गोपालगंज: जिले थावे प्रखंड के लोहरपट्टी गांव निवासी एक ही परिवार के दो भाई गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं. आलम यह है कि दोनों भाईयों ने अपनी परेशानी को देखते हुए सरकार से इच्छामृत्यु की मांग की है, ताकि वह सुकून से मर सके. इनकी दुख भरी कहानी ने सभी को झकझोर कर रख दिया है.
दो भाईयों ने मांगी इच्छामृत्यु की इजाजत: दरअसल यह कहानी है उस युवक की बेबसी , नाउम्मीदी और असहनीय पीड़ा की है, जो बस चाहता है कि उसे मौत आ जाए. हम बात कर रहे हैं थावे प्रखंड के लोहरपट्टी गांव निवासी रामप्रवेश पंडित के 31 वर्षीय बेटे सतेंद्र और 21 वर्षीय बेटा नीतीश की. सतेंद्र और नीतीश एक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित हैं.
"परिवार की परेशानी और तिल तिल कर मरने से अच्छा है की एक ही बार में मर जाऊं. 15 वर्षों से बेड पर एक लाश की तरह पड़ा हूं. इसलिए सरकार से अपील है कि मुझे इच्छा मृत्यु दिया जाए. मैं परिवार पर अब बोझ नहीं बनना चाहता हूं. मुझे अपने माता पिता की सेवा और देखभाल करनी चाहिए लेकिन मैं ही उनसे सेवा करवा रहा हूं. अब इससे ज्यादा मै अपने माता पिता से सेवा नहीं करवा सकता. अब मुझे जीने की कोई ख्वाहिश नहीं है. अब सरकार से मांग है कि मुझे या तो बेहतर इलाज मुहैया कराई जाए या इससे मुक्ति के लिए एक जहर का इंजेक्शन लगाकर मौत दी जाए."- सतेंद्र कुमार, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी से पीड़ित युवक
दुर्लभ बीमारी से पीड़ित हैं दोनों भाई: शुरुआती दिनों में यह बीमारी सतेंद्र को हुई. सतेंद्र बोल तो सकता है, लेकिन हिल नहीं सकता है. वह बिस्तर पर एक लाश की तरह पड़ा रहता है. घरवाले ही उसे भोजन खिलाते हैं. ऐसे में उसने सरकार से मौत मांगी है. वह चाहता है कि मुझे इच्छा मृत्यु दिया जाए और जहर का इंजेक्शन लगाकर जिंदगी से मुक्ति दी जाए. सतेंद्र बीस वर्ष पहले ऐसा नहीं था. सामान्य लड़कों की तरह वह भी स्वस्थ था.
15 साल से बेड पर है सतेंद्र: सतेंद्र आठवीं कक्षा में पढ़ता था. परिवार की स्थिति ठीक नहीं होने के कारण सतेंद्र मोटरसाइकिल रिपेयरिंग का काम करता था और पिता के हाथों को मजबूत करता था. लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था. अचानक सतेंद्र को कमजोरी महसूस होने लगी और हाथ पैर सुन्न पड़ गये. जिसके बाद वह एक जिंदा लाश की तरह बेड पर पूरी तरह से पड़ गया.
परिवार ने कर्ज लेकर कराया इलाज: मां बाप ने इधर उधर से कर्ज लेकर काफी इलाज कराया, लेकिन सतेंद्र ठीक नहीं हो सका, परेशानी और बढ़ती गई. सतेंद्र के इलाज में परिजनों ने करीब 20 लाख रुपए कर्ज लेकर लगा दिए बावजूद कोई फायदा नहीं हुआ. इसको लेकर परिवार के लोग कर्ज के बोझ से पूरी तरह से टूट चुके हैं.
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी से पीड़ित: अब भोजन भी चला पाना मुश्किल हो गया है. इसी बीच किसी ने उसे दिल्ली एम्स लेकर जाने की सलाह दी. जिसके बाद सतेंद्र अपने भाई नीतीश के साथ 2017 में एम्स गया, जहां के डॉक्टरों ने जांच के बाद बताया कि सतेंद्र मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नाम की बीमारी से पीड़ित है, जो एक लाइलाज बीमारी है और इसका इलाज इंडिया में कहीं नहीं है.
छोटा भाई भी लाइलाज बीमारी से ग्रसित: वहीं सतेंद्र के छोटे भाई नीतीश ने कहा कि 2017 में एम्स के डॉक्टर द्वारा ही मेरा जांच कराया गया था. तब उन्होंने ही बताया कि आप भी इस बीमारी से ग्रसित हो गए हैं. डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि इस बीमारी से उसके अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देंगे. हड्डियां कमजोर हो जाएंगी.
"मेरा शरीर भी धीरे-धीरे कमजोर होने लगा है. हाथ-पैर काम करना धीरे-धीरे बंद कर रहा है. उठना हो तो किसी चीज के सहारे उठना पड़ता है. मुझे डर है कि मैं भी भैया (सतेंद्र) के जैसे ही ना हो जाऊं. साथ ही परिवार के अन्य लोगों को भी ना यह बीमारी हो जाए. इसलिए मैं भी सरकार से इच्छा मृत्यु की मांग करता हूं. या तो सरकार हम लोगों के इलाज की व्यवस्था करें या फिर हमें इच्छामृत्यु की इजाजत दे."- नीतीश कुमार, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी से पीड़ित युवक
क्या है मस्कुलर डिस्ट्रॉफी?: मस्कुलर डिस्ट्रॉफी किसी व्यक्ति के जीन में उत्परिवर्तन की वजह से होने वाली मांसपेशियों की बीमारियों का एक समूह होता है. इसमें वक्त के साथ-साथ मांसपेशियों की गतिशीलता कम होती है. कुछ जीन प्रोटीन आवरण बनाने में शामिल होते हैं, जो मांसपेशी फाइबर की रक्षा करते हैं. अगर इनमें से एक जीन भी दोषपूर्ण है, तो मांसपेशियां कमजोर या टूटने लगती है. जिससे व्यक्ति अपने रोजमर्रा के काम भी नहीं कर सकता है, यहां तक की वह अपना हाथ भी नहीं उठा सकता है.
"मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (एमडी) एक ऐसी बीमारी है, जिसमें धीरे-धीरे मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं. यह लाइलाज बीमारी है जिसका इलाज नहीं है. साथ ही यह आनुवंशिक बीमारी है. एक समय ऐसा भी आता है कि मरीज हिल भी नहीं सकता. जनसाधारण स्तर पर इसकी कोई कोई जांच भी नहीं है. इसमें मरीज रोजाना के कार्यों को करने में थकान महसूस करता है. यह उम्र के साथ बढ़ती जाती है. कुछ लोग ओजोनथेरेपी शुरू किए हैं जिसकी कोई प्रमाणिकता नहीं है. यह करीब एक प्रतिशत लोगों में पाया जाता है."- डॉ कैप्टन संजीव कुमार झा, चिकित्सक
क्या है इच्छा मृत्यु? : इच्छा मृत्यु का मतलब होता है कि इंसान की उसकी मर्जी से मौत. हालांकि इच्छा मृत्यु दो तरह तरह के होते है. पहला सक्रिय इच्छा मृत्यु यानी एक्टिव यूतेनेसिया. इसमें पीड़ित को डॉक्टर द्वारा जहरीला इंजेक्शन दिया जाता हैं, जिससे उससी मौत हो जाती है. वहीं दूसरे मामले में पैसिव यूथेनेसिया यानी जब मरीज वेंटिलेटर पर रहता है तो परिजनों के कहने पर डॉक्टर खुद वेटिंलेटर हटा देते हैं.
इच्छा मृत्यु क्यों? : दरअसल जब कोई मरीज किसी खास बीमारी से पीड़ित होता है, जिसमें जिंदा रहने की कोई उम्मीद नहीं होती है. तो पीड़ित इच्छा मृत्यु के लिए अपील कर सकता है. इसके लिए लिखित में आवेदन देना पड़ता है. हालांकि आईपीसी (IPC) की धारा 309 के तहत आत्महत्या का प्रयास करने वालों को सजा का प्रावधान है.
क्या कहता है भारत का कानून? : साल 2018 में भारत में सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने पैसिव यूथेनेशिया को मंजूरी दी थी. हालांकि इसको लेकर गाइडलाइन भी जारी किया गया था. इससे पहले साल 2011 में अरुणा शानबाग का मामला सामने आया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार की, हालांकि बाद में कोर्ट ने फैसला पलट दिया था.
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