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सपा के साथ गठबंधन से यूपी में कांग्रेस को मिला ऑक्सीजन, खास रणनीति से भाजपा के कई किले भेद डाले - UP Lok Sabha Election 2024 Results - UP LOK SABHA ELECTION 2024 RESULTS

लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों ने यूपी में सपा में जहां जान फूंक दी, वहीं हाथ के पंजे को भी ऑक्सीजन मिला है. इस बार दो लड़कों की जोड़ी ने कमाल कर दिया. कांग्रेस रायबरेली, अमेठी ही नहीं बल्कि बाराबंकी, सीतापुर, सहारनपुर और इलाहाबाद जैसी सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही.

इस बार यूपी में दो लड़कों की जोड़ी ने शानदार प्रदर्शन किया.
इस बार यूपी में दो लड़कों की जोड़ी ने शानदार प्रदर्शन किया. (PHOTO Credit; Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 6, 2024, 6:34 AM IST

लखनऊ : लोकसभा चुनाव 2024 में यूपी में भाजपा का मुकाबला करने के लिए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने गठबंधन किया. दोनों पार्टियों ने मिलकर तय किया कि समाजवादी पार्टी यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 63 पर चुनाव लड़ेगी जबकि कांग्रेस 17 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी. इसके बाद राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा होने लगी कि कहीं दोनों का हाल साल 2017 के विधानसभा चुनाव जैसा न हो जाए. उस दौरान भी दोनों पार्टियों को उम्मीद थी कि वह अच्छा प्रदर्शन करेंगे लेकिन उन्हें करारी शिकस्त मिली थी. समाजवादी पार्टी अपने पूर्ण बहुमत की सरकार को गंवाकर 47 विधानसभा सीटों पर आगे रही, वहीं कांग्रेस 19 से घटकर केवल 6 विधायकों तक सीमित रह गई थी. इस लोकसभा चुनाव में भी राजनीतिक विशेषज्ञ को कोई बड़ी उलटफेर की उम्मीद नहीं थी, लेकिन 4 जून को नतीजों से गठबंधन ने भाजपा के विजय रथ को यूपी में रोक दिया.

गठबंधन में चुनाव लड़ना काफी चुनौतीपूर्ण था : कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान की गई मेहनत ने प्रदेश में एक बार फिर से कांग्रेस का जनाधार खड़ा करने की कोशिश की. इंडी से समझौते के तहत प्रदेश में मिली 17 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़कर 6 पर जीत हासिल की. शेष 11 सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही. 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में लगातार सियासी हाशिये की तरफ जा रही कांग्रेस के लिए यह एक संजीवनी की तरह है. उत्तर प्रदेश में 1989 से पहले शासन करने वाली कांग्रेस का जनाधार प्रदेश में चुनाव दर चुनाव कम होता जा रहा था.

कांग्रेस की हर कोशिश हो रही थी फेल : जनाधार को मजबूत करने की कांग्रेस की हर कोशिश लगातार फेल हो रही थी. वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए फिर से एक संजीवनी की तरह सामने आया है. लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिक शास्त्र विभाग के प्रोफेसर डॉ. संजय गुप्ता ने बताया कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने इससे पहले भी सपा और अन्य दलों के साथ चुनावी समझौता कर चुनाव लड़ा था. उस समय उसे उतनी सफलता नहीं मिली थी लेकिन इस बार प्रदेश में कांग्रेस ने 6 सीटों पर अपना कब्जा कर लिया है. कांग्रेस की पुरानी स्थिति पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि वर्ष 1984 के चुनाव में कभी 85 लोकसभा सीटों (जिसमें तत्कालीन उत्तराखंड की पांच सीटें भी शामिल थी) उसमें अकेले 83 पर इस पार्टी का ही कब्जा था.

मोदी लहर के बाद बिगड़ती रही कांग्रेस की स्थिति : कांग्रेस 1989 में 15 सीटों पर सिमट गई थी. इसके बाद 1991 कांग्रेस को मात्र पांच सीटें मिली थीं. इतनी ही सीटें 1996 में मिली थीं. 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली. 1999 के चुनाव में कांग्रेस ने 10 सीटों पर विजय हासिल की थी. इसके बाद 2004 के चुनाव में कांग्रेस को 9 सीटें और 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यूपी में 21 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. साल 2014 में मोदी लहर में कांग्रेस की स्थिति बद से बदतर होनी शुरू हो गई. पार्टी केवल अपने गढ़ रायबरेली और अमेठी में ही जीत सकी थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की स्थिति और बुरी हो गई और केवल रायबरेली की सीट ही जीत पाई थी. अमेठी की सीट पर तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी से 47000 के अंतर से सीट गंवानी पड़ी थी.

कांग्रेस ने की जोरदार वापसी.
कांग्रेस ने की जोरदार वापसी. (PHOTO Credit; Etv Bharat)

2017 के गठबंधन से कांग्रेस ने लिया सबक : प्रदेश प्रवक्ता अंशु अवस्थी ने बताया कि 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच जो गठबंधन हुआ था, उसकी खामियों को इस बार दोनों पार्टियों ने अच्छी तालमेल के साथ दूर किया. कांग्रेस के उप प्रभारी अविनाश पांडे ने कमान संभाल रखी थी. जिन्होंने सभी 80 सीटों पर समाजवादी पार्टी के साथ समन्वय बैठक की. सपा और कांग्रेस की पूरी इकाई को हर सीट पर एक साथ लाया गया. इलाहाबाद सीट पर कांग्रेस जब मजबूत प्रत्याशी के तलाश में थी तो उसने सपा नेता उज्जवल रमण सिंह पर दांव लगाने का फैसला किया. उज्जवल सपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन इस पर सपा ने कोई एतराज नहीं किया.

अखिलेश ने कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए भी प्रचार करने में इस बार कोई गुरेज नहीं किया. इतना ही नहीं इस बार के चुनाव की निगरानी के लिए पार्टी की ओर से एक कंट्रोल रूम तैयार किया गया था. इसी कंट्रोल रूम में चुनाव संचालन की जिम्मेदारी थी. संगठन की कमजोरी को देखते हुए वैकल्पिक संगठन पर काम किया गया. हर बूथ पर एक बूथ लेवल एजेंट तैयार किया गया, हर 15 बूथ लेवल एजेंट पर एक लीड एजेंट बनाया गया. लीड एजेंट की जिम्मेदारी दी गई कि वह अपने अधीन बूथ लेवल एजेंट से बूथ मैनेजमेंट की सारी प्रक्रिया को पूरी करवाए. साथ ही उसे तक प्रचार की सभी सामग्री भी पहुंचाने का काम करेगा. हर दिन का फीडबैक लिया जा रहा था. यह पहली मर्तबा था कि इतने बड़े पैमाने पर चुनाव की मॉनिटरिंग की गई.

कांग्रेस यूपी में भाजपा के कई किले भेदने में सफल रही : इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा. इसमें उसने रायबरेली, अमेठी, सीतापुर, बाराबंकी, सहारनपुर व इलाहाबाद सीट पर जीत हासिल की और शेष 11 सीटों गाजियाबाद, अमरोहा, कानपुर, झांसी, महराजगंज, बांसगांव, वाराणसी, देवरिया, फतेहपुर सीकरी, बुलंदशहर व मथुरा में वह दूसरे स्थान पर रही. इसमें बांसगांव से कांग्रेस प्रत्याशी सदल प्रसाद मात्र 3150 वोट से ही चुनाव हारे.

यह भी पढ़ें : कांग्रेस के साथ से सपा को यूपी में मिली अब तक की सबसे बड़ी जीत, 37 सीटों के साथ वोट प्रतिशत भी 33% हुआ

लखनऊ : लोकसभा चुनाव 2024 में यूपी में भाजपा का मुकाबला करने के लिए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने गठबंधन किया. दोनों पार्टियों ने मिलकर तय किया कि समाजवादी पार्टी यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 63 पर चुनाव लड़ेगी जबकि कांग्रेस 17 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी. इसके बाद राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा होने लगी कि कहीं दोनों का हाल साल 2017 के विधानसभा चुनाव जैसा न हो जाए. उस दौरान भी दोनों पार्टियों को उम्मीद थी कि वह अच्छा प्रदर्शन करेंगे लेकिन उन्हें करारी शिकस्त मिली थी. समाजवादी पार्टी अपने पूर्ण बहुमत की सरकार को गंवाकर 47 विधानसभा सीटों पर आगे रही, वहीं कांग्रेस 19 से घटकर केवल 6 विधायकों तक सीमित रह गई थी. इस लोकसभा चुनाव में भी राजनीतिक विशेषज्ञ को कोई बड़ी उलटफेर की उम्मीद नहीं थी, लेकिन 4 जून को नतीजों से गठबंधन ने भाजपा के विजय रथ को यूपी में रोक दिया.

गठबंधन में चुनाव लड़ना काफी चुनौतीपूर्ण था : कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान की गई मेहनत ने प्रदेश में एक बार फिर से कांग्रेस का जनाधार खड़ा करने की कोशिश की. इंडी से समझौते के तहत प्रदेश में मिली 17 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़कर 6 पर जीत हासिल की. शेष 11 सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही. 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में लगातार सियासी हाशिये की तरफ जा रही कांग्रेस के लिए यह एक संजीवनी की तरह है. उत्तर प्रदेश में 1989 से पहले शासन करने वाली कांग्रेस का जनाधार प्रदेश में चुनाव दर चुनाव कम होता जा रहा था.

कांग्रेस की हर कोशिश हो रही थी फेल : जनाधार को मजबूत करने की कांग्रेस की हर कोशिश लगातार फेल हो रही थी. वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए फिर से एक संजीवनी की तरह सामने आया है. लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिक शास्त्र विभाग के प्रोफेसर डॉ. संजय गुप्ता ने बताया कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने इससे पहले भी सपा और अन्य दलों के साथ चुनावी समझौता कर चुनाव लड़ा था. उस समय उसे उतनी सफलता नहीं मिली थी लेकिन इस बार प्रदेश में कांग्रेस ने 6 सीटों पर अपना कब्जा कर लिया है. कांग्रेस की पुरानी स्थिति पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि वर्ष 1984 के चुनाव में कभी 85 लोकसभा सीटों (जिसमें तत्कालीन उत्तराखंड की पांच सीटें भी शामिल थी) उसमें अकेले 83 पर इस पार्टी का ही कब्जा था.

मोदी लहर के बाद बिगड़ती रही कांग्रेस की स्थिति : कांग्रेस 1989 में 15 सीटों पर सिमट गई थी. इसके बाद 1991 कांग्रेस को मात्र पांच सीटें मिली थीं. इतनी ही सीटें 1996 में मिली थीं. 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली. 1999 के चुनाव में कांग्रेस ने 10 सीटों पर विजय हासिल की थी. इसके बाद 2004 के चुनाव में कांग्रेस को 9 सीटें और 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यूपी में 21 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. साल 2014 में मोदी लहर में कांग्रेस की स्थिति बद से बदतर होनी शुरू हो गई. पार्टी केवल अपने गढ़ रायबरेली और अमेठी में ही जीत सकी थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की स्थिति और बुरी हो गई और केवल रायबरेली की सीट ही जीत पाई थी. अमेठी की सीट पर तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी से 47000 के अंतर से सीट गंवानी पड़ी थी.

कांग्रेस ने की जोरदार वापसी.
कांग्रेस ने की जोरदार वापसी. (PHOTO Credit; Etv Bharat)

2017 के गठबंधन से कांग्रेस ने लिया सबक : प्रदेश प्रवक्ता अंशु अवस्थी ने बताया कि 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच जो गठबंधन हुआ था, उसकी खामियों को इस बार दोनों पार्टियों ने अच्छी तालमेल के साथ दूर किया. कांग्रेस के उप प्रभारी अविनाश पांडे ने कमान संभाल रखी थी. जिन्होंने सभी 80 सीटों पर समाजवादी पार्टी के साथ समन्वय बैठक की. सपा और कांग्रेस की पूरी इकाई को हर सीट पर एक साथ लाया गया. इलाहाबाद सीट पर कांग्रेस जब मजबूत प्रत्याशी के तलाश में थी तो उसने सपा नेता उज्जवल रमण सिंह पर दांव लगाने का फैसला किया. उज्जवल सपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन इस पर सपा ने कोई एतराज नहीं किया.

अखिलेश ने कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए भी प्रचार करने में इस बार कोई गुरेज नहीं किया. इतना ही नहीं इस बार के चुनाव की निगरानी के लिए पार्टी की ओर से एक कंट्रोल रूम तैयार किया गया था. इसी कंट्रोल रूम में चुनाव संचालन की जिम्मेदारी थी. संगठन की कमजोरी को देखते हुए वैकल्पिक संगठन पर काम किया गया. हर बूथ पर एक बूथ लेवल एजेंट तैयार किया गया, हर 15 बूथ लेवल एजेंट पर एक लीड एजेंट बनाया गया. लीड एजेंट की जिम्मेदारी दी गई कि वह अपने अधीन बूथ लेवल एजेंट से बूथ मैनेजमेंट की सारी प्रक्रिया को पूरी करवाए. साथ ही उसे तक प्रचार की सभी सामग्री भी पहुंचाने का काम करेगा. हर दिन का फीडबैक लिया जा रहा था. यह पहली मर्तबा था कि इतने बड़े पैमाने पर चुनाव की मॉनिटरिंग की गई.

कांग्रेस यूपी में भाजपा के कई किले भेदने में सफल रही : इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा. इसमें उसने रायबरेली, अमेठी, सीतापुर, बाराबंकी, सहारनपुर व इलाहाबाद सीट पर जीत हासिल की और शेष 11 सीटों गाजियाबाद, अमरोहा, कानपुर, झांसी, महराजगंज, बांसगांव, वाराणसी, देवरिया, फतेहपुर सीकरी, बुलंदशहर व मथुरा में वह दूसरे स्थान पर रही. इसमें बांसगांव से कांग्रेस प्रत्याशी सदल प्रसाद मात्र 3150 वोट से ही चुनाव हारे.

यह भी पढ़ें : कांग्रेस के साथ से सपा को यूपी में मिली अब तक की सबसे बड़ी जीत, 37 सीटों के साथ वोट प्रतिशत भी 33% हुआ

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