बिलासपुर: बिलासपुर लोकसभा सीट का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है. यहां की जनता भाजपा और कांग्रेस के अलावा किसी दूसरे को अपना समर्थन नहीं देती. इस लोकसभा सीट पर दो बार ऐसा हुआ है कि बिना पंजा और कमल निशान के सांसद चुने गए, लेकिन वह भी कहीं ना कहीं इन दोनों ही पार्टियों के नेता रहे हैं. बिलासपुर लोकसभा सीट के अस्तित्व में आने के बाद यहां की जनता ने भाजपा और कांग्रेस को ही समर्थन दिया. जनता ने इन दो पार्टियों के अलावा तीसरी किसी भी पार्टी के नेता को अपना प्रतिनिधित्व करने नहीं दिया. साल 1952 से लेकर अब तक शुरुआती कुछ चुनाव में कांग्रेस का इस सीट पर राज रहा, तो उसके बाद लगातार भाजपा ने इस पर कब्जा जमाए रखा.
शुरू से कांग्रेस और बीजेपी का रहा है दबदबा: बिलासपुर लोकसभा का रिजल्ट भी हर बार चौंकाने वाला ही रहा है. यहां भाजपा और कांग्रेस के सांसद ही चुने गए हैं. बिलासपुर लोकसभा सीट साल 1952 में अस्तित्व में आई थी, तब से लेकर आज तक कांग्रेस ने नौ बार जीत दर्ज की, तो वहीं भाजपा ने आठ बार जीत हासिल की है. साल 1962 में अमर सिंह सहगल ने चुनाव जीता था. अमर सिंह सहगल कांग्रेस के थे और साल 1962 में ही हुए उपचुनाव में कांग्रेस के सत्यप्रकाश ने जीत दर्ज की थी. साल 1977 में भारतीय लोकदल के प्रत्याशी निरंजन प्रसाद केशरवानी ने चुनाव जीता था. बाद में लोकदल पार्टी भारतीय जनता पार्टी बन गई. इस वजह से इस सीट से एक बार ऐसा हुआ कि, भाजपा और कांग्रेस के चुनावी चिन्ह पंजा और कमल के बिना ही यहां दूसरे चुनाव चिन्ह पर जनता ने अपना समर्थन देकर अपना प्रतिनिधि चुना था, हालांकि यह बात भी है कि निरंजन प्रसाद जीतने के बाद भाजपा में शामिल हो गए थे. बात अगर चुनाव की करें तो चुनाव आयोग के मुताबिक बिलासपुर लोकसभा सीट में एक बार ही दूसरी पार्टी के नेता चुने गए हैं.
जानिए क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट: इस बारे में पॉलिटिकल एक्सपर्ट अनिल तिवारी से ईटीवी भारत ने बातचीत की. उन्होंने बताया कि, "बिलासपुर लोकसभा सीट में शुरू से लेकर अब तक भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई है, जिस तरह से साल 1977 में गैर भाजपा कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी के रूप में निरंजन प्रसाद केशरवानी ने जीत दर्ज की थी. उसके बाद लगातार भाजपा यहां से जीत दर्ज कर रही है. सीट के अस्तित्व में आने के बाद से यहां चुनाव जीतने वाले प्रत्याशियों में रेशम लाल जांगड़े, चंद्रभान सिंह, सत्यप्रकाश, सरदार अमर सिंह सहगल, पंडित राम गोपाल तिवारी, निरंजन प्रसाद केसरवानी, गोदिल प्रसाद, अनुरागी खेलन, राम जांगड़ा, रेशम लाल जांगड़े, पुन्नू लाल मोहले, दिलीप सिंह जूदेव, लखन लाल साहू और अरुण साव ने जीत दर्ज की है."
निरंजन प्रसाद केशरवानी ने रचा इतिहास: बिलासपुर के चुनावी इतिहास पर अगर हम गौर करें तो कांग्रेस भाजपा प्रमुख पार्टियों के उम्मीदवार को यहां की जनता ने जीत दिलाई है. यहां निर्दलीय प्रत्याशियों ने चुनावी मैदान में उतरने का प्रयास तो किया है, लेकिन उन्हें जनता ने समर्थन नहीं दिया. हालांकि साल 1977 में जब लोकदल पार्टी के प्रत्याशी के रूप में निरंजन प्रसाद केशरवानी ने बिलासपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा. तो जनता ने पहली बार गैर कांग्रेसी की जीत दर्ज करवाई, जिन्हें बाद में भाजपा ने अपनी पार्टी में शामिल करा लिया. भारतीय लोकदल के प्रत्याशी निरंजन प्रसाद केशरवानी को यहां की जनता ने अपना खूब समर्थन दिया था और जीत दिलाई थी. यह नेता कांग्रेस और भाजपा समर्थित नेता नहीं थे.