खूंटी: झारखंड में पेसा कानून की मांग लंबे समय से चली आ रही है. खूंटी में इसे लेकर आंदोलन भी किया गया. पेसा कानून की मांग को लेकर खूंटी पत्थलगड़ी आंदोलन की आग में कई सालों तक जला. खूंटी के अधिकांश प्रखंड इस आंदोलन से प्रभावित थे, लेकिन बाद में पुलिस प्रशासन की सख्ती के कारण आंदोलन कम हुआ और समानांतर सरकार चलाने का दम भरने वाले तथाकथित नेताओं पर कार्रवाई के बाद यह बंद हो गया. पेसा कानून लागू करने के हाईकोर्ट के निर्देश के बाद आदिवासी बहुल क्षेत्र के जनप्रतिनिधि काफी उत्साहित हैं. आदिवासी नेताओं का मानना है कि पेसा कानून के लागू होने से यहां के आदिवासी गांवों की तस्वीर और तकदीर दोनों बदलना संभव है.
हाईकोर्ट के निर्देश के बाद आदिवासी बहुल खूंटी के पंचायत प्रतिनिधियों ने मीडिया के समक्ष अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के निर्देश के बाद जल्द से जल्द पेसा नियम बनाकर झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में लागू किया जाना चाहिए. इससे अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के हितों की रक्षा होगी और जल, जंगल, जमीन और संस्कृति की भी रक्षा होगी.
उन्होंने कहा कि अनुसूचित क्षेत्र में आदिवासियों के हितों की रक्षा नहीं करने वाले आम और खास दोनों तरह के लोगों को कानून के अनुसार दंडित करने का प्रावधान होगा. जल, जंगल और जमीन की बेतहाशा लूट पर भी सरकारी प्रशासन कानूनी तौर पर पेसा कानून के तहत अंकुश लगा सकता है.
उन्होंने कहा कि झारखंड राज्य गठन के बाद भाजपा और गैर भाजपा दोनों ही दलों ने शासन किया, लेकिन राज्य गठन के उद्देश्य की अनदेखी की गई. जंगल जमीन की लूट जारी रही और मूलनिवासी आदिवासी अपने ही क्षेत्र में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने लगे. स्थानीय आदिवासी ग्रामीणों ने हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में हाईकोर्ट के निर्देश का स्वागत किया है. उन्होंने कहा है कि अनुसूचित क्षेत्र में जल्द से जल्द पेसा कानून लागू किया जाए.
झारखंड हाईकोर्ट ने पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 के तहत नियम बनाने के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद और न्यायमूर्ति अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार को दो महीने के अंदर पेसा नियम अधिसूचित करने का आदेश दिया गया है.
खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा कि झारखंड राज्य का गठन यहां के निवासियों के हितों की रक्षा के लिए किया गया था, लेकिन संविधान के 73वें संशोधन के उद्देश्यों और पेसा अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप पेसा नियमावली तैयार नहीं होने के कारण राज्य गठन के 24 साल बाद भी अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा अधिनियम लागू नहीं हो पाया.
बता दें कि केंद्र सरकार ने 1996 में पेसा अधिनियम लागू किया था. इसका उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों के हितों की रक्षा करना था. राज्य गठन के 19 साल बाद पेसा नियमावली का प्रारूप तैयार किया गया. लेकिन राज्य में इसे लागू नहीं किया गया. उस समय राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन ने अपना पक्ष रखा था.
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