गोरखपुर: लोकसभा चुनाव 2024 की पूरी प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है. इसके परिणाम भी आ चुके हैं. पूरे देश में NDA और INDI गठबंधन के जीते प्रत्याशियों को लेकर चर्चा खूब है. वहीं उत्तर प्रदेश में बात की जाए तो समाजवादी पार्टी ने जहां बड़ा कम बैक किया है, तो बीजेपी के खाते में आए चुनाव परिणाम उसे मंथन करने पर मजबूर करते हैं.
इस सबके बीच एक बात सबसे अहम रही कि जहां पूरे प्रदेश में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का PDA मुद्दा गर्माया रहा और अयोध्या मंडल से भाजपा को धोखा मिला वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने गृह क्षेत्र गोरखपुर की दोनों लोकसभा सीटों (गोरखपुर और बांसगांव) पर कब्जा जमाने में कामयाब रहे. यहां अगर किसी का जादू चला है तो वह योगी और गोरक्षपीठ का ही चला है. यही नहीं गोरखपुर के आसपास की 4 सीटों कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, डुमरियागंज पर भी बीजेपी जीतने में सफल रही.
गोरखपुर में गोरक्षपीठ के जीतने की कायम रही परंपरा: बरसों से चली आ रही गोरक्षपीठ के जीतने की परंपरा कायम रही, भले ही बीजेपी का प्रत्याशी कोई हो. इन दोनों ही सीटों पर इंडी गठबंधन के प्रत्याशियों की हवा निकल गई. गोरखपुर और बांसगांव लोकसभा सीट पर भाजपा के प्रत्याशी जीतने में कामयाब हुए हैं. यह जरूर है कि लोकसभा चुनाव 2019 के मुकाबले 2024 में इनकी जीत का अंतर लाखों में घटा है.
जोड़-तोड़ की राजनीति नहीं चली: बावजूद इसके कोई भी जोड़-तोड़ गोरक्षपीठ और योगी आदित्यनाथ की इन परंपरागत सीटों को जीतने में सफल नहीं हो पाया. भले ही जातीय समीकरणों को जोड़ने का प्रयास किया गया हो. संविधान को टूटने से बचाने की आवाज बुलंद हुई हो. लेकिन गोरखपुर-बांसगांव क्षेत्र की जनता जो पिछले चुनावों में परिणाम देती रही है, वही देने में सफल हुई और भाजपा का कमल गोरखपुर- बांसगांव सीट से खिला.
अभिनेता रवि किशन ने लगातार दूसरी बार जीत की दर्ज: गोरखपुर सीट से भाजपा के प्रत्याशी के तौर पर फिल्म स्टार रवि किशन शुक्ला जहां एक लाख तीन हजार मतों से जीतने में कामयाब हुए, तो बांसगांव सीट से लगातार चौथी बार कमलेश पासवान 3150 मतों से जीते. इस बार उन्हें हालांकि जोरदार टक्कर मिली. 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब एक लाख 55000 वोटों के अंतर से जीते थे.
पूर्वांचल की सबसे अहम सीट है गोरखपुर: बात गोरखपुर संसदीय सीट की करें तो पूर्वांचल की राजनीति में सबसे अहम मानी जाने वाली गोरखपुर सीट से बीजेपी प्रत्याशी रवि किशन जीत गए हैं. रवि किशन शुरुआती रुझानों में बढ़त बनाते दिख रहे थे तो माना जा रहा था कि वे पिछले चुनाव की तरह ही अच्छी बढ़त हासिल कर लेंगे. हालांकि, अंतिम राउंड की समाप्ति तक उन्होंने सपा की काजल निषाद को लगभग 1 लाख 3 हजार 526 वोटों के अंतर से हरा दिया. शाम 6 बजे तक रवि किशन को 5 लाख 85,834 वोट हासिल हुए, तो वहीं सपा की काजल निषाद को 4 लाख 82 हजार 308 वोट प्राप्त हुए.
सीएम योगी गोरखपुर से 5 बार रहे सांसद: गोरखपुर से पांच बार जीतने में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सफल रहे, तो उनके गुरु महंत अवेद्यनाथ भी इस सीट से चार बार सांसद रह चुके हैं. वर्ष 1967 में पहली बार इस सीट को जीतने में महंत दिग्विजय नाथ कामयाब हुए थे. हालांकि बाद में उन्हें कांग्रेस प्रत्याशियों से दो बार हारना पड़ा. लेकिन, वर्ष 1989 से गोरक्षपीठ इस सीट को लगातर जीतती आ रही है.
निषादों की संख्या ज्याद, फिर भी रहता गोरक्षपीठ का प्रभाव: इसीलिए यह कहा जाता रहा कि गोरक्षपीठ की यह संसदीय सीट है. जनता का रुझान गोरक्षपीठ से लड़ने वाले प्रत्याशी के प्रति रहता है. विरोधी दल का कोई भी लड़े वह जीतने में कामयाब नहीं होता. इस सीट पर जातीय आंकड़ों की बात करें तो निषाद समाज के लोगों की बहुतायत संख्या है. बावजूद इसके निषाद समाज का कोई प्रत्याशी यहां से जीतने में सफल नहीं हो पाया.
2018 के उपचुनाव में चला था निषादों का सिक्का: सिवाय, वर्ष 2018 के लोकसभा उपचुनाव को छोड़कर. तब योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे और सीट खाली हुई थी. सपा-बसपा गठबंधन में यह सीट समाजवादी पार्टी ने महज 25000 वोटों से जीत ली थी. माना जा रहा था कि इस जीत में भी जातीय समीकरण से ज्यादा भारतीय जनता पार्टी संगठन और कार्यकर्ताओं का वह भरोसा था कि हम यह सीट बार-बार जीतते हैं और जीत ही लेंगे.
लोकसभा चुनाव 2019 में भी जीते थे रवि किशन: शायद यही उत्साह, लापरवाही बना और 2018 में बीजेपी की हार कारण. लेकिन, एक बार फिर 2019 में अभिनेता रवि किशन शुक्ला बाहर से आकर इस सीट पर योगी आदित्यनाथ के प्रतिनिधि के रूप में चुनाव लड़ रहे थे. गोरखपुर की जनता ने उन्हें सिर माथे पर बिठाया और 3 लाख 12000 से अधिक मतों से जीत दिलकार रवि किशन को गोरखपुर का सांसद बनाकर दिल्ली भेज दिया.
रवि किशन कहते हैं, हम तो योगी महाराज के खड़ाऊ लेकर जनता की सेवा के लिए आए हैं: रवि किशन बार-बार अपने बयानों में इस बात को कहते हैं कि यह सीट गोरक्षपीठ की है. आदित्यनाथ महाराज की सीट है. हम तो उनका खड़ाऊ लेकर यहां जनता की सेवा करने आए हैं और सेवा कर रहे हैं. यही वजह है वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में तमाम समीकरण के बावजूद रवि किशन एक लाख 3 हजार से अधिक मतों से जीतने में कामयाब हुए और योगी आदित्यनाथ की यह परंपरागत सीट उनकी प्रतिष्ठा को बचाने में भी कामयाब रही.
गोरखपुर में जीत का अंतर भाजपा के लिए मंथन का सवाल: लेकिन बीजेपी के लिए मंथन का सवाल तो छोड़ गई कि उसके खाते से करीब सवा दो लाख वोट विपक्षी गठबंधन हासिल करने में कामयाब रहा. राजनीतिक विश्लेषक शैलेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि गोरखपुर संसदीय सीट पर यह तय माना जाता है कि जीतेगा वही जिस पर गोरक्षपीठ और योगी आदित्यनाथ का हाथ होगा. भले ही निषाद बिरादरी बड़ी संख्या में है और समाज के नेता उसे अपने जातीय जाल में उलझाने का कार्य करते हैं.
गोरक्षपीठ से निषादों का गहरा लगाव: लेकिन योगी और पीठ के प्रति निषाद समाज का भी बड़ा लगाव है. बाबा मत्स्येंद्र नाथ को निषाद अपना पूर्वज मानते हैं जिससे उनका गोरक्षपीठ से नाता गहरा जुड़ता है. एक तरफ प्रदेश में जहां कई मंत्री अपनी विधानसभा में भाजपा को नहीं जिता पाए. वहीं योगी आदित्यनाथ की शहर विधानसभा में बीजेपी को सबसे बड़ी बढ़त मिली. वह अपने बूथ पर भी 80% से अधिक मत भाजपा को दिलाने में कामयाब रहे.
सपा ने हर बार उतारा निषाद प्रत्याश, मिली हार: पिछले 26 वर्षों में यह आठवां और लगातार चौथा लोकसभा चुनाव था, जब सपा ने गोरखपुर सीट से निषाद प्रत्याशी को मैदान में उतारा था. 1998 के चुनाव में जमुना निषाद प्रत्याशी बनाए गए थे और वह जीत के करीब पहुंचकर चुनाव हार गए थे. वर्ष 2009 में सपा ने गैर निषाद प्रत्याशी के रूप में भोजपुरी स्टार मनोज तिवारी पर अपना भरोसा जताया था. लेकिन, वह भी कामयाब नहीं हुए.
देखिए, सपा ने कब किसको दिया टिकट: वर्ष 1998, 99 और 2004 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने जमुना निषाद को टिकट दिया था. 2014 के लोकसभा चुनाव में जमुना की बेटी राजमति निषाद प्रत्याशी बनाई गईं. लेकिन, यह दल बराबर दूसरे पायदान पर ही योगी आदित्यनाथ के सामने परिणाम देता रहा. योगी ने करीब 3 लाख 12000 हजार वोट से 2014 का चुनाव जीता था. लेकिन वर्ष 2018 के उप चुनाव में इंजीनियर प्रवीण निषाद समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में, भाजपा प्रत्याशी उपेंद्र शुक्ला को 21961 मतों से हराने में कामयाब हो गए. इस चुनाव में बीजेपी में भितरघात की बड़ी तेज हवा थी.
यही कहा जा रहा था कि जब योगी इस सीट को 3 लाख वोटों से जीत सकते हैं, तो फिर भाजपा 21000 वोटों से हार कैसे जाएगी. बात करें 2019 के लोकसभा चुनाव की तो सपा ने निषाद प्रत्याशी के रूप में राम भुआल निषाद को मैदान उतारा. जिन्हें रवि किशन शुक्ला ने 3 लाख से अधिक वोटों से शिकस्त दे दी. एक बार फिर लोकसभा चुनाव हुआ 2024 का और सपा ने निषाद प्रत्याशी पर दांव आजमाया. उसके साथ सकारात्मक पक्ष रहा कि कांग्रेस पार्टी उसके साथ मिलकर लड़ी. लेकिन परिणाम फिर भी उसके पक्ष में नहीं आया.
गोरखपुर से अब तक हुए सांसद
1952 में कांग्रेस पार्टी से दशरथ प्रसाद द्विवेदी चुनाव जीते.
1957 और 62 में सिंहासन सिंह कांग्रेस पार्टी से चुनाव जीते.
1967 में महंत दिग्विजय नाथ हिंदू महासभा से चुनाव जीते.
1971 में नरसिंह नारायण पांडे कांग्रेस पार्टी से चुनाव जीते.
1977 में भारतीय लोक दल के प्रत्याशी हरिकेश बहादुर चुनाव जीते जो फिर 1980 में हरिकेश बहादुर कांग्रेस चुनाव जीते.
1984 में मदन पांडे कांग्रेस पार्टी से चुनाव जीते.
वर्ष 1989, 91 और 96 में महंत अवेद्यनाथ भारतीय जनता पार्टी से चुनाव जीते.
वर्ष 1998, 99, 2004, 2009, 2014 योगी आदित्यनाथ भारतीय जनता पार्टी से चुनाव जीते.
वर्ष 2018 उपचुनाव में सपा से प्रवीण निषाद चुनाव जीते.
वर्ष 2019 भारतीय जनता पार्टी से रवि किशन शुक्ला चुनाव जीते। 2024 के चुनाव में फिर मिली कामयाबी.
बांसगांव में भाजपा को मिली लगातार चौथी बार जीत: बात करें गोरखपुर जिले की दूसरी लोकसभा सीट बांसगांव की तो इस सीट को भाजपा ने 2024 में जीतकर लगातार चौथी बार कामयाबी हासिल की है. कमलेश पासवान चौथी बार सांसद चुने गए हैं. हालांकि, जीत का अंतर उनके पिछले सारे रिकॉर्ड से बेहद खराब है. फिर भी इंडी गठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी सदल प्रसाद से कांटे की लड़ाई में वह जीत ही गए.
कौन हैं कमलेश पासवान, क्या है उनका राजनीतिक इतिहास: कमलेश पासवान और उनके परिवार पर भी गोरक्षपीठ और योगी की कृपा बरसती है. कमलेश के पिता स्वर्गीय ओमप्रकाश पासवान का भी गोरक्षपीठ से गहरा नाता था. योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवेद्यनाथ उन्हें बहुत मानते थे. उन्हें महंत अवेद्यनाथ का हनुमान कहा जाता था. जिस सीट से अवेद्यनाथ पांच बार विधायक चुने गए थे, उस मनीराम विधानसभा सीट से उनके हनुमान के रूप में कमलेश पासवान के पिता ओमप्रकाश पासवान, तीन बार विधायक चुने गए थे.
कमलेश के पिता भी रहे सांसद, उनकी हुई थी हत्या: कमलेश पासवान के पिता की जब हत्या हो गई तो उनकी सीट पर उनके चाचा चंद्रेश पासवान चुनाव लड़कर विजयी हुए और फिर कमलेश पासवान को भी इस सीट से विधायक होने का अवसर मिला. यह सब तभी संभव रहा जब कमलेश पासवान के परिवार पर भी गोरक्षपीठ की कृपा और महंत अवेद्यनाथ के आशीर्वाद का खुला स्वरूप, जनता-जनार्दन के बीच जाता था.
कमलेश की मां भी रह चुकी हैं सांसद: बाद में जब यह परिवार बांसगांव लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरना प्रारंभ किया तो भी बीजेपी ने इन्हें अपना टिकट थमाया और उनकी जीत का सिलसिला अभी तक कायम है. कमलेश पासवान की माता सुभावती पासवान भी सांसद रह चुकी हैं. योगी आदित्यनाथ के ऊपर ही इन दोनों सीटों को जीतने का दारोमदार पार्टी ने दे रखा था.
सीएम योगी ने अकेले रोड शो करके बांधा समा: यही वजह थी कि कई सभाओं के बाद जब अमित शाह का रोड शो 29 में को रद हो गया तो योगी आदित्यनाथ अकेले रोड शो करते हुए, अपने प्रत्याशियों की जीत के लिए लोगों से अपील किए थे और उनके प्रत्याशी जीतने में भी कामयाब रहे, जिससे उनका राजनीतिक किला कोई भी गठबंधन ध्वस्त करने में कामयाब नहीं हो सका. लेकिन इस बार के जीत-हार का अंतर भाजपा समेत योगी सभी के लिए एक मंथन का विषय बन गया.
बांसगांव सीट का क्या रहा है इतिहास: 2019 की तरह लोकसभा 2024 में बांसगांव सीट एक बार फिर खास बनी. आजादी के बाद दूसरे आम चुनाव से ही यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गई थी. आजादी के बाद कई चुनाव तक इस सीट पर कांग्रेस एकतरफा कब्जा रहा. 1957 में पहली बार हुए आम चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज महादेव प्रसाद यहां से जीते थे. 1962 में भी उन्होंने ही जीत का स्वाद चखा था.
इसके बाद संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर मोलहू प्रसाद 1967 में यहां से जीते. इस सीट पर चुनाव प्रचार का एक अलग अंदाज 1967 के चुनाव में मोलहू प्रसाद ने दिखाया जो, साइकिल पर सवार होकर खजड़ी बजाते, गीत गाते क्षेत्र में निकलते थे और लोगों से मिलते थे. वह सांसद चुन लिए गए.
कांग्रेस के राम मूरत प्रसाद 1971 में इस सीट पर पार्टी का परचम लहरा दिए तो 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में भारतीय लोकदल के उम्मीदवार विशारद फिरंगी प्रसाद विजयी रहे. वहीं कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार रहे महावीर प्रसाद यहां से चार बार सांसद चुने गए. वह यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. कांग्रेस में लोग उन्हें बाबूजी कहकर बुलाते थे.
लेकिन जब भी वह बांसगांव आते थे तो उनका अंदाज एकदम गवई हो जाता था. महावीर प्रसाद यहां से लगातार 1980, 84 और 1989 में सांसद बनते रहे. कांग्रेस सरकार में वह मंत्री रहे. हरियाणा के राज्यपाल भी बने. हालांकि वक्त के साथ बहुत कुछ बदल गया. लग्जरी गाड़ियों के काफिले, धन बल, बाहुबल के प्रदर्शन के बिना अब चुनाव की कल्पना ही नहीं की जाती. ऐसे ही माहौल में भाजपा सांसद कमलेश पासवान जीतकर हैट्रिक लगाने में कामयाब रहे. 2024 के लिए भी उनकी जोर आजमाइश हुई और जीतने में कामयाब हुए.
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