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जीआई टैग प्रोडक्ट के मामले में यूपी बना नंबर वन, 69 उत्पाद के साथ तमिलनाडु को पछाड़ा - GI tag product - GI TAG PRODUCT

उत्तर प्रदेश 69 जीआई उत्पाद के साथ नंबर वन स्थान हासिल कर लिया है. इसमें वाराणसी क्षेत्र के सबसे अधिक उत्पाद हैं. आइए जानते हैं क्या है जीआई उत्पाद?

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 30, 2024, 8:57 PM IST

वाराणसी: उत्तर प्रदेश जीआई में देश में पहले नंबर पर आ गया है. 69 जीआई टैग के साथ यूपी ने तमिलनाडु को पीछे छोड़ दिया है. जीआई उत्पादो में उत्तर प्रदेश की लम्बी छलांग में काशी क्षेत्र के 9 नए जीआई उत्पादों के साथ कुल 32 जीआई टैग शामिल हो गए हैं. सबसे ज्यादा जीआई विविधता प्रोडक्ट वाले शहर में काशी क्षेत्र दुनिया में जीआई का हब बन गया है.

पद्मश्री और जीआई विशेषज्ञ डॉ रजनीकांत ने बताया कि भारत की समृद्ध विरासत को बचाने, बढ़ाने और जीआई टैग के माध्यम से जो अभियान शुरू हुआ था. वर्ष 2017 के बाद सीएम योगी के नेतृत्व में तेज गति पकड़ लिया और देश के तमाम राज्यों को पीछे छोड़ते हुए आज 69 जीआई टैग के साथ भारत में प्रथम स्थान पर पहुंचने का गौरव हासिल किया है. जबकि तमिलनाडु 58 के साथ दूसरे नबंर पर आ गया. उन्होंने कहा कि यह पूरे प्रदेश के लिए अत्यंत गौरव का पल है. डॉ. रजनीकान्त ने बताया कि आज वाराणसी क्षेत्र से 9 जीआई उत्पाद पंजीकृत हुए हैं. जिसमें विश्वप्रसिद्ध बनारस की ठण्डई, लाल पेड़ा, के साथ ही संगीत वाद्ययंत्र बनारस शहनाई, बनारसी तबला, के साथ-साथ लाल भरवा मिर्च, चिरईगॉव करौंदा, जौनपुर इमरती, बनारस मुरल पेटिंग और मूंज क्राफ्ट, उप्र शामिल है. इसके साथ ही अब काशी क्षेत्र एवं पूर्वांचल के जनपदों में कुल 32 जीआई उत्पाद देश की बौद्धिक सम्पदा अधिकार में शुमार हो गए, जो दुनिया के किसी भू-भाग में नहीं है.

9 साल में बनारस क्षेत्र के 23 प्रोडक्ट रजिस्टर्डः वर्ष 2014 के पहले वाराणसी क्षेत्र से मात्र 2 जीआई बनारस ब्रोकेड और साड़ी तथा भदोही हस्तनिर्मित कालीन को ही यह दर्जा प्राप्त था. लेकिन 9 वर्षों में यह संख्या 32 तक पहुंच गयी और जीआई के सबसे बड़े ब्राण्ड एम्बेसडर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं. पीएम के सपने के तहत लोकल से ग्लोबल को एक नया मुकाम हासिल हुआ और भारत की समृद्ध विरासत को अन्तर्राष्ट्रीय कानूनी पहचान मिली. जिससे लगभग वाराणसी परिक्षेत्र एवं नजदीकी जीआई पंजीकृत जनपदों में ही लगभग 30 हजार करोड़ का वार्षिक कारोबार के साथ ही 20 लाख लोगों को अपने परम्परागत उत्पादों का कानूनी संरक्षण प्राप्त हुआ. रोजगार के नए अवसर खुले तथा पर्यटन, व्यापार और ई-मार्केटिंग के माध्यम से यहां के उत्पाद तेजी से दुनिया के सभी भू-भाग में पहुँच रहे हैं.

इस साल 160 नए जीआई प्रोडक्ट रजिस्टर्ड हुएः डॉ. रजनीकान्त ने बताया कि इस वित्तीय वर्ष में जीआई रजिस्ट्री चेन्नई के सफल प्रयास से 160 नए उत्पादों का जीआई पंजीकरण हुआ. गतवर्ष हुए 55 जीआई टैग की तुलना में तीन गुने के बराबर है. इसमें अकेले संस्था ड्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन वाराणसी के तकनीकी सहयोग से 12 राज्यों में 99 जीआई पंजीकरण हुआ, जिसमें अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मेघालय, असम, जम्मू एण्ड कश्मीर, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्रा, उड़ीसा, गुजरात, उत्तराखण्ड के साथ साथ यूपी के 14 नए जीआई पंजीकरण शामिल हैं. यह किसी भी संस्था द्वारा जीआई टेक्निकल फैसिलिटेटर के रूप में देश में किया गया सर्वाधिक जीआई का पंजीकरण है.

क्या है जीआई: किसी भी रीजन का जो क्षेत्रीय उत्पाद होता है, उससे उस क्षेत्र की पहचान होती है. उस उत्पाद की ख्याति जब देश-दुनिया में फैलती है तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रक्रिया होती है. जिसे जीआई टैग यानी जीओ ग्राफिकल इंडीकेटर (Geographical Indications) कहते हैं. जिसे हिंदी में भौगोलिक संकेतक नाम से जाना जाता है. संसद ने उत्पाद के रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण को लेकर दिसंबर 1999 में अधिनियम पारित किया था. जिसे अंग्रेजी में Geographical Indications of Goods (Registration and Protection) Act, 1999 कहा गया. इसे 2003 में लागू किया गया. इसके तहत भारत में पाए जाने वाले प्रॉडक्ट के लिए जी आई टैग देने का सिलसिला शुरू हुआ.

वाराणसी: उत्तर प्रदेश जीआई में देश में पहले नंबर पर आ गया है. 69 जीआई टैग के साथ यूपी ने तमिलनाडु को पीछे छोड़ दिया है. जीआई उत्पादो में उत्तर प्रदेश की लम्बी छलांग में काशी क्षेत्र के 9 नए जीआई उत्पादों के साथ कुल 32 जीआई टैग शामिल हो गए हैं. सबसे ज्यादा जीआई विविधता प्रोडक्ट वाले शहर में काशी क्षेत्र दुनिया में जीआई का हब बन गया है.

पद्मश्री और जीआई विशेषज्ञ डॉ रजनीकांत ने बताया कि भारत की समृद्ध विरासत को बचाने, बढ़ाने और जीआई टैग के माध्यम से जो अभियान शुरू हुआ था. वर्ष 2017 के बाद सीएम योगी के नेतृत्व में तेज गति पकड़ लिया और देश के तमाम राज्यों को पीछे छोड़ते हुए आज 69 जीआई टैग के साथ भारत में प्रथम स्थान पर पहुंचने का गौरव हासिल किया है. जबकि तमिलनाडु 58 के साथ दूसरे नबंर पर आ गया. उन्होंने कहा कि यह पूरे प्रदेश के लिए अत्यंत गौरव का पल है. डॉ. रजनीकान्त ने बताया कि आज वाराणसी क्षेत्र से 9 जीआई उत्पाद पंजीकृत हुए हैं. जिसमें विश्वप्रसिद्ध बनारस की ठण्डई, लाल पेड़ा, के साथ ही संगीत वाद्ययंत्र बनारस शहनाई, बनारसी तबला, के साथ-साथ लाल भरवा मिर्च, चिरईगॉव करौंदा, जौनपुर इमरती, बनारस मुरल पेटिंग और मूंज क्राफ्ट, उप्र शामिल है. इसके साथ ही अब काशी क्षेत्र एवं पूर्वांचल के जनपदों में कुल 32 जीआई उत्पाद देश की बौद्धिक सम्पदा अधिकार में शुमार हो गए, जो दुनिया के किसी भू-भाग में नहीं है.

9 साल में बनारस क्षेत्र के 23 प्रोडक्ट रजिस्टर्डः वर्ष 2014 के पहले वाराणसी क्षेत्र से मात्र 2 जीआई बनारस ब्रोकेड और साड़ी तथा भदोही हस्तनिर्मित कालीन को ही यह दर्जा प्राप्त था. लेकिन 9 वर्षों में यह संख्या 32 तक पहुंच गयी और जीआई के सबसे बड़े ब्राण्ड एम्बेसडर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं. पीएम के सपने के तहत लोकल से ग्लोबल को एक नया मुकाम हासिल हुआ और भारत की समृद्ध विरासत को अन्तर्राष्ट्रीय कानूनी पहचान मिली. जिससे लगभग वाराणसी परिक्षेत्र एवं नजदीकी जीआई पंजीकृत जनपदों में ही लगभग 30 हजार करोड़ का वार्षिक कारोबार के साथ ही 20 लाख लोगों को अपने परम्परागत उत्पादों का कानूनी संरक्षण प्राप्त हुआ. रोजगार के नए अवसर खुले तथा पर्यटन, व्यापार और ई-मार्केटिंग के माध्यम से यहां के उत्पाद तेजी से दुनिया के सभी भू-भाग में पहुँच रहे हैं.

इस साल 160 नए जीआई प्रोडक्ट रजिस्टर्ड हुएः डॉ. रजनीकान्त ने बताया कि इस वित्तीय वर्ष में जीआई रजिस्ट्री चेन्नई के सफल प्रयास से 160 नए उत्पादों का जीआई पंजीकरण हुआ. गतवर्ष हुए 55 जीआई टैग की तुलना में तीन गुने के बराबर है. इसमें अकेले संस्था ड्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन वाराणसी के तकनीकी सहयोग से 12 राज्यों में 99 जीआई पंजीकरण हुआ, जिसमें अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मेघालय, असम, जम्मू एण्ड कश्मीर, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्रा, उड़ीसा, गुजरात, उत्तराखण्ड के साथ साथ यूपी के 14 नए जीआई पंजीकरण शामिल हैं. यह किसी भी संस्था द्वारा जीआई टेक्निकल फैसिलिटेटर के रूप में देश में किया गया सर्वाधिक जीआई का पंजीकरण है.

क्या है जीआई: किसी भी रीजन का जो क्षेत्रीय उत्पाद होता है, उससे उस क्षेत्र की पहचान होती है. उस उत्पाद की ख्याति जब देश-दुनिया में फैलती है तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रक्रिया होती है. जिसे जीआई टैग यानी जीओ ग्राफिकल इंडीकेटर (Geographical Indications) कहते हैं. जिसे हिंदी में भौगोलिक संकेतक नाम से जाना जाता है. संसद ने उत्पाद के रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण को लेकर दिसंबर 1999 में अधिनियम पारित किया था. जिसे अंग्रेजी में Geographical Indications of Goods (Registration and Protection) Act, 1999 कहा गया. इसे 2003 में लागू किया गया. इसके तहत भारत में पाए जाने वाले प्रॉडक्ट के लिए जी आई टैग देने का सिलसिला शुरू हुआ.

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