लखनऊ: डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के डीपीआईआईटी और आईपीआर चेयर द्वारा दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस अवसर पर राष्ट्रीय विधि के कुलपति प्रो.अमरपाल सिंह ने बताया कि अपनी संपत्ति का संरक्षण करना उसे बनाने जितना ही महत्वपूर्ण होता है. जेरेमी बेंथम ने कहा है कि कानून एवं संपत्ति साथ ही जन्म लेते हैं और उनके मरण भी साथ होता है. आईपीआर एक ऐसा क्षेत्र है जिसे हम अभी भी अन्वेषित कर रहे हैं और इसकी सही ऐसे पहलू है, जो अभी भी हम नहीं जानते हैं. बौद्धिक संपदा यानी कि आईपीआर एक महत्वपूर्ण संपत्ति के रूप में उभर रही है. आवेदन ड्राफ्टिंग फाइलिंग यह सब कोई जानने वाली बातें नहीं है, बल्कि यह अभ्यास से ही पारंगत की जा सकती है. लोगों को आईपीआर से अवगत करने के लिए यह कार्यशाला एक महत्वपूर्ण कदम है.
कार्यशाला में चार तकनीकी सत्रों में सभी प्रतिष्ठित वक्ताओं ने प्रतिभागियों को आईपीआर के विभिन्न विषयों जैसे कि आईपीआर आवेदन से लेकर फाइलिंग एवं मैनेजमेंट आदि पर जानकारी दी. वक्ता डॉ. विवेक श्रीवास्तव ने पहले तकनीकी सत्र में प्रायर आर्ट के बारे में बताया.
उन्होंने बताया कि आर्ट किसी भी क्षेत्र में उपयोगी जानकारी, तरीके या अभ्यास को कहा जाता है. तो प्रायर आर्ट का मतलब हुआ, किसी भी क्षेत्र में पहले से मौजूद जानकारी. इसी जानकारी के संदर्भ में नये आविष्कारों का मूल्यांकन किया जाता है. पेटेंट के लिए पहला कदम प्रायर आर्ट के बारे में शोध करना होता है. पेटेंट प्राथमिक तौर पर एक बिजनेस आइडिया होता है. इसीलिए निवेशकों को अपने निवेश का लाभ मिलना आवश्यक होता है. दूसरा कदम पेटेंटेबिलिटी सच होता है, जिसका उद्देश्य यह जानना होता है कि कोई अविष्कार नवीन है भी कि नहीं. उन्होंने उदाहरण द्वारा समझाया कि यदि एक कुर्सी में है पांचवा पैर भी जोड़ दिया जाए तो वह इसे नवीन तो बनता है, लेकिन यह बदलाव तो स्पष्ट हुआ. इसीलिए यह पेटेंट नहीं कहलाएगा.
डीपीआईआईटी चेयर प्रो. मनीष सिंह दूसरे तकनीकी सत्र में पेटेंट ड्राफ्टिंग एवं फाइलिंग की प्रक्रिया के बारे में बताया. भारत विश्व में पेटेंट फाइलिंग में छठे स्थान पर है एवं वर्ष 2023 में पेटेंट फाइलिंग में 15.7 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गयी. इस प्रक्रिया में सबसे पहले फार्म एक में सही एवं पूर्ण जानकारी देनी होती है. यह करने के लिए हमें यह जानना आवश्यक है कि वह अविष्कार है, पेटेंट करने योग्य है, नवीन है.
उन्होंने बताया कि पेटेंट स्पेसिफिकेशन अलग-अलग प्रकार के होते हैं जैसे कि क्लेम्स जो कि इसका सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है. उन्होंने विस्तार से पूरे पेटेंट फाइलिंग एवं ड्राफ्टिंग प्रक्रिया को सरल तरीके से प्रतिभागियों को समझाया. कार्यशाला के तीसरे तकनीकी सत्र में डॉ. इंदिरा द्विवेदी ने पेटेंट फाइलिंग एवं प्रॉसीक्यूशन के बारे में बताया.
उन्होंने विभिन्न प्रकार के पेटेंट आवेदनों पर प्रकाश डाला एवं समकालीन उदाहरण जैसे की डीऑक्सी ग्लूकोस, जो की कोविड-19 के उपचार में इस्तेमाल हुआ था. उसके पेटेंट के बारे में समझाया. कार्यक्रम में आईपीआर चेयर के अध्यक्ष प्रो. मनीष सिंह, सेंटर के निदेशक डॉ. विकास भाटी, डॉ. अंकिता यादव, डॉ. मलय पांडेय, डॉ. मनीष बाजपायी, ऋषी शुक्ला हिमांशी तिवारी और अभिनव शर्मा समेत अन्य लोग मौजूद रहे.
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