका. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा राष्ट्रीय मुस्लिम मंच और बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अभियान फिसड्डी साबित हुए. ऐसे-ऐसे मतदान केंद्र हैं, जहां बीजेपी को दहाई की संख्या में भी वोट नहीं मिले. फिलहाल उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी का अल्पसंख्यक मोर्चा ऐसे बूथों की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं कर सका है, जहां भारतीय जनता पार्टी को बेहतरीन मतदान प्रतिशत प्राप्त हुआ. आइए जानते हैं भाजपा को मुस्लिम मत न मिलने की क्या रही वजह.

मुसलमानों को पाले में लाने की कवायद रह गई धरी

भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा ने 2022 विधानसभा चुनाव के बाद अपने विस्तार के लिए अनेक प्रयास किए थे. करीब 50000 कार्यकर्ताओं का दावा अल्पसंख्यक मोर्चा की ओर से किया गया था. जबकि दूसरे दलों से बड़ी संख्या में मुसलमान नेताओं और कार्यकर्ताओं को भारतीय जनता पार्टी में शामिल किया गया. पिछले साल हुए निकाय चुनाव में बड़ी संख्या में मुसलमानों को भारतीय जनता पार्टी ने टिकट भी दिए थे. इसके बावजूद कोई प्रभाव नहीं पड़ा और भाजपा को न के बराबर मुस्लिम मत मिले.

लगातार किए जाते रहे कार्यक्रम

भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा की ओर से पसमांदा सम्मेलन, मुस्लिम सम्मेलन, मोदी भाई जान सम्मेलन और ऐसे ही अनेक कार्यक्रमों का आयोजन पूरे प्रदेश में समय-समय पर किया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां की बात को उर्दू पुस्तक का स्वरूप देकर मादरसों तक पहुंचाया गया. जिलों-जिलों में मुस्लिम सम्मेलन आयोजित किए गए. मौलानाओं से संपर्क किया गया. सरकार और संगठन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने का दावा किया गया. इसके बावजूद भाजपा के हाथ कुछ नहीं आ सका.

सरकार में मुसलमानों को सहभागिता

भारतीय जनता पार्टी ने साल 2017 से 2022 के बीच में मोहसिन रजा को मंत्री बनाया था. मोहसिन रजा एमएलसी भी बनाए गए थे. उनके अलावा बुक्कल नवाब को भी एमएलसी बनाया गया था. फिर 2022 की चुनाव के बाद दानिश आजाद अंसारी को एमएलसी और मंत्री बनाया गया. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तारिक़ मंसूर को भी बीजेपी ने एमएलसी बनाया था. एक समय भाजपा के खेमे में कुल चार मुस्लिम एमएलसी थे. यह अपने आप में इतिहास था.

2 करोड़ मुस्लिम मतदाताओं का सिर्फ 0.5 प्रतिशत BJP को

भारतीय जनता पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि यूपी में करीब 8 करोड़ लोगों ने मतदान किया. इनमें से लगभग दो करोड़ मतदाता मुस्लिम थे. जिनमें से मात्र 0.5% मुस्लिम मतदाताओं ने ही भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया है. संख्या में परिवर्तित करने पर यह करीब 100000 होती है. भारतीय जनता पार्टी की ओर से करीब 50000 मुस्लिम कार्यकर्ताओं का दावा किया जाता है. ऐसे में इन कार्यकर्ताओं के परिवार ने भी भाजपा को वोट नहीं दिया, यह तय हो जाता है. अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासित अली का कहना है कि ऐसा नहीं है कि मुस्लिम कार्यकर्ताओं के परिवारों से वोट नहीं मिला. हमने कई ऐसे मतदान केंद्र की रिपोर्ट निकाली है, जहां मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी को बहुत अच्छा वोट मिला है. पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई मतदान केंद्रों में हमारा बढ़िया प्रदर्शन हुआ है. हां यह बात सही है कि उतना अच्छा नहीं है, जितना हमको उम्मीद थी.

जातियों में नहीं टूटा मुसलमान

पसमांदा सम्मेलन और पसमांदा समाज को लेकर भारतीय जनता पार्टी लगातार आक्रामक अभियान चला रही थी. उसको यह उम्मीद थी कि पसमांदा समाज अगर अलग हुआ तो मुस्लिम जातियों में टूट जाएंगे. मगर चुनाव के दौरान ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ. मुसलमानों ने उसी को वोट दिया जो भारतीय जनता पार्टी को हरा रहा था. जिसका सबसे बड़ा उदाहरण पश्चिम उत्तर प्रदेश की नगीना लोकसभा सीट है. इस सीट पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का प्रत्याशी भाजपा के सामने मजबूत नहीं थे तो उन्होंने आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर रावण को वोट दिया. दलित मुस्लिम गठजोड़ का वोट एक साथ पड़ने से चंद्रशेखर को शानदार जीत मिली.

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर दुबे का इस बारे में कहना है कि भारतीय जनता पार्टी कितना भी प्रयास कर ले मगर जिस तरह की राजनीति हो रही है, उसमें मुस्लिम कभी भी बीजेपी को वोट नहीं देंगे. अभी केवल उस राजनीतिक दल को वोट देंगे जो बीजेपी को हराने में सक्षम होगा. अगर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस कमजोर होंगे तो वह तीसरे दल को अपना नेता चुन लेंगे, मगर भाजपा को कभी नहीं जिताएंगे.

यह भी पढ़ें : यूपी बीजेपी के धोखेबाजों पर 'सर्जिकल स्ट्राइक', भितरघातियों से पार्टी लेगी चुन-चुनकर बदला - BJP Fraudsters Traitors

यह भी पढ़ें :अयोध्या में भाजपा की हार पर साक्षी महाराज बोले- सौहार्द नहीं, जातिवाद जीता - Sakshi Maharaj on BJP defeat

लखनऊ : लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भाजपा ने यूपी के मुस्लिम वोटरों को अपनी तरफ खींचने के लिए हर जतन किया. करीब एक दर्जन कार्यक्रमों का आयोजन, लगातार अभियान चले और इसके साथ ही कई MLC और एक मंत्री भी बनाया. हालांकि जब परिणाम आया तो भाजपा अपने मिशन में पूरी तरह फेल रही. पसमांदा मुस्लिमों का वोट बैंक पाने की जुगत भी काम नहीं आई. मुस्लिमों के हर तबके ने उसी पार्टी को वोट दिया, जो भाजपा को हरा सकता था. इस चुनाव में भाजपा को मुस्लिमों का 1 प्रतिशत वोट भी नहीं मिल सका. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा राष्ट्रीय मुस्लिम मंच और बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अभियान फिसड्डी साबित हुए. ऐसे-ऐसे मतदान केंद्र हैं, जहां बीजेपी को दहाई की संख्या में भी वोट नहीं मिले. फिलहाल उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी का अल्पसंख्यक मोर्चा ऐसे बूथों की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं कर सका है, जहां भारतीय जनता पार्टी को बेहतरीन मतदान प्रतिशत प्राप्त हुआ. आइए जानते हैं भाजपा को मुस्लिम मत न मिलने की क्या रही वजह.

मुसलमानों को पाले में लाने की कवायद रह गई धरी

भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा ने 2022 विधानसभा चुनाव के बाद अपने विस्तार के लिए अनेक प्रयास किए थे. करीब 50000 कार्यकर्ताओं का दावा अल्पसंख्यक मोर्चा की ओर से किया गया था. जबकि दूसरे दलों से बड़ी संख्या में मुसलमान नेताओं और कार्यकर्ताओं को भारतीय जनता पार्टी में शामिल किया गया. पिछले साल हुए निकाय चुनाव में बड़ी संख्या में मुसलमानों को भारतीय जनता पार्टी ने टिकट भी दिए थे. इसके बावजूद कोई प्रभाव नहीं पड़ा और भाजपा को न के बराबर मुस्लिम मत मिले.

लगातार किए जाते रहे कार्यक्रम

भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा की ओर से पसमांदा सम्मेलन, मुस्लिम सम्मेलन, मोदी भाई जान सम्मेलन और ऐसे ही अनेक कार्यक्रमों का आयोजन पूरे प्रदेश में समय-समय पर किया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां की बात को उर्दू पुस्तक का स्वरूप देकर मादरसों तक पहुंचाया गया. जिलों-जिलों में मुस्लिम सम्मेलन आयोजित किए गए. मौलानाओं से संपर्क किया गया. सरकार और संगठन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने का दावा किया गया. इसके बावजूद भाजपा के हाथ कुछ नहीं आ सका.

सरकार में मुसलमानों को सहभागिता

भारतीय जनता पार्टी ने साल 2017 से 2022 के बीच में मोहसिन रजा को मंत्री बनाया था. मोहसिन रजा एमएलसी भी बनाए गए थे. उनके अलावा बुक्कल नवाब को भी एमएलसी बनाया गया था. फिर 2022 की चुनाव के बाद दानिश आजाद अंसारी को एमएलसी और मंत्री बनाया गया. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तारिक़ मंसूर को भी बीजेपी ने एमएलसी बनाया था. एक समय भाजपा के खेमे में कुल चार मुस्लिम एमएलसी थे. यह अपने आप में इतिहास था.

2 करोड़ मुस्लिम मतदाताओं का सिर्फ 0.5 प्रतिशत BJP को

भारतीय जनता पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि यूपी में करीब 8 करोड़ लोगों ने मतदान किया. इनमें से लगभग दो करोड़ मतदाता मुस्लिम थे. जिनमें से मात्र 0.5% मुस्लिम मतदाताओं ने ही भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया है. संख्या में परिवर्तित करने पर यह करीब 100000 होती है. भारतीय जनता पार्टी की ओर से करीब 50000 मुस्लिम कार्यकर्ताओं का दावा किया जाता है. ऐसे में इन कार्यकर्ताओं के परिवार ने भी भाजपा को वोट नहीं दिया, यह तय हो जाता है. अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासित अली का कहना है कि ऐसा नहीं है कि मुस्लिम कार्यकर्ताओं के परिवारों से वोट नहीं मिला. हमने कई ऐसे मतदान केंद्र की रिपोर्ट निकाली है, जहां मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी को बहुत अच्छा वोट मिला है. पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई मतदान केंद्रों में हमारा बढ़िया प्रदर्शन हुआ है. हां यह बात सही है कि उतना अच्छा नहीं है, जितना हमको उम्मीद थी.

जातियों में नहीं टूटा मुसलमान

पसमांदा सम्मेलन और पसमांदा समाज को लेकर भारतीय जनता पार्टी लगातार आक्रामक अभियान चला रही थी. उसको यह उम्मीद थी कि पसमांदा समाज अगर अलग हुआ तो मुस्लिम जातियों में टूट जाएंगे. मगर चुनाव के दौरान ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ. मुसलमानों ने उसी को वोट दिया जो भारतीय जनता पार्टी को हरा रहा था. जिसका सबसे बड़ा उदाहरण पश्चिम उत्तर प्रदेश की नगीना लोकसभा सीट है. इस सीट पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का प्रत्याशी भाजपा के सामने मजबूत नहीं थे तो उन्होंने आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर रावण को वोट दिया. दलित मुस्लिम गठजोड़ का वोट एक साथ पड़ने से चंद्रशेखर को शानदार जीत मिली.

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर दुबे का इस बारे में कहना है कि भारतीय जनता पार्टी कितना भी प्रयास कर ले मगर जिस तरह की राजनीति हो रही है, उसमें मुस्लिम कभी भी बीजेपी को वोट नहीं देंगे. अभी केवल उस राजनीतिक दल को वोट देंगे जो बीजेपी को हराने में सक्षम होगा. अगर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस कमजोर होंगे तो वह तीसरे दल को अपना नेता चुन लेंगे, मगर भाजपा को कभी नहीं जिताएंगे.

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