गोरखपुर : जिले में दो दिवसीय लिटरेरी फेस्ट 'शब्द संवाद' के मौके पर शनिवार को उद्घाटन सत्र में साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष और पद्मश्री प्रो. विश्वनाथ तिवारी ने संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि सत्ताधीशों की सत्ता, शब्द के प्रभाव से बनती है और बिगड़ जाती है. शब्द सत्ता बनाते हैं और बिगाड़ते हैं, इसलिए शब्दों की सत्ता सर्वशक्तिमान कही जाती है. शब्दों की सत्ता सर्वशक्तिमान है. संसार में मौजूद हर एक पदार्थ को सत्तावान बनाने का काम शब्दों ने ही किया है. इस दौरान उन्होंने कहा कि सृष्टि की कुंजी हैं शब्द.
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आचार्य दंडी ने कहा है कि लोक की यात्रा, वाणी के प्रताप से होती है. राजा भर्तृहरि ने भी कहा है कि शब्द के बिना लोक में कोई प्रत्यय हो नहीं सकता. साहित्यकार और लेखक शब्दों को शक्तिशाली बनाकर समाज को लौटा देते हैं. शब्दों के बिना संसार की गति थम सी जाएगी. यही नहीं उन्होंने 'ईटीवी भारत' से बातचीत में भी कहा कि, धर्म और राजनीति को भी साहित्य से अलग नहीं कर सकते हैं, जो इसको नहीं समझता वह अपने कृतियों से समाज में विघटन और विद्रोह की स्थिति पैदा करता है. साहित्य समाज का न सिर्फ सृजन करती है बल्कि रास्ता भी दिखाती है. भारत के ऐसे दो साहित्य ग्रंथ हैं, जिसे महाभारत और रामायण कहते हैं. यह शब्द और ज्ञान के अथाह सागर हैं, इसलिए शब्द की महत्ता को जानना है तो इन्हें पढ़ना होगा.
इस दौरान साहित्यकार शिवमूर्ति ने कहा कि हालिया दौर में जिस तरह से पूरे देश में लिटरेरी फेस्टिवल के आयोजन का चलन बढ़ा है, वह प्रशंसनीय है. ऐसे आयोजन लेखक और पाठक के मिलन के शुभ अवसर के साक्षी होते हैं. ऐसे आयोजन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे पुच्छविषाणहीनता की कमी होती है. शब्द ब्रह्म हैं और अविनाशी हैं. शब्दों के आधार पर मानव अपनी भावनात्मक कल्पना को आयाम देता है. शब्दों की सत्ता अनंत थी, अनंत है और अनंत रहेगी. शब्दों की सत्ता मौन में भी अनुगुंजित होती है. जब अक्षरध्वनि नहीं थी तो अभिनय और इशारे ही शब्दों की सत्ता को नियंत्रित करती थी. साहित्य ने शब्दों की सत्ता को सुदृढ़ किया. उन्होंने कहा कि जितना अंतर सूरज और जुगनू में होता है, उतना ही अंतर सही शब्द लगभग शब्द में होता है. एक संवेदनशील व्यक्ति ही संवेदनशील साहित्य की रचना कर सकता है.
इस दौरान व्यास सम्मान से सम्मानित होने जा रहीं साहित्यकार सूर्यबाला ने कहा कि हमने शब्दों के साथ बहुत खेला है, पर शब्दों की सत्ता को कभी कुरेदा नहीं. स्वतंत्रता के शब्दों की सत्ता सभी सत्ताओं से ऊपर है क्योंकि यह संघर्षों के स्वप्न से निःसृत होती है. शब्दों की सत्ता हमारी विचार परम्परा में रिश्तों की मर्यादा के सर्वोच्च प्रतिमान के रूप में तब प्रतिबिंबित होती है, जब वचनों के शब्दों को निभाने के लिए वनवास जाना पड़ता है. शब्दों की मर्यादा बड़ी शक्तिशाली है. अतिथि वक्ता असगर वजाहत ने कहा कि आत्मप्रशंसा में किया जाने वाला संवाद सबसे निम्न श्रेणी का संवाद होता है. बिना देश को देखे देश से प्रेम करना अधूरा है और बिना देश को देखे देश की शक्ति को पहचान नहीं पाएंगे. देश की वास्तविक शक्ति विविधता है. विविधता में आधुनिकता की शक्ति है. धरातल पर किया जाने वाला विकास अधूरा है, लोगों के मन मस्तिष्क का विकास ही वास्तविक विकास है. शब्दों का सार्थक संवाद ही शब्दों की वास्तविक सत्ता को प्रदर्शित करता है.
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