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कोटा में अनोखा दशहरा : 'रावण के अहंकार' को पैरों से रौंदा, जानिए 150 साल पुरानी परंपरा

कोटा में अनोखा दशहरा. जेठी समाज के लोग. मिट्टी के रावण का अहंकार. पहलवानों ने पैरों से रौंद किया खत्म.

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 2 hours ago

Unique Dussehra
मिट्टी के रावण के अहंकार को रौंदा (ETV Bharat Kota)

कोटा: रियासतों के जमाने में गुजरात से आकर कोटा दरबार के पहलवान रहे जेठी समाज के लोग आज भी दशहरे को अलग तरीके से मनाते हैं. कोटा में यह लोग नवरात्र स्थापना के पहले से ही मिट्टी का रावण बनाते हैं और उसपर गेहूं के जवारे उगाते हैं. अखाड़े की मिट्टी से बनने वाले इस रावण को यह लोग दशहरे के दिन पैरों से कुचलकर मारते हैं. यह परंपरा बीते 150 सालों से कोटा में निभाई जा रही है.

इसमें कई जगह पर कोटा में इस तरह की परंपरा की जाती है, जिसमें रावण के अहंकार को पहलवानों ने पैरों से रौंद कर खत्म किया जाता है. पुरानी परंपरा के अनुसार नांता और किशोरपुरा में कई जगह पर इस तरह से जेठी समाज के लोगों ने रावण बनाया. शनिवार को उसे कुचलकर नष्ट किया है. मंदिर में पूजा के समय से ही ढोल व नगाड़ों की आवाज से साथ रणभेरी बजा युद्ध जैसा माहौल बनाया. यहां तक कि रावण की आवाज और उसके अहंकार की हंसी भी माइक के जरिए निकाली गई. रावण को कुचलते समय भगवान और माता लिम्बजा के जयकारे लग रहे थे. अब इसी मिट्टी में मल्लयुद्ध और अखाड़े का आयोजन होगा.

कोटा में अनोखा दशहरा (ETV Bharat Kota)

नवरात्र स्थापना के साथ ही अखाड़े की मिट्टी से तैयार होता है रावण : इसके पहले नांता स्थित लिम्बजा की पूजा व आरती की गई. यह सेवा पूजा करने वाले सोहन जेठी का कहना है कि कोटा में जेठी समाज के 120 परिवार हैं. साथ ही तीन मंदिर की सेवा भी ये लोग करते हैं. इन सभी मंदिरों से अखाड़े भी जुड़े हुए हैं. इनमें एक किशोरपुरा और दो नांता में है. मिट्टी के रावण को श्राद्ध पक्ष में ही बनाना शुरू कर देते हैं. पहले नवरात्रा के दिन यह पूरी तरह से तैयार होता है. इस मिट्टी में घी, दूध, शहद, दही और गेहूं डाल दिए जाते हैं. ऐसे में नवरात्र के नौ दिनों तक इसमें जवारे उगते हैं. इसके बाद इस मंदिर में किसी की एंट्री नहीं होती है, केवल माता की पूजा के लिए पुजारी को ही अंदर भेजा जाता है. केवल गिने-चुने पहलवान और मंदिर समिति से जुड़े लोग ही यहां पर आते हैं, जिन्हें मंदिर में बनी हुई खिड़की से ही अंदर प्रवेश मिलता है. मंदिर के परिसर में गरबे आयोजित होते हैं.

पढ़ें : RSS विजयादशमी उत्सव : भैयाजी जोशी बोले- विश्व गुरु बनने के लिए भेद करने वाले भाव खत्म करने होंगे

राज परिवार ने बनवाए थे अखाड़े : जेठी समाज के लोग करीब 300 साल पहले गुजरात के कच्छ कोटा राजस्थान आए थे. वे मूलतः गुजराती ब्राह्मण है और पहलवानी का ही उनका पेशा रहा है. कोटा के राजपरिवार में गुजरात के कच्छ से राजकुमारी का विवाह हुआ था. उनकी सुरक्षा के लिए गुजरात से कोटा पर आए थे. इसी दौरान यहां पर एक कुश्ती का आयोजन रखा गया, जिसमें विदेश से आए पहलवानों को हमारे पूर्वजों ने हरा दिया था. इसी से खुश होकर राज परिवार ने उन्हें कोटा में ही रुकने का आग्रह किया और पूरी व्यवस्था भी उनके लिए की थी.

इसी दौरान तीन अखाड़े भी कोटा में बनाए गए थे. इन अखाड़ों की डिजाइन और नक्शे एक जैसे ही हैं. मल्लयुद्ध में पारंगत पहलवान देश भर की कुश्ती और मल्लयुद्ध की प्रतियोगिताओं में शामिल होते थे. कोटा के अलावा, मैसूर, उदयपुर, गुजरात के भुज व बड़ौदा और अन्य जगह पर मिट्टी का रावण बनाने की परंपरा है.

कोटा: रियासतों के जमाने में गुजरात से आकर कोटा दरबार के पहलवान रहे जेठी समाज के लोग आज भी दशहरे को अलग तरीके से मनाते हैं. कोटा में यह लोग नवरात्र स्थापना के पहले से ही मिट्टी का रावण बनाते हैं और उसपर गेहूं के जवारे उगाते हैं. अखाड़े की मिट्टी से बनने वाले इस रावण को यह लोग दशहरे के दिन पैरों से कुचलकर मारते हैं. यह परंपरा बीते 150 सालों से कोटा में निभाई जा रही है.

इसमें कई जगह पर कोटा में इस तरह की परंपरा की जाती है, जिसमें रावण के अहंकार को पहलवानों ने पैरों से रौंद कर खत्म किया जाता है. पुरानी परंपरा के अनुसार नांता और किशोरपुरा में कई जगह पर इस तरह से जेठी समाज के लोगों ने रावण बनाया. शनिवार को उसे कुचलकर नष्ट किया है. मंदिर में पूजा के समय से ही ढोल व नगाड़ों की आवाज से साथ रणभेरी बजा युद्ध जैसा माहौल बनाया. यहां तक कि रावण की आवाज और उसके अहंकार की हंसी भी माइक के जरिए निकाली गई. रावण को कुचलते समय भगवान और माता लिम्बजा के जयकारे लग रहे थे. अब इसी मिट्टी में मल्लयुद्ध और अखाड़े का आयोजन होगा.

कोटा में अनोखा दशहरा (ETV Bharat Kota)

नवरात्र स्थापना के साथ ही अखाड़े की मिट्टी से तैयार होता है रावण : इसके पहले नांता स्थित लिम्बजा की पूजा व आरती की गई. यह सेवा पूजा करने वाले सोहन जेठी का कहना है कि कोटा में जेठी समाज के 120 परिवार हैं. साथ ही तीन मंदिर की सेवा भी ये लोग करते हैं. इन सभी मंदिरों से अखाड़े भी जुड़े हुए हैं. इनमें एक किशोरपुरा और दो नांता में है. मिट्टी के रावण को श्राद्ध पक्ष में ही बनाना शुरू कर देते हैं. पहले नवरात्रा के दिन यह पूरी तरह से तैयार होता है. इस मिट्टी में घी, दूध, शहद, दही और गेहूं डाल दिए जाते हैं. ऐसे में नवरात्र के नौ दिनों तक इसमें जवारे उगते हैं. इसके बाद इस मंदिर में किसी की एंट्री नहीं होती है, केवल माता की पूजा के लिए पुजारी को ही अंदर भेजा जाता है. केवल गिने-चुने पहलवान और मंदिर समिति से जुड़े लोग ही यहां पर आते हैं, जिन्हें मंदिर में बनी हुई खिड़की से ही अंदर प्रवेश मिलता है. मंदिर के परिसर में गरबे आयोजित होते हैं.

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राज परिवार ने बनवाए थे अखाड़े : जेठी समाज के लोग करीब 300 साल पहले गुजरात के कच्छ कोटा राजस्थान आए थे. वे मूलतः गुजराती ब्राह्मण है और पहलवानी का ही उनका पेशा रहा है. कोटा के राजपरिवार में गुजरात के कच्छ से राजकुमारी का विवाह हुआ था. उनकी सुरक्षा के लिए गुजरात से कोटा पर आए थे. इसी दौरान यहां पर एक कुश्ती का आयोजन रखा गया, जिसमें विदेश से आए पहलवानों को हमारे पूर्वजों ने हरा दिया था. इसी से खुश होकर राज परिवार ने उन्हें कोटा में ही रुकने का आग्रह किया और पूरी व्यवस्था भी उनके लिए की थी.

इसी दौरान तीन अखाड़े भी कोटा में बनाए गए थे. इन अखाड़ों की डिजाइन और नक्शे एक जैसे ही हैं. मल्लयुद्ध में पारंगत पहलवान देश भर की कुश्ती और मल्लयुद्ध की प्रतियोगिताओं में शामिल होते थे. कोटा के अलावा, मैसूर, उदयपुर, गुजरात के भुज व बड़ौदा और अन्य जगह पर मिट्टी का रावण बनाने की परंपरा है.

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