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एडवांस एमआरआई से स्लीप एपनिया का चलेगा पता, आसान होगा इलाज - Treatment of sleep apnea

सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च और पीजीआई लखनऊ के शोधकर्ताओं ने स्लीप एपनिया (Treatment of Sleep Apnea) के एडवांज स्टेज का पता लगाने के लिए तकनीकि विकसित कर ली है. इसके बाद अब स्लीप एपनिया के इलाज में काफी सुविधा होगा. पढ़ें पूरी खबर...

स्लीप एपनिया से बचाव की तकनीकि विकसित.
स्लीप एपनिया से बचाव की तकनीकि विकसित. (Photo Credit-Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 17, 2024, 10:13 AM IST

लखनऊ : यूपी सरकार नवाचार और शोध पर जोर दे रही हैं. ताकि, आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर लोगों को इसका लाभ दिया जा सके. इसी के तहत सीबीएमआर शोधकर्ता और एसजीपीजीआई के प्रोफेसर ने एमआरआई तकनीक के जरिये स्लीप एपनिया (नींद के दौरान होने वाली समस्याएं) के एडवांस स्टेज का पता लगाने के लिए शोध किया जो सफल रहा. शोध से अब एडवांस एमआरआई से स्लीप एपनिया के एडवांस स्टेज का पता लगाया जा सकेगा. इसके जरिए मरीज का सही दिशा और सटीक इलाज हो सकेगा.

स्लीप एपनिया के नुकसान.
स्लीप एपनिया के नुकसान. (Photo Credit-Etv Bharat)



सिर की सूक्ष्म संरचना पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगा : सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च (सीबीएमआर) के शोधकर्ता डॉ. अहमद रजा खान ने एसजीपीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर जिया हाशिम और रेडियोडायग्नोसिस विभाग के प्रोफेसर जफर नियाज के सहयोग से किए गए अध्ययन में एमआरआई तकनीक के जरिए ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) के मस्तिष्क की सूक्ष्म संरचना पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाया है. इस तकनीक से कुछ माइक्रोन से लेकर 20-30 माइक्रोन तक के ऊतक परिवर्तनों की जांच की जा सकती है जो पारंपरिक एमआरआई माप से 100 से 1000 गुना अधिक संवेदनशील हो सकते हैं.

डॉ. अहमद ने बताया कि डिफ्यूजन एमआरआई ऊतकों में पानी के अणुओं के प्रसार को मापता है. जिससे ऊतक सूक्ष्म संरचना के बारे में जानकारी मिलती है. डिफ्यूजन एमआरआई में प्रगति, जैसे डिफ्यूजन कर्टोसिस इमेजिंग (डीकेआई), जटिल ऊतक वातावरण में गैर-गौसियन जल प्रसार व्यवहार की जांच करती है. बायोफिजिकल मॉडलिंग का उपयोग करते हुए, डीकेआई पैरामीटर एक्सोनल जल अंश जैसे श्वेत-पैरामीटर प्रदान कर सकते हैं. एक्सोन न्यूरॉन्स के ट्रंक हैं. इसलिए ऐसी जानकारी (एक्सोनल जल अंश), मस्तिष्क में सेलुलर स्तर की न्यूरोनल संरचना को दर्शाती है.


चिकित्सीय रणनीति के विकास में होगा बड़ा योगदान : एसजीपीजीआई के प्रोफेसर ने बताया कि एमआरआई से ऐसी सेलुलर जानकारी (एक्सोनल जल अंश) की जांच करके, शोधकर्ता न्यूरोनल संरचना की अखंडता और रोग प्रबंधन के विभिन्न समय पर ओएसए से जुड़े संभावित परिवर्तनों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. अध्ययन के निष्कर्ष ओएसए वाले व्यक्तियों में देखी गई संज्ञानात्मक हानि और अन्य न्यूरोलॉजिकल परिणामों के अंतर्निहित न्यूरोबायोलॉजिकल तंत्र पर प्रकाश डालते हैं. इन तंत्रों को समझना ओएसए से संबंधित जटिलताओं के प्रबंधन के लिए बेहतर नैदानिक और चिकित्सीय रणनीतियों के विकास में योगदान दे सकता है.




यह भी पढ़ें : New Study : गहरी नींद की कमी से स्ट्रोक, अल्जाइमर का खतरा

यह भी पढ़ें : स्लीप एपनिया है एक गंभीर बीमारी, लखनऊ का KGMU दे रहा है इसके लिए खास सुविधा

लखनऊ : यूपी सरकार नवाचार और शोध पर जोर दे रही हैं. ताकि, आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर लोगों को इसका लाभ दिया जा सके. इसी के तहत सीबीएमआर शोधकर्ता और एसजीपीजीआई के प्रोफेसर ने एमआरआई तकनीक के जरिये स्लीप एपनिया (नींद के दौरान होने वाली समस्याएं) के एडवांस स्टेज का पता लगाने के लिए शोध किया जो सफल रहा. शोध से अब एडवांस एमआरआई से स्लीप एपनिया के एडवांस स्टेज का पता लगाया जा सकेगा. इसके जरिए मरीज का सही दिशा और सटीक इलाज हो सकेगा.

स्लीप एपनिया के नुकसान.
स्लीप एपनिया के नुकसान. (Photo Credit-Etv Bharat)



सिर की सूक्ष्म संरचना पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगा : सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च (सीबीएमआर) के शोधकर्ता डॉ. अहमद रजा खान ने एसजीपीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर जिया हाशिम और रेडियोडायग्नोसिस विभाग के प्रोफेसर जफर नियाज के सहयोग से किए गए अध्ययन में एमआरआई तकनीक के जरिए ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) के मस्तिष्क की सूक्ष्म संरचना पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाया है. इस तकनीक से कुछ माइक्रोन से लेकर 20-30 माइक्रोन तक के ऊतक परिवर्तनों की जांच की जा सकती है जो पारंपरिक एमआरआई माप से 100 से 1000 गुना अधिक संवेदनशील हो सकते हैं.

डॉ. अहमद ने बताया कि डिफ्यूजन एमआरआई ऊतकों में पानी के अणुओं के प्रसार को मापता है. जिससे ऊतक सूक्ष्म संरचना के बारे में जानकारी मिलती है. डिफ्यूजन एमआरआई में प्रगति, जैसे डिफ्यूजन कर्टोसिस इमेजिंग (डीकेआई), जटिल ऊतक वातावरण में गैर-गौसियन जल प्रसार व्यवहार की जांच करती है. बायोफिजिकल मॉडलिंग का उपयोग करते हुए, डीकेआई पैरामीटर एक्सोनल जल अंश जैसे श्वेत-पैरामीटर प्रदान कर सकते हैं. एक्सोन न्यूरॉन्स के ट्रंक हैं. इसलिए ऐसी जानकारी (एक्सोनल जल अंश), मस्तिष्क में सेलुलर स्तर की न्यूरोनल संरचना को दर्शाती है.


चिकित्सीय रणनीति के विकास में होगा बड़ा योगदान : एसजीपीजीआई के प्रोफेसर ने बताया कि एमआरआई से ऐसी सेलुलर जानकारी (एक्सोनल जल अंश) की जांच करके, शोधकर्ता न्यूरोनल संरचना की अखंडता और रोग प्रबंधन के विभिन्न समय पर ओएसए से जुड़े संभावित परिवर्तनों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. अध्ययन के निष्कर्ष ओएसए वाले व्यक्तियों में देखी गई संज्ञानात्मक हानि और अन्य न्यूरोलॉजिकल परिणामों के अंतर्निहित न्यूरोबायोलॉजिकल तंत्र पर प्रकाश डालते हैं. इन तंत्रों को समझना ओएसए से संबंधित जटिलताओं के प्रबंधन के लिए बेहतर नैदानिक और चिकित्सीय रणनीतियों के विकास में योगदान दे सकता है.




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