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केवलादेव में सैकड़ों कछुओं और हजारों मछलियों की मौत, कई जलाशयों में पानी सूखा - Water Problem in ghana

Keoladeo National Park, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पानी की कमी चलते हजारों मछलियों और कछुओं की मौत की मामला सामने आया है. हालांकि, घना प्रशासन इसके पीछे मौसम में बदलाव और गर्मी को मान रहा है. पढ़िए पूरी खबर.

घना में कई जलाशयों में पानी सूखा
घना में कई जलाशयों में पानी सूखा (ETV Bharat GFX)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jun 28, 2024, 4:48 PM IST

भरतपुर. विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में इस बार मानसून से पहले पानी की कमी की वजह से बड़ी संख्या में कछुए और मछलियां काल के गाल में समा गईं. जलाशयों में पानी कम होने की वजह से जहां कछुए और मछली मर रही हैं. वहीं पानी में ऑक्सीजन की कमी और गोवर्धन ड्रेन का प्रदूषित पानी भी इसकी वजह बन रहा है. हालांकि, घना प्रशासन इसके पीछे मौसम में बदलाव और गर्मी को मान रहा है.

100 से अधिक कछुओं की मौत : घना के सिर्फ डी ब्लॉक में पानी है. इसके अलावा या तो जलाशयों में पानी सूख गया है, या फिर ना के बराबर रह गया है. ऐसे में घना के बी, डी और ई ब्लॉक में बड़ी संख्या में कछुओं क मौत हुई है. इनकी संख्या सौ से अधिक बताई जा रही है. इस संबंध में घना निदेशक मानस सिंह का कहना है कि घना में पिछले साल जैकॉल ने जिन कछुओं का शिकार किया था, उनके कंकाल पड़े हैं. इस बार ज्यादा कछुए नहीं मरे हैं.

इसे भी पढ़ें- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में मानसून से पहले जलसंकट, अब तक चंबल से मिला सिर्फ 5% पानी - Keoladeo National Park

हजारों मछलियां मरीं : उद्यान में केवल डी ब्लॉक में पानी बचा है. ऐसे में जो ब्लॉक सूख गए हैं, उनकी मछलियां तो मरी ही हैं. इसके साथ ही डी ब्लॉक में भी हर दिन बड़ी संख्या में मछलियां मर रही हैं. इस ब्लॉक में गोवर्धन ड्रेन का और कुछ चंबल से लिया गया पानी भरा हुआ है. पानी प्रदूषित होने के साथ ही ऑक्सीजन की वजह से भी मछलियां मर रही हैं. घना निदेशक मानस सिंह का कहना है कि घना के जलाशयों में प्रदूषित पानी नहीं है. मछलियां मौसम में बदलाव होने और गर्मी की वजह से मर रही हैं. मछलियां ज्यादा संख्या में नहीं मरी हैं.

पक्षियों का भोजन नष्ट : घना में बड़ी संख्या में मछलियां मरने से यहां आने वाले पक्षियों के लिए भोजन की कमी आ सकती है. फिलहाल घना में ओपन बिल स्टार्क ने नेस्टिंग की हुई है. साथ ही ई ग्रेट आदि पक्षी भी आना शुरू हो गए हैं. अगर घना प्रशासन ने अपने जल प्रबंधन में सुधार नहीं किया, तो हालात बिगड़ सकते हैं. पर्यावरणविद डॉ केपी सिंह का कहना है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में आने वाला गोवर्धन ड्रेन का पानी प्रदूषित है. इस पानी में हेवी मेटल के पोल्यूटेड कंटेंट हैं. यदि ऐसे पानी को घना के हैबिटाट में लगातार डाला जा रहा है, तो इससे पूरा हैबिटाट खराब होने की आशंका है. इसका घना की वनस्पतियों पर भी दुष्प्रभाव पड़ेगा.

इसे भी पढ़ें- पहली बार घना में राजहंसों ने डाला 90 दिन तक डेरा, तीन गुना अधिक पहुंचे, वन्यजीव गणना में दिखा तेंदुआ - Keoladeo National Park

बता दें कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पूरे पर्यटन सीजन में कुल 550 एमसीएफटी पानी की जरूरत होती है. घना को चंबल परियोजना से 62.5 एमसीएफटी पानी मिलना होता है, जिसमें से अधिकतर पानी मानसून से पहले मिलना चाहिए, लेकिन इस बार अभी मुश्किल से 3 से 4 एमसीएफटी पानी ही मिल पाया है. घना में पानी की पूर्ति गोवर्धन ड्रेन के पानी से की जाती है, लेकिन हकीकत में इस पानी में उत्तर प्रदेश, फरीदाबाद, बल्लभगढ़ आदि क्षेत्रों से प्रदूषित औद्योगिक पानी मिल जाता है, जो कि घना और यहां आने वाले पक्षियों के लिए ठीक नहीं है.

भरतपुर. विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में इस बार मानसून से पहले पानी की कमी की वजह से बड़ी संख्या में कछुए और मछलियां काल के गाल में समा गईं. जलाशयों में पानी कम होने की वजह से जहां कछुए और मछली मर रही हैं. वहीं पानी में ऑक्सीजन की कमी और गोवर्धन ड्रेन का प्रदूषित पानी भी इसकी वजह बन रहा है. हालांकि, घना प्रशासन इसके पीछे मौसम में बदलाव और गर्मी को मान रहा है.

100 से अधिक कछुओं की मौत : घना के सिर्फ डी ब्लॉक में पानी है. इसके अलावा या तो जलाशयों में पानी सूख गया है, या फिर ना के बराबर रह गया है. ऐसे में घना के बी, डी और ई ब्लॉक में बड़ी संख्या में कछुओं क मौत हुई है. इनकी संख्या सौ से अधिक बताई जा रही है. इस संबंध में घना निदेशक मानस सिंह का कहना है कि घना में पिछले साल जैकॉल ने जिन कछुओं का शिकार किया था, उनके कंकाल पड़े हैं. इस बार ज्यादा कछुए नहीं मरे हैं.

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हजारों मछलियां मरीं : उद्यान में केवल डी ब्लॉक में पानी बचा है. ऐसे में जो ब्लॉक सूख गए हैं, उनकी मछलियां तो मरी ही हैं. इसके साथ ही डी ब्लॉक में भी हर दिन बड़ी संख्या में मछलियां मर रही हैं. इस ब्लॉक में गोवर्धन ड्रेन का और कुछ चंबल से लिया गया पानी भरा हुआ है. पानी प्रदूषित होने के साथ ही ऑक्सीजन की वजह से भी मछलियां मर रही हैं. घना निदेशक मानस सिंह का कहना है कि घना के जलाशयों में प्रदूषित पानी नहीं है. मछलियां मौसम में बदलाव होने और गर्मी की वजह से मर रही हैं. मछलियां ज्यादा संख्या में नहीं मरी हैं.

पक्षियों का भोजन नष्ट : घना में बड़ी संख्या में मछलियां मरने से यहां आने वाले पक्षियों के लिए भोजन की कमी आ सकती है. फिलहाल घना में ओपन बिल स्टार्क ने नेस्टिंग की हुई है. साथ ही ई ग्रेट आदि पक्षी भी आना शुरू हो गए हैं. अगर घना प्रशासन ने अपने जल प्रबंधन में सुधार नहीं किया, तो हालात बिगड़ सकते हैं. पर्यावरणविद डॉ केपी सिंह का कहना है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में आने वाला गोवर्धन ड्रेन का पानी प्रदूषित है. इस पानी में हेवी मेटल के पोल्यूटेड कंटेंट हैं. यदि ऐसे पानी को घना के हैबिटाट में लगातार डाला जा रहा है, तो इससे पूरा हैबिटाट खराब होने की आशंका है. इसका घना की वनस्पतियों पर भी दुष्प्रभाव पड़ेगा.

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बता दें कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पूरे पर्यटन सीजन में कुल 550 एमसीएफटी पानी की जरूरत होती है. घना को चंबल परियोजना से 62.5 एमसीएफटी पानी मिलना होता है, जिसमें से अधिकतर पानी मानसून से पहले मिलना चाहिए, लेकिन इस बार अभी मुश्किल से 3 से 4 एमसीएफटी पानी ही मिल पाया है. घना में पानी की पूर्ति गोवर्धन ड्रेन के पानी से की जाती है, लेकिन हकीकत में इस पानी में उत्तर प्रदेश, फरीदाबाद, बल्लभगढ़ आदि क्षेत्रों से प्रदूषित औद्योगिक पानी मिल जाता है, जो कि घना और यहां आने वाले पक्षियों के लिए ठीक नहीं है.

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