उमरिया। एमपी के शहडोल संभाग के उमरिया जिले में स्थित बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व, जैसा कि नाम है बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व, तो ये बाघों के दीदार के लिए ही जाना जाता है, क्योंकि यहां बाघों की संख्या बहुत ज्यादा है. पर्यटकों को आसानी से यहां बाघ के दीदार हो जाते हैं, लेकिन अब बांधवगढ़ का ये जंगल बाघ ही नहीं बल्कि हाथियों को भी काफी रास आ रहा है. यहां पिछले कुछ सालों से इनकी संख्या में भी अच्छा खासा इजाफा हो रहा है. पिछले कुछ सालों से हाथियों ने बांधवगढ़ में अपना डेरा जमा लिया है और अब इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.
हाथियों को भा गया बांधवगढ़
बांधवगढ़ की पहचान बाघों से है, क्योंकि यहां पर बहुत ही आसानी से बाघों के दीदार हो जाते हैं. बाघों की संख्या यहां बहुत ज्यादा है. साल दर साल बाघों की संख्या बढ़ती जा रही है. बांधवगढ़ के ये जंगल बाघों को बहुत पसंद हैं, लेकिन अब बाघ ही नहीं बल्कि हाथियों को भी ये बांधवगढ़ के जंगल बहुत रास आ रहे हैं. इसीलिए हाथियों ने भी इन्हें अपना स्थाई पता बना लिया है. बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप संचालक प्रकाश वर्मा बताते हैं की 'बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व 1536 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इसमें वर्तमान में तीन गेट हैं.
पीके वर्मा बताते हैं की 2018 से पहले भी यहां हाथी आते थे, लेकिन आकर कुछ दिन रहते थे और चले जाते थे. हाथियों के आने जाने के लिए छत्तीसगढ़ की ओर से एक कॉरिडोर है, वहीं से यह हाथी एमपी के बांधवगढ़ में आते थे और चले जाते थे, लेकिन 2018 में 40 हाथियों का एक पूरा झुंड आया और वो यहां स्थाई रूप से रह गया, और फिर इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे पूरे बांधवगढ़ के एरिया को सर्च किया. उन्हें यहां अच्छा लगा. यहां का वातावरण हाथियों को बहुत पसंद आया, खाने पीने की व्यवस्था उन्हें यहां सही लगी. यही वजह है कि यहां पर वो रुक गए.
बांधवगढ़ में कितने हाथी ?
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उपसंचालक पीके वर्मा बताते हैं कि 'बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में शुरुआत में 40 हाथियों का एक झुंड आया था. ये संख्या बढ़ते-बढ़ते अब 60 से 65 के बीच में पहुंच गई है. शुरू में जब ये हाथी आए और इन्हें लगता था की नई जगह है, खतरा है तो ये सभी एक साथ ही रहा करते थे, फिर धीरे-धीरे जब उन्होंने पूरे एरिया का सर्वे कर लिया, तो अलग-अलग समूह में बंट गए.
डिस्टर्बेंस बढ़ा तो सुरक्षित जगह तलाशी
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उपसंचालक पीके वर्मा बताते हैं कि यह हाथी जब भी कहीं नई जगह पर जाते हैं, तो उनका स्वभाव होता है, उस जगह का सर्वे करते हैं. इनका ये पुराना ट्रेडिशनल रूट है. 100 साल पहले जब कभी हाथी सेंट्रल इंडिया लैंडस्केप में थे, तब से इन लोगों को पता है कि इनका पुराना रूट कहां क्या था, और कहां से इनका कॉरिडोर है. ये हाथी झारखंड और छत्तीसगढ़ की ओर से यहां आए हैं. संजय गांधी टाइगर रिजर्व वाला एरिया होकर यहां पहुंचे हैं. एक तरह से इन्होंने डिस्टरबेंस से परेशान होकर एक नई सेफ जगह तलाशी है.
हाथियों को चाहिए ऐसा माहौल
पर्यावरणविद संजय पयासी बताते हैं कि 'हाथियों को उनके आहार की अवेलेबिलिटी सबसे जहां ज्यादा होगी, वहां पर हाथी रहना पसंद करते हैं. दूसरा है उनके लिए डिस्टरबेंस नहीं होना चाहिए. हाथियों का जो कॉरिडोर होगा, उसमें जितने कम गड्ढे, नदी-नाली होंगे, उन्हें उतना पसंद है. जिस रास्ते पर भी हाथी चल रहे हैं वो उनका प्राचीनतम रास्ता है.'
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80 के दशक में असम से उतरे नीचे
पर्यावरणविद संजय पयासी बताते हैं की '80 के दशक में हाथी असम से चलकर नीचे उतरे थे. ये हाथी झारखंड उड़ीसा होते हुए छत्तीसगढ़ पहुंचे और छत्तीसगढ़ से अब मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में हैं. झारखंड और उड़ीसा में जब डिस्टरबेंस हुआ, तो वो छत्तीसगढ़ में डेरा जमाए और जब छत्तीसगढ़ में मानव दखल बढ़ा तो वो अब बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं. उसे अपना स्थाई पता बना रहे हैं. हाथियों का एक कॉरिडोर है, जहां जनकपुर छत्तीसगढ़ से होते हुए यह शहडोल के जयसिंहनगर होते हुए उमरिया जिले के बांधवगढ़ पहुंचते हैं. बांधवगढ़ में बाकी जगह की तुलना में डिस्टरबेंस नहीं है, घना जंगल है पानी आसानी से मिलता है, हाथियों के लिए भोजन भी पर्याप्त है. यहां से जोहिला कुनुक नदी चरण गंगा नदी यह सब नदियां बहती हैं. बड़ी नदियों के बीच में कई छोटी-छोटी नदियां 20-25 नदियां भी आती हैं, कुल मिलाकर हाथियों को उनका एटमॉस्फेयर बांधवगढ़ में मिल रहा है, जिसकी वजह से उन्होंने स्थाई पता बना लिया है.