लखनऊ : रेलवे के लिए जुलाई माह बिल्कुल भी शुभ नहीं रहा है. 18 से 30 जुलाई तक देश के विभिन्न हिस्सों में आठ ट्रेन और मालगाड़ियों के डिरेल होने की घटनाएं हो चुकी हैं. इसमें आधा दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और दर्जनों की हालत गंभीर हो गई. बढ़ते रेल हादसे चिंता का सबब बन रहे हैं और इसलिए अब रेलवे प्रशासन ने ट्रेन से होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कवच सिस्टम को और तेजी से विकसित करने की तैयारी की है. अगले साल मार्च तक लखनऊ कानपुर ट्रैक पूरी तरह से ट्रेनों के लिहाज से सुरक्षित हो जाएगा. लखनऊ से कानपुर के ट्रैक पर कवच का जाल बिछ जाएगा. इससे इस ट्रैक पर दुर्घटनाओं पर नियंत्रण स्थापित हो सकेगा. सभी स्टेशनों पर डाटा केंद्र बनाने की भी तैयारी शुरू की जा रही है. पटरियों पर डिजिटल टावर भी जल्द लगने शुरू होंगे.
कवच सिस्टम लगाने की तैयारी : बढ़ती ट्रेन दुर्घटनाओं को देखते हुए उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल ने सतर्कता बरतते हुए लखनऊ कानपुर रेलखंड पर कवच सिस्टम लगाने की तैयारियां की है. इससे ट्रेनों के टकराने से मुक्ति मिल जाएगी. यात्रियों की जानमाल का नुकसान नहीं होगा. नवम्बर तक रूट के रेलवे स्टेशनों पर उपकरणों की फिटिंग कर ली जाएगी और अगले साल मार्च से पूरा ट्रैक कवच युक्त हो जाएगा. उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के डीआरएम सचिंद्र मोहन शर्मा ने बताया कि बजट में इस बार सेफ्टी पर विशेष फोकस किया जा रहा है. एक लाख आठ हजार करोड़ रुपये इस मद में मिले हैं. उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल अपने प्रमुख रेलखंडों में शामिल लखनऊ-कानपुर रेलखण्ड पर कवच सिस्टम लगा रहे हैं. रूट के रेलवे स्टेशनों पर उपकरणों की फिटिंग का काम नवम्बर तक पूर्ण हो जाएगा. उन्होंने आगे बताया कि कानपुर-सोनिक के बीच रेलवे ट्रैक पर कवच सिस्टम के तहत काम हो गया है. मानकनगर तक का काम नवम्बर तक पूरा करने का टारगेट है.
डीआरएम का कहना है कि रेलवे पटरियों पर रेडियो फ्रीक्वेंसी आईडेंटिफिकेशन (आरएफआईडी) लगाने, ट्रैक किनारे बेहतर सिग्नलिंग के लिए टावर लगाने और इंजनों पर उपकरण लगाने का काम शेष रह जाएगा. अगले साल मार्च तक इस काम के भी पूरा होने की उम्मीद है. ये कार्य पूरा होते ही ट्रैक पर ट्रेनों की सुरक्षा की गारंटी मिल जाएगी.
किस तरह काम करता है कवच : 'कवच' ऑटो ऑपरेटेड ट्रेन टक्कर सिक्योरिटी सिस्टम है. ‘शून्य दुर्घटना’ के लक्ष्य को प्राप्त करने में रेलवे की सहायता के लिए स्वदेशी रूप से डेवलप किया गया है. कवच को इस तरह से विकसित किया गया है कि यह उस स्थिति में एक ट्रेन को ऑटोमेटिक रूप से रोक देगी, जब उसे निर्धारित दूरी के अंदर उसी लाइन पर दूसरी ट्रेन के होने की जानकारी मिलेगी. इस डिजिटल सिस्टम की वजह से मानवीय त्रुटियों जिनमें रेड सिग्नल को नजरअंदाज करने या किसी अन्य खराबी पर ट्रेन खुद ब खुद ठहर जाएगी.
इस सिस्टम से लैस होता है कवच : कवच सिस्टम के तहत ट्रैक के साथ ऑप्टिकल फाइबर केबिल (ओएफसी) बिछाई जाती है. इसके अलावा ट्रैक पर हर पांच से छह किलोमीटर की दूरी पर टेलीकॉम टावर लगाए जाते हैं. रेलवे स्टेशनों पर डाटा सेंटर बनाए जाते हैं और ट्रैक पर आरएफआईडी लगाई जाती है. इंजनों पर सेफ्टी डिवाइस इंस्टॉल की जाती है. इस पूरे सिस्टम से ही पूरा कवच सिस्टम वर्क करता है.
कब-कब हुए हादसे : सिर्फ जुलाई महीने की ही बात करें तो 18 जुलाई को चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ रेल हादसा हुआ था, इसमें चार लोगों की मौत हुई थी और 31 लोग घायल हुए थे. 19 जुलाई को गुजरात के वलसाड में मालगाड़ी पटरी से उतरी थी, 20 जुलाई को यूपी के अमरोहा में मालगाड़ी के 12 कोच पटरी से उतरे थे. 21 जुलाई को राजस्थान के अलवर में मालगाड़ी के तीन कोच पटरी से उतरे थे. 21 जुलाई को ही पश्चिम बंगाल के रानाघाट में मालगाड़ी पटरी से उतरी थी. 26 जुलाई को ओडिशा के भुवनेश्वर में मालगाड़ी पटरी से उतर गई थी, 29 जुलाई को बिहार के समस्तीपुर में बिहार संपर्क क्रांति की बोगी अलग हो गई थी और 30 जुलाई को झारखंड के चक्रधरपुर में हावड़ा से मुंबई जा रही यात्री ट्रेन पटरी से उतर गई थी.
क्या कहते हैं डीआरएम : लखनऊ मंडल, उत्तर रेलवे के डीआरएम सचिंद्र मोहन शर्मा का कहना है कि ट्रेन हादसों को लेकर रेलवे फिक्रमंद है, इसलिए इस बार के बजट में सेफ्टी पर ही फोकस किया गया है. कवच सिस्टम का प्रोडक्शन और तेजी से किया जाएगा, जिससे जल्द से जल्द सभी ट्रेनें कवच से लैस हो जाएं और आमने-सामने की दुर्घटनाएं थम जाएं. कानपुर से लेकर सोनिक तक अभी ट्रैक पर काम पूरा हो गया है. मार्च तक लखनऊ तक ट्रैक कवच से लैस हो जाएगा. इसके बाद इस ट्रैक पर ट्रेन दुर्घटनाओं पर नियंत्रण स्थापित हो सकेगा. अन्य सभी ट्रैक कवच से लैस किए जाएंगे.
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