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बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट के दो साइंटिस्ट चुने गए, गंगोत्री में आने वाले लैंडस्लाइड और भूकंप की करेंगे जांच - Two senior scientists of BSIP

भूस्खलन की चुनौती से निपटने के लिए संयुक्त रूप से रिसर्च की (Two senior scientists of BSIP) जाएगी. इसके लिए बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज के दो सीनियर साइंटिस्ट को चुना गया है.

बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज
बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज (Photo credit: ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 3, 2024, 2:07 PM IST

लखनऊ : बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज (बीएसआईपी) और एबरडीन विश्वविद्यालय, स्कॉटलैंड, यूनाइटेड किंगडम संयुक्त रूप से भारत के पर्वतीय क्षेत्रों, विशेष रूप से गंगोत्री क्षेत्र जो इस पर्यावरणीय चुनौती के प्रति अधिक संवेदनशील है जैसे भूस्खलन की चुनौती से निपटने के लिए संयुक्त रूप से रिसर्च करेंगे. बीएसआईपी के दो पुरावैज्ञानिक सीनियर साइंटिस्ट डा. शेख नवाज अली और साइंटिस्ट डा. मयंक शेखर को इसके लिए चुना गया है. वह एबरडीन विश्वविद्यालय में भूविज्ञान के वरिष्ठ व्याख्याता अंशुमान भारद्वाज के साथ मिलकर काम करेंगे. इस शोध के लिए 11 करोड़ रुपये का बजट जारी किया गया है.


जानकारी देते साइंटिस्ट मयंक शेखर (Video credit: ETV Bharat)

खतरों पर काम करेंगे बीएसआईपी के साइंटिस्ट : मयंक शेखर ने बताया कि इस रिसर्च प्रोजेक्ट का शीर्षक ‘उच्च पर्वतीय भूस्खलन और कैस्केडिंग हैजर्ड' विषय पर परियोजना तैयार करना है. उन्होंने बताया कि यूनाइटेड किंगडम के शोध संस्थान नेचुरल एनवायरमेंटल रिसर्च काउंसिल (एनईआरसी) और मिनिस्ट्री का अर्थ साइंसेज इंडिया भारत सरकार) ने मिलकर यह प्रोजेक्ट शुरू किया है. उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य यह है कि इस क्षेत्र में लैंडस्लाइड और कैस्केडिंग हैजर्ड्स के कारण हिमालय क्षेत्र में जो भी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं उसके एक विशेष लाभ पर रिपोर्ट तैयार करना है.

साइंटिस्ट मयंक शेखर ने बताया कि इस परियोजना का उद्देश्य भूस्खलन और जलप्रपात की बढ़ती समस्या से निपटना है. बीएसआईपी के वैज्ञानिक और परियोजना के कॉर्डिनेटर शेख नवाज अली ने कहा कि मैं ऑप्टिकली स्टिम्युलेटेड ल्यूमिनेसेंस (ओएसएल), रिमोट सेंसिंग और अन्य तरीकों का उपयोग करके भू-आकृति विज्ञान और घटनाओं की तिथि निर्धारण का अध्ययन करूंगा. उन्होंने कहा कि ऊंचे पहाड़ों में भूस्खलन के इतिहास का अध्ययन करके, हम भविष्य के जोखिमों का बेहतर अनुमान लगा सकते हैं. उन्होंने कहा कि यह परियोजना अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए एक मॉडल के रूप में खड़ी है.

साइंटिस्ट मयंक शेखर ने बताया कि बीते कुछ सालों में हिमालय क्षेत्र में भूकंप और लैंडस्लाइड की घटनाएं काफी बढ़ी हैं. ऐसे में इन क्षेत्रों में लैंडस्लाइड आने का मुख्य कारण और वहां बड़े धार्मिक पर्यटन और दूसरे पर्यटन के कारण वहां के प्राकृतिक स्वरूप में कितना बदलाव आया है और किस हद तक नुकसान पहुंचा है, इस पूरी परियोजना में इस पर अध्ययन होगा. यह जानने की कोशिश होगी कि भविष्य में अगर कोई बड़ा भूकंप या लैंडस्लाइड होता है तो गंगोत्री और उसके आसपास के क्षेत्र का कितना नुकसान हो सकता है.


यह भी पढ़ें : गगनयान मिशन को लेकर बड़ा अपडेट! क्या बोले इसरो के साइंटिस्ट डॉ. वी नारायणन - ISRO Gaganyaan mission

यह भी पढ़ें : यूपी को गर्व फील कराने वाले 9 चेहरे; लखनऊ-गोरखपुर के 9 प्रोफेसर-साइंटिस्ट दुनिया के टॉप वैज्ञानिकों में शुमार किए गए - Lucknow University

लखनऊ : बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज (बीएसआईपी) और एबरडीन विश्वविद्यालय, स्कॉटलैंड, यूनाइटेड किंगडम संयुक्त रूप से भारत के पर्वतीय क्षेत्रों, विशेष रूप से गंगोत्री क्षेत्र जो इस पर्यावरणीय चुनौती के प्रति अधिक संवेदनशील है जैसे भूस्खलन की चुनौती से निपटने के लिए संयुक्त रूप से रिसर्च करेंगे. बीएसआईपी के दो पुरावैज्ञानिक सीनियर साइंटिस्ट डा. शेख नवाज अली और साइंटिस्ट डा. मयंक शेखर को इसके लिए चुना गया है. वह एबरडीन विश्वविद्यालय में भूविज्ञान के वरिष्ठ व्याख्याता अंशुमान भारद्वाज के साथ मिलकर काम करेंगे. इस शोध के लिए 11 करोड़ रुपये का बजट जारी किया गया है.


जानकारी देते साइंटिस्ट मयंक शेखर (Video credit: ETV Bharat)

खतरों पर काम करेंगे बीएसआईपी के साइंटिस्ट : मयंक शेखर ने बताया कि इस रिसर्च प्रोजेक्ट का शीर्षक ‘उच्च पर्वतीय भूस्खलन और कैस्केडिंग हैजर्ड' विषय पर परियोजना तैयार करना है. उन्होंने बताया कि यूनाइटेड किंगडम के शोध संस्थान नेचुरल एनवायरमेंटल रिसर्च काउंसिल (एनईआरसी) और मिनिस्ट्री का अर्थ साइंसेज इंडिया भारत सरकार) ने मिलकर यह प्रोजेक्ट शुरू किया है. उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य यह है कि इस क्षेत्र में लैंडस्लाइड और कैस्केडिंग हैजर्ड्स के कारण हिमालय क्षेत्र में जो भी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं उसके एक विशेष लाभ पर रिपोर्ट तैयार करना है.

साइंटिस्ट मयंक शेखर ने बताया कि इस परियोजना का उद्देश्य भूस्खलन और जलप्रपात की बढ़ती समस्या से निपटना है. बीएसआईपी के वैज्ञानिक और परियोजना के कॉर्डिनेटर शेख नवाज अली ने कहा कि मैं ऑप्टिकली स्टिम्युलेटेड ल्यूमिनेसेंस (ओएसएल), रिमोट सेंसिंग और अन्य तरीकों का उपयोग करके भू-आकृति विज्ञान और घटनाओं की तिथि निर्धारण का अध्ययन करूंगा. उन्होंने कहा कि ऊंचे पहाड़ों में भूस्खलन के इतिहास का अध्ययन करके, हम भविष्य के जोखिमों का बेहतर अनुमान लगा सकते हैं. उन्होंने कहा कि यह परियोजना अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए एक मॉडल के रूप में खड़ी है.

साइंटिस्ट मयंक शेखर ने बताया कि बीते कुछ सालों में हिमालय क्षेत्र में भूकंप और लैंडस्लाइड की घटनाएं काफी बढ़ी हैं. ऐसे में इन क्षेत्रों में लैंडस्लाइड आने का मुख्य कारण और वहां बड़े धार्मिक पर्यटन और दूसरे पर्यटन के कारण वहां के प्राकृतिक स्वरूप में कितना बदलाव आया है और किस हद तक नुकसान पहुंचा है, इस पूरी परियोजना में इस पर अध्ययन होगा. यह जानने की कोशिश होगी कि भविष्य में अगर कोई बड़ा भूकंप या लैंडस्लाइड होता है तो गंगोत्री और उसके आसपास के क्षेत्र का कितना नुकसान हो सकता है.


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