ETV Bharat / state

ओडिशा की दो बेटियां बदलेंगी झारखंड की राजनीतिक फिजा, सोरेन परिवार की बड़ी और छोटी बहू में होगा मुकाबला! क्या कहते हैं जानकार

Political battle between Sita-Kalpana Soren. झारखंड के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार माने जाने वाले सोरेन परिवार की दो बहू अब आमने-सामने हैं. हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन जेएमएम से ताल ठोक रहीं हैं तो उनकी जेठानी और दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन बीजेपी के खेमे को मजबूत करने में लग गईं हैं. एक को झारखंड बचाना है तो दूसरी झारखंड को नहीं झुकने देने की बात कह रही हैं. झारखंड की राजनीति को जानने वालों की नजर में किनका पलड़ा भारी होगा, इस रिपोर्ट में जानें.

Political battle between Sita-Kalpana Soren
Political battle between Sita-Kalpana Soren
author img

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Mar 20, 2024, 7:28 PM IST

रांची: 31 जनवरी को मुख्यमंत्री रहते हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद से झारखंड की राजनीति में एक के बाद एक नया मोड़ देखने को मिल रहा है. हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन सहानुभूति की लहर पर सवार होकर राजनीति के मैदान में उतर चुकी हैं तो दूसरी ओर हेमंत सोरेन की बड़ी भाभी सीता सोरेन ने भाजपा ज्वाइन कर सहानुभूति की एक और लहर पैदा करने की संभावना जगा दी है.

शिबू सोरेन के परिवार में दो फाड़ हो गया है. अब सवाल है कि सोरेन परिवार में पड़ी दरार का फायदा कल्पना सोरेन को मिलेगा या सीता को. इसका जवाब फिलहाल कयासों में उलझा हुआ है. लेकिन एक बात तो तय हो गई है कि ओडिशा की ये दोनों बेटियां आने वाले समय में झारखंड की राजनीतिक फिजा को बदलने में अहम भूमिका निभाएंगी.

वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा का मानना है कि सीता सोरेन के भाजपा में आने से कल्पना सोरेन को मिल रही सहानुभूति पर असर पड़ सकता है. वैसे सीता सोरेन कोई बड़ी नेता नहीं हैं. उनके पास एकमात्र जमा पूंजी है दुर्गा सोरेन का नाम. वहीं कल्पना सोरेन के साथ पार्टी खड़ी है. यह भी समझना होगा कि सीता सोरेन को आखिर परिवार क्यों छोड़ना पड़ा. इसकी सबसे बड़ी वजह हो सकती है राहुल गांधी के न्याय समापन यात्रा में कल्पना सोरेन का शामिल होना. सीएम चंपाई सोरेन ना सिर्फ कल्पना सोरेन को साथ लेकर गये बल्कि मंच पर उन्हें बोलने का भी मौका दिया गया. इसी से साफ हो गया था कि झामुमो का नेतृत्व किसके हाथ में हैं. यह जानते हुए भी कि कल्पना सोरेन का पार्टी में कोई ओहदा नहीं है, जबकि सीता सोरेन केंद्रीय महासचिव थीं. संभव है कि अगर उनको मुंबई नहीं ले जाया गया होता तो अभी यह संबंध विच्छेद नहीं होता. ऊपर से तीन बार की विधायक रही सीता सोरेन को मंत्री बनाने के बजाए बसंत सोरेन को मंत्री बनाकर यह संकेत दे दिया कि आपको जो करना है करें. सीता सोरेन के फैसले को इस रुप में भी देख सकते हैं कि उनके पास अब कोई विकल्प नहीं बचा था. अब भाजपा इसका कैसे फायदा उठा पाती है, यह पार्टी जाने.

वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा ने कहा कि राजनीति परसेप्शन पर निर्भर करती है. भाजपा ने एक परसेप्शन तो बना दिया कि शिबू सोरेन के परिवार में दरार आ गया है. वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा ने भाजपा के कुछ फैसलों पर भी सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा कि भाजपा अगर उधार के सिंदूर से सुहागन बनना चाहती है तो यह कहना मुश्किल है कि कबतक सुहाग बरकरार रहेगा. जेपी पटेल इसके उदाहरण हैं. 2006 में भाजपा छोड़कर गये बाबूलाल मरांडी, दीपक प्रकाश, रवींद्र राय को प्रदेश की कमान दे दी गई. जेवीएम से आए अमर बाउरी को नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया. अब सीता सोरेन को आगे किया गया है. क्या गारंटी है कि यह फॉर्मूला काम आएगा.

Political battle between Sita-Kalpana Soren
ETV BHARAT GFX

सीता सोरेन और कल्पना सोरेन में समानता

झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के ज्येष्ठ पुत्र दिवंगत दुर्गा सोरेन की पत्नी हैं सीता सोरेन. गुरुजी के मंझले पूत्र पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी हैं कल्पना सोरेन. दोनों ओडिशा के मयूरभंज की रहने वाली हैं. कल्पना सोरेन को ठीक उसी तरह राजनीति में आना पड़ा जैसे सीता सोरेन आईं. फर्क इतना था कि 21 मई 2009 को दुर्गा सोरेन के असमय निधन की वजह से सीता सोरेन को राजनीति में कदम रखना पड़ा. उन्हें पिछले तीन चुनावों से जामा की जनता का आशीर्वाद मिलता आ रहा है. वहीं कल्पना सोरेन भी होम मेकर थीं. लेकिन 31 जनवरी को लैंड स्कैम मामले में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद उन्हें राजनीति के मैदान में उतरना पड़ा. उनका एक ही नारा है कि झारखंड झुकेगा नहीं. लेकिन भाजपा में शामिल होने के बाद सीता सोरेन ने कहा कि झारखंड को झुकाना नहीं बल्कि झारखंड को बचाना है.

Political battle between Sita-Kalpana Soren
ETV BHARAT GFX

हेमंत बढ़ते रहे आगे और सीता छूट गईं पीछे

सीता सोरेन की तीन बेटियां हैं जयश्री, राजश्री और विजयश्री. जबकि कल्पना सोरेन के दो पुत्र हैं. एक और समानता ये है कि दुर्गा सोरेन के निधन के महज कुछ दिन बाद हेमंत सोरेन 24 जून 2009 को राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए थे लेकिन सही मायने में राजनीति की शुरुआत 2009 के विधानसभा चुनाव से हुई. 2005 में दुमका सीट हारने के बाद 2009 में हेमंत सोरेन ने वापसी की और इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अर्जुन मुंडा सरकार में उप मुख्यमंत्री बने. बाद में कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाकर सीएम बन गये. 2014 में रघुवर दास की सरकार बनी तो नेता प्रतिपक्ष रहे और 2019 में फिर सत्ता पर काबिज हो गये. लेकिन इस दौरान तमाम चुनाव जीतने के बावजूद सीता सोरेन विधायक के पद से ऊपर नहीं उठ सकीं.

2021 में ही सीता सोरेन ने बदलाव का दे दिया था संकेत

सीता सोरेन दोनों बड़ी बेटियों जयश्री और राजश्री ने साल 2021 में विजयादशमी के अपने स्वर्गीय पिता दुर्गा सोरेन के नाम से सेना का गठन कर अपनी मंशा जाहिर कर दी थी. फिर भी उनकी बातों की अनदेखी होती रही. तीन बार चुनाव जीतने के बावजूद उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया. अव्वल तो ये कि पहली बार दुमका से उपचुनाव जीतने वाले गुरुजी के सबसे छोटे बेटे बसंत सोरेन को चंपाई सरकार में मंत्री बना दिया गया. उस दौरान तमाम नाराजगी के बावजूद वह सरकार के साथ रहीं. लेकिन जैसे ही यह बात साफ हो गई कि कल्पना सोरेन मोर्चा संभालने जा रहीं हैं तो उन्होंने भी आर-पार की लड़ाई का फैसला ले लिया. सीता सोरेन पर 2012 के राज्यसभा चुनाव में नोट के बदले वोट का आरोप लगा था. इस मामले में करीब सात माह तक जेल में भी रहीं. वर्तमान में जमानत पर हैं.

अब राजनीति के मैदान में होगी टक्कर

सीता सोरेन को भाजपा क्या टास्क देती है, यह अभी क्लियर नहीं है लेकिन कल्पना सोरेन का विजन क्लियर है. हेमंत सोरेन सरकार के संकट के वक्त ही डैमेज कंट्रोल के तहत सरफराज अहमद ने गांडेय सीट से इस्तीफा दे दिया था ताकि जरुरत पड़ने पर कल्पना सोरेन चुनाव लड़ सकें. अब गांडेय सीट पर 20 मई को उपचुनाव होना है. कल्पना सोरेन रेस हो गई हैं. वहां लगातार जनसभाएं कर रहीं हैं. लेकिन असली परीक्षा सीता सोरेन के चुनावी मैदान में आने के बाद होगी.

देखना होगा कि कल्पना सोरेन को सहानुभूति मिलती है या सीता सोरेन को. वैसे सीता सोरेन के भाजपा में जाने के कुछ घंटे बाद ही कल्पना सोरेन ने एक्स पर पोस्ट कर पहली बार यह बताने की कोशिश की कि हेमंत जी के लिए दुर्गा दा सिर्फ बड़े भाई नहीं बल्कि पिता तुल्य अभिभावक के रुप में रहे. हमने उनके प्रति हेमंत जी का प्यार देखा है. हेमंत जी राजनीति में नहीं आना चाहते थे लेकिन दुर्गा दादा के असामयिक निधन की वजह से उन्हें आना पड़ा. कुछ भी बहुत सारी बातों के साथ अंत में उन्होंने लिखा है कि आदिवासी समाज ने कभी पीठ दिकाकर, समझौता कर, आगे बढ़ना सीखा नहीं है. झारखंड के डीएनए में ही नहीं है झुक जाना. कल्पना सोरेन के इस वाक्य के सीता सोरेन के खिलाफ कटाक्ष के रुप में देखा जा रहा है.

ये भी पढ़ें-

जेएमएम में टूट का लंबा इतिहास, बीजेपी में जाकर कुछ ही नेताओं ने हासिल किया मुकाम, भाई से लेकर बहू तक ने छोड़ा शिबू का साथ

संथाल में जिसने भी झामुमो छोड़ भाजपा का दामन थामा कभी नहीं मिली जीत, अब सीता का क्या होगा भविष्य?

झारखंड भाजपा को झटका, मांडू विधायक जेपी पटेल कांग्रेस में शामिल, झामुमो छोड़कर आए थे भाजपा में

रांची: 31 जनवरी को मुख्यमंत्री रहते हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद से झारखंड की राजनीति में एक के बाद एक नया मोड़ देखने को मिल रहा है. हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन सहानुभूति की लहर पर सवार होकर राजनीति के मैदान में उतर चुकी हैं तो दूसरी ओर हेमंत सोरेन की बड़ी भाभी सीता सोरेन ने भाजपा ज्वाइन कर सहानुभूति की एक और लहर पैदा करने की संभावना जगा दी है.

शिबू सोरेन के परिवार में दो फाड़ हो गया है. अब सवाल है कि सोरेन परिवार में पड़ी दरार का फायदा कल्पना सोरेन को मिलेगा या सीता को. इसका जवाब फिलहाल कयासों में उलझा हुआ है. लेकिन एक बात तो तय हो गई है कि ओडिशा की ये दोनों बेटियां आने वाले समय में झारखंड की राजनीतिक फिजा को बदलने में अहम भूमिका निभाएंगी.

वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा का मानना है कि सीता सोरेन के भाजपा में आने से कल्पना सोरेन को मिल रही सहानुभूति पर असर पड़ सकता है. वैसे सीता सोरेन कोई बड़ी नेता नहीं हैं. उनके पास एकमात्र जमा पूंजी है दुर्गा सोरेन का नाम. वहीं कल्पना सोरेन के साथ पार्टी खड़ी है. यह भी समझना होगा कि सीता सोरेन को आखिर परिवार क्यों छोड़ना पड़ा. इसकी सबसे बड़ी वजह हो सकती है राहुल गांधी के न्याय समापन यात्रा में कल्पना सोरेन का शामिल होना. सीएम चंपाई सोरेन ना सिर्फ कल्पना सोरेन को साथ लेकर गये बल्कि मंच पर उन्हें बोलने का भी मौका दिया गया. इसी से साफ हो गया था कि झामुमो का नेतृत्व किसके हाथ में हैं. यह जानते हुए भी कि कल्पना सोरेन का पार्टी में कोई ओहदा नहीं है, जबकि सीता सोरेन केंद्रीय महासचिव थीं. संभव है कि अगर उनको मुंबई नहीं ले जाया गया होता तो अभी यह संबंध विच्छेद नहीं होता. ऊपर से तीन बार की विधायक रही सीता सोरेन को मंत्री बनाने के बजाए बसंत सोरेन को मंत्री बनाकर यह संकेत दे दिया कि आपको जो करना है करें. सीता सोरेन के फैसले को इस रुप में भी देख सकते हैं कि उनके पास अब कोई विकल्प नहीं बचा था. अब भाजपा इसका कैसे फायदा उठा पाती है, यह पार्टी जाने.

वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा ने कहा कि राजनीति परसेप्शन पर निर्भर करती है. भाजपा ने एक परसेप्शन तो बना दिया कि शिबू सोरेन के परिवार में दरार आ गया है. वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा ने भाजपा के कुछ फैसलों पर भी सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा कि भाजपा अगर उधार के सिंदूर से सुहागन बनना चाहती है तो यह कहना मुश्किल है कि कबतक सुहाग बरकरार रहेगा. जेपी पटेल इसके उदाहरण हैं. 2006 में भाजपा छोड़कर गये बाबूलाल मरांडी, दीपक प्रकाश, रवींद्र राय को प्रदेश की कमान दे दी गई. जेवीएम से आए अमर बाउरी को नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया. अब सीता सोरेन को आगे किया गया है. क्या गारंटी है कि यह फॉर्मूला काम आएगा.

Political battle between Sita-Kalpana Soren
ETV BHARAT GFX

सीता सोरेन और कल्पना सोरेन में समानता

झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के ज्येष्ठ पुत्र दिवंगत दुर्गा सोरेन की पत्नी हैं सीता सोरेन. गुरुजी के मंझले पूत्र पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी हैं कल्पना सोरेन. दोनों ओडिशा के मयूरभंज की रहने वाली हैं. कल्पना सोरेन को ठीक उसी तरह राजनीति में आना पड़ा जैसे सीता सोरेन आईं. फर्क इतना था कि 21 मई 2009 को दुर्गा सोरेन के असमय निधन की वजह से सीता सोरेन को राजनीति में कदम रखना पड़ा. उन्हें पिछले तीन चुनावों से जामा की जनता का आशीर्वाद मिलता आ रहा है. वहीं कल्पना सोरेन भी होम मेकर थीं. लेकिन 31 जनवरी को लैंड स्कैम मामले में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद उन्हें राजनीति के मैदान में उतरना पड़ा. उनका एक ही नारा है कि झारखंड झुकेगा नहीं. लेकिन भाजपा में शामिल होने के बाद सीता सोरेन ने कहा कि झारखंड को झुकाना नहीं बल्कि झारखंड को बचाना है.

Political battle between Sita-Kalpana Soren
ETV BHARAT GFX

हेमंत बढ़ते रहे आगे और सीता छूट गईं पीछे

सीता सोरेन की तीन बेटियां हैं जयश्री, राजश्री और विजयश्री. जबकि कल्पना सोरेन के दो पुत्र हैं. एक और समानता ये है कि दुर्गा सोरेन के निधन के महज कुछ दिन बाद हेमंत सोरेन 24 जून 2009 को राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए थे लेकिन सही मायने में राजनीति की शुरुआत 2009 के विधानसभा चुनाव से हुई. 2005 में दुमका सीट हारने के बाद 2009 में हेमंत सोरेन ने वापसी की और इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अर्जुन मुंडा सरकार में उप मुख्यमंत्री बने. बाद में कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाकर सीएम बन गये. 2014 में रघुवर दास की सरकार बनी तो नेता प्रतिपक्ष रहे और 2019 में फिर सत्ता पर काबिज हो गये. लेकिन इस दौरान तमाम चुनाव जीतने के बावजूद सीता सोरेन विधायक के पद से ऊपर नहीं उठ सकीं.

2021 में ही सीता सोरेन ने बदलाव का दे दिया था संकेत

सीता सोरेन दोनों बड़ी बेटियों जयश्री और राजश्री ने साल 2021 में विजयादशमी के अपने स्वर्गीय पिता दुर्गा सोरेन के नाम से सेना का गठन कर अपनी मंशा जाहिर कर दी थी. फिर भी उनकी बातों की अनदेखी होती रही. तीन बार चुनाव जीतने के बावजूद उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया. अव्वल तो ये कि पहली बार दुमका से उपचुनाव जीतने वाले गुरुजी के सबसे छोटे बेटे बसंत सोरेन को चंपाई सरकार में मंत्री बना दिया गया. उस दौरान तमाम नाराजगी के बावजूद वह सरकार के साथ रहीं. लेकिन जैसे ही यह बात साफ हो गई कि कल्पना सोरेन मोर्चा संभालने जा रहीं हैं तो उन्होंने भी आर-पार की लड़ाई का फैसला ले लिया. सीता सोरेन पर 2012 के राज्यसभा चुनाव में नोट के बदले वोट का आरोप लगा था. इस मामले में करीब सात माह तक जेल में भी रहीं. वर्तमान में जमानत पर हैं.

अब राजनीति के मैदान में होगी टक्कर

सीता सोरेन को भाजपा क्या टास्क देती है, यह अभी क्लियर नहीं है लेकिन कल्पना सोरेन का विजन क्लियर है. हेमंत सोरेन सरकार के संकट के वक्त ही डैमेज कंट्रोल के तहत सरफराज अहमद ने गांडेय सीट से इस्तीफा दे दिया था ताकि जरुरत पड़ने पर कल्पना सोरेन चुनाव लड़ सकें. अब गांडेय सीट पर 20 मई को उपचुनाव होना है. कल्पना सोरेन रेस हो गई हैं. वहां लगातार जनसभाएं कर रहीं हैं. लेकिन असली परीक्षा सीता सोरेन के चुनावी मैदान में आने के बाद होगी.

देखना होगा कि कल्पना सोरेन को सहानुभूति मिलती है या सीता सोरेन को. वैसे सीता सोरेन के भाजपा में जाने के कुछ घंटे बाद ही कल्पना सोरेन ने एक्स पर पोस्ट कर पहली बार यह बताने की कोशिश की कि हेमंत जी के लिए दुर्गा दा सिर्फ बड़े भाई नहीं बल्कि पिता तुल्य अभिभावक के रुप में रहे. हमने उनके प्रति हेमंत जी का प्यार देखा है. हेमंत जी राजनीति में नहीं आना चाहते थे लेकिन दुर्गा दादा के असामयिक निधन की वजह से उन्हें आना पड़ा. कुछ भी बहुत सारी बातों के साथ अंत में उन्होंने लिखा है कि आदिवासी समाज ने कभी पीठ दिकाकर, समझौता कर, आगे बढ़ना सीखा नहीं है. झारखंड के डीएनए में ही नहीं है झुक जाना. कल्पना सोरेन के इस वाक्य के सीता सोरेन के खिलाफ कटाक्ष के रुप में देखा जा रहा है.

ये भी पढ़ें-

जेएमएम में टूट का लंबा इतिहास, बीजेपी में जाकर कुछ ही नेताओं ने हासिल किया मुकाम, भाई से लेकर बहू तक ने छोड़ा शिबू का साथ

संथाल में जिसने भी झामुमो छोड़ भाजपा का दामन थामा कभी नहीं मिली जीत, अब सीता का क्या होगा भविष्य?

झारखंड भाजपा को झटका, मांडू विधायक जेपी पटेल कांग्रेस में शामिल, झामुमो छोड़कर आए थे भाजपा में

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.