नई दिल्ली: दो दिवसीय सांस्कृतिक उत्सव अनंत समागम का दिल्ली के त्रावणकोर पैलेस में पूर्वोत्तर भारत और केरल की जीवंत संस्कृतियों के शानदार उत्सव के साथ सफलतापूर्वक समापन हुआ. इस कार्यक्रम में दोनों क्षेत्रों के संस्कृतियों की झलक दिखाने की कोशिश की गई. दिल्ली-एनसीआर में दिवाली के मौसम के बीच इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम का उद्देश्य भौगोलिक रूप से दूर लेकिन सांस्कृतिक रूप से जुड़े इन क्षेत्रों के बीच जीवंत सांस्कृतिक आदान-प्रदान को समझना और उसको सेलिब्रेट करना है, जिसमें इन दो अलग-अलग लेकिन एक दूसरे के पूरक परिदृश्यों की कला, संगीत और पाक कला की समृद्धि को दिखाया गया.
इस कार्यक्रम में कई प्रमुख प्रदर्शनी लगाई गई थी. इन प्रदर्शनियों में पूर्वोत्तर और केरल से आए बुनकरों के साथ हस्तशिल्प की प्रदर्शनी, कलाकृतियां और मिट्टी के बर्तन बनाने आदि की प्रदर्शनी शामिल थी. आलेख फाउंडेशन के संस्थापक और प्रबंध निदेशक डॉ. रेनी जॉय ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा है कि अनंत समागम के साथ हमारा विजन इस कार्यक्रम से आगे बढ़कर पूर्वोत्तर भारत और केरल के बीच संबंधों को बढ़ावा देना है, जो दो साझा सांस्कृतिक विरासत वाले क्षेत्र हैं.
उन्होंने कहा कि यह मंच समुदायों के लिए साझा विरासत और रचनात्मक भावना को फिर से खोजने का एक निमंत्रण है जो हमें एक राष्ट्र के रूप में परिभाषित करता है. इन कला रूपों, परंपराओं और इनोवेशन को प्रदर्शित करके, हम न केवल अतीत का सम्मान कर रहे हैं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को इस अविश्वसनीय सांस्कृतिक विविधता की सराहना करने और इसे आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं.
इस महोत्सव में प्रमुख विषयों पर चर्चा की गई है. वह इस प्रकार से हैं - बुनाई की कहानियां: भारतीय वस्त्रों में विरासत और नवाचार एम्पाउर हर: भारत की विकास कहानी में महिलाओं की भूमिका को फिर से परिभाषित करना, परंपरा की प्रतिध्वनि: भारत की प्रदर्शन कलाओं की लय , बांस की टहनियों से लेकर इलायची के रास्ते: पूर्वोत्तर और केरल के बीच पाककला संबंध कल का निर्माण: भारत की सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था में निवेश के अवसर सिनेमाई संगम: मुख्यधारा के सिनेमा को आकार दे रही मलयालम और पूर्वोत्तर फिल्में भारत की खोज सांस्कृतिक पर्यटन की संभावनाओं को खोलना, और शब्द जो बांधते हैं: साहित्य के माध्यम से संस्कृतियों को बुनना.
विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने समकालीन भारत पर इन परंपराओं के सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव के बारे में अपने विचार साझा किए. सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों द्वारा समर्थित इस महोत्सव को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) और कपड़ा मंत्रालय के हथकरघा विभाग, केरल सरकार के संस्कृति मंत्रालय, केरल पर्यटन और नागालैंड और मेघालय के पर्यटन विभागों जैसे संस्थानों से उल्लेखनीय समर्थन मिला है. उनका सामूहिक समर्थन भारत के पारंपरिक कारीगरों, बुनकरों और कलाकारों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए अनंत समागम की क्षमता को रेखांकित करता है, जिनके शिल्प और प्रतिभाएं देश की सांस्कृतिक पहचान में योगदान करती हैं.
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