लखनऊ (खुर्शीद अहमद मिस्बाही): बलरामपुर अस्पताल में कार्यरत डॉ. एएन उस्मानी गरीब मरीजों के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं. बेहतरीन चिकित्सीय सेवा के साथ-साथ वह अपने वेतन से भी जरूरतमंद मरीजों की मदद करते हैं. पिछले 8 साल से उनकी समाजसेवा का यह मुहिम जारी है. पैसे की तंगी के कारण इलाज कराने में असमर्थ मरीजों के लिए वह उम्मीद की नई किरण हैं. उनकी टीम भी उनके ही नक्शेकदम पर चल रही है. वह दिल खोलकर गरीब मरीजों की मदद करते हैं. आइए जानते हैं ऐसे दरियादिल चिकित्सक के बारे में...
मोहम्मद इदरीस को मिला नया जीवन : लखीमपुर खीरी निवासी मोहम्मद इदरीस बताते हैं कि मैं सांस लेने में दिक्कत, कमजोरी और खांसी की समस्या से जूझ रहा था. गंभीर स्थिति की वजह से कई चिकित्सकों ने उनका इलाज करने से मना कर दिया था. डॉक्टर उस्मानी ने उनका इलाज किया. इलाज के दौरान तीन यूनिट खून चढ़ाकर जान बचाई. अब मैं खुद चलकर इलाज के लिए आता हूं. डॉ. उस्मानी मेरे लिए फरिश्ते जैसे हैं.
खुद के पैसे से कराते हैं डायलिसिस : अलमदार बताते हैं कि डॉ. उस्मानी गरीब मरीजों के लिए मसीहा हैं. डायलिसिस के लिए जरूरी सामान लाने में असमर्थ मरीजों को वह अपनी जेब से पैसे देकर सामान दिलवाते हैं. मैंने कई बार देखा है कि उन्होंने मरीजों की मदद के लिए खुद अपनी जेब से रुपये खर्च किए. अलमदार की पत्नी 14 दिन अस्पताल में भर्ती रहीं. इस दौरान डाॅ. उस्मानी ने काफी मदद की. सैयद अख्तर हुसैन कहते हैं कि डॉ. उस्मानी जैसे डॉक्टर बिरले ही हैं जो मरीजों की समस्याएं ध्यान से सुनते हैं, दवा भी सावधानी से लिखते हैं. उन्होंने मेरी आंखों के सामने कई मरीजों की मदद की. उनकी संवेदनशीलता से मरीजों की आधी बीमारी ऐसे ही ठीक हो जाती है.
टीम में शामिल चिकित्सक भी दे रहे योगदान : डॉ. उस्मानी की टीम में शामिल डॉ. शिवांगी मणि त्रिपाठी ने बताया कि हम उन मरीजों के डायलिसिस देते हैं जो जरूरतमंद और गरीब होते हैं. एक मरीज ऐसा है जो 1 साल से डायलिसिस करवा रहा है. उसने प्लाज्मा और कई सारी दवाइयां खरीदी हैं, लेकिन अब वह इस स्थिति में नहीं हैं कि आगे वह प्लाज्मा का प्रबंध नहीं कर सके. अब हम लोगों ने यह फैसला किया है कि अब उसे अगर खून की जरूरत होगी तो हम लोग खुद ही उसको रक्तदान करेंगे.
मां से मिली दूसरों की मदद करने की सीख : डॉ. एएन उस्मानी बताते हैं कि जरूरतमंद मरीजों की मदद करना उनकी प्राथमिकता है. जो लोग दवा, किट या किराए तक के पैसे नहीं जुटा पाते, उनकी मदद मैं अपने वेतन से करने की कोशिश करता हूं. कई बार मरीज प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराकर आर्थिक रूप से टूट चुके होते हैं. ऐसे मरीजों के लिए हमारी टीम हरसंभव मदद करती है.
बलरामपुर अस्पताल सरकारी अस्पताल हैं. यहं सबसे अधिक डायलिसिस किए जाते हैं. जरूरी सामान अस्पताल से मुफ्त मिलता है, लेकिन कई बार बाहर से सामान खरीदना पड़ता है. ऐसे में मैंने मेडिकल स्टोर पर उधारी खाता खोल रखा है. डॉ. उस्मानी का कहना है कि उनकी मां ने हमेशा जरूरतमंदों की मदद करने की सीख दी थी. मां कहती थीं कि जो बन पड़े, दूसरों के लिए करो. उनकी इस सीख को मैंने जीवन का उद्देश्य बना लिया है. मरीजों की मदद करके मुझे आत्मिक संतोष मिलता है.
मेडिकल स्टोर संचालक भी बने मददगार : बलरामपुर अस्पताल के पास स्थित मेडिकल स्टोर मालिक कौशल किशोर त्रिपाठी ने बताया कि डॉ. उस्मानी का खाता उनके यहां चलता है. जरूरतमंद मरीजों के लिए वह सामान मंगवाते हैं. इसका पैसा रजिस्टर में दर्ज कर लिया जाता है. महीने के अंत में डॉ. एएन उस्मानी अपने वेतन से बकाए का भुगतान करते हैं. उनका यह सेवाभाव अद्भुत है. यह समाज के लिए मिसाल है.
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