जयपुर : प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल तैयार हैं. भाजपा और कांग्रेस के साथ-साथ राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारतीय आदिवासी पार्टी भी पूरी तरह से मुस्तैद दिख रही है. चुनावी तैयारियों के बीच सभी दलों में मैराथन बैठकों के साथ ही मंथन का दौर जारी है. गौर करने वाली बात यह है कि इसी साल सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव के साथ ही बांसवाड़ा में बागीदौरा विधानसभा सीट पर भारतीय आदिवासी पार्टी ने जीत हासिल कर सत्ताधारी दल बीजेपी और निवर्तमान दल कांग्रेस से सीट छीन ली थी. राजनीतिक विश्लेषक श्याम सुंदर शर्मा के मुताबिक चुनावी हलचल प्रदेश में तेज होने के साथ ही बीजेपी और कांग्रेस के अपने-अपने दावे हैं. शर्मा मानते हैं कि सत्ताधारी दल के सभी सीटों पर जीत के दावे फिलहाल वास्तविकता से दूर हैं.
विश्लेषक की नजर से उपचुनाव : श्याम सुंदर शर्मा का मानना है कि सलूंबर सीट पर काबिज रही बीजेपी मौजूदा विधायक के निधन के बाद जीत के नजदीक है. वहीं, रामगढ़ में जुबेर खान के निधन के बाद खाली हुई सीट पिछले प्रदर्शन के आधार पर बीजेपी के काफी करीब है. रामगढ़ से जुबेर खान की पत्नी को टिकट मिलने पर कांग्रेस के लिए यह मुकाबला चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जबकि बीजेपी के लिए टिकट चयन जनाधार के नजरिए से अहम होगा. वे दस सालों के उपचुनाव के नतीजों पर प्रदर्शन के लिहाज से कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी को काफी पीछे देख रहे हैं. श्याम सुंदर शर्मा का कहना है कि चौरासी में भारतीय आदिवासी पार्टी और खींवसर में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का आधार अब भी मजबूत दिख रहा है. अगर दोनों दल इस बार के चुनाव पूर्व वाले गठबंधन को कांग्रेस के साथ कायम रखते हैं, तो उनके विजयी रथ को रोक पाना आसान नहीं होगा.
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भाजपा के लिए कई चुनौतियां : श्याम सुंदर शर्मा के अनुसार नए प्रदेशाध्यक्ष और प्रदेश प्रभारी के लिए राजस्थान में उपचुनाव की रणनीति तैयार करने के लिए ज्यादा समय नहीं है. ऐसे में जमीनी आधार को नजरअंदाज कर हो रही बयानबाजी भी बीजेपी के लिए चुनौतियां खड़ी कर रही है. मेवाड़ और वागड़ में बीजेपी को मजबूती दिखानी होगी तो खींवसर में हनुमान बेनीवाल के मुकाबले में दिख रही ज्योति मिर्धा के लिए मुश्किलों को समझना होगा. इसी तरह से देवली उनियारा में गुर्जर-मीणा वोट बैंक का सामंजस्य बैठाने के लिए किरोड़ी लाल मीणा की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाना होगा. उनका कहना है कि बीजेपी अगर मेहनत करती है तो वह तीन सीटों पर जीत के करीब नजर आते हैं, लेकिन उपचुनाव में सभी सीटों को जीत पाना फिलहाल एक मुश्किल दावा लग रहा है.
कांग्रेस में पायलट फैक्टर पर नजर : उनका कहना है कि तीन पायलट समर्थक नेताओं के सांसद बनने के बाद खाली हुई विधानसभा सीटों में दौसा में मुरारीलाल मीणा, देवली उनियारा में हरीश मीणा और झुंझुनू में बृजेन्द्र ओला के विकल्प के रूप में टिकट मिलना महत्वपूर्ण होगा. इन सीटों पर टिकटों के वितरण में सचिन पायलट की पसंद का ख्याल रखा जाएगा या नहीं, ये कहा नहीं जा सकता. इसी तरह से कांग्रेस में प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली भी रणनीतिक लिहाज से चुनावों पर काफी कुछ निर्भर करेंगे. शर्मा मानते हैं कि यह चुनाव कई नेताओं के राजनीतिक भविष्य की लकीर को तय करने वाले रहेंगे.
इस बार सात सीटों का चक्रव्यूह : राजस्थान में इस बार के विधानसभा उपचुनाव के लिए लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने नेताओं के कारण खाली होने वाली सीटों में दौसा, देवली-उनियारा, झुंझुनू, खींवसर, चौरासी शामिल हैं. इनमें तीन सीटों पर कांग्रेस तो दो पर क्षेत्रीय दल काबिज थे. खींवसर में आरएलपी की एंट्री के बाद लंबे वक्त से बीजेपी-कांग्रेस जीत की राह तलाश रही है. वागड़ की चौरासी सीट भी इसी तर्ज पर दोनों दलों के लिए चुनौती बनी हुई है. खींवसर से आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल ने सीट रिक्त की है, तो चौरासी में बीएपी ने नेता राजकुमार रोत के कारण सीट खाली हुई है. दौसा से मुरारीलाल मीणा, देवली-उनियारा से हरीश चंद्र मीणा और झुंझुनू से बृजेन्द्र ओला की जीत के बाद कांग्रेस के कब्जे में रही सीट पर वोटिंग होगी. इसी तरह बीजेपी विधायक अमृतलाल मीणा और कांग्रेस के विधायक जुबेर खान के निधन से खाली हुई सलूंबर और रामगढ़ सीट पर भी वोटिंग होनी है.
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यह रहा है उपचुनाव में 10 सालों का इतिहास : परिसीमन के बाद राजस्थान में एक दशक के दौरान अब से पहले 16 सीटों पर उपचुनाव के लिए वोटिंग हुई है. पुराने नतीजों को देखने पर साफ नजर आता है कि इन चुनावों में कांग्रेस, भाजपा पर भारी पड़ी है. क्षेत्रीय दलों का अपने-अपने क्षेत्रों में दबदबा रहा है. 2013 से अब तक हुए उपचुनाव में कांग्रेस को 10 और भाजपा को 4 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं, बीएपी और आरएलपी भी अपने प्रभुत्व को एक-एक बार साबित कर चुके हैं. इससे पहले कांग्रेस के शासनकाल के दौरान 2019 से 2022 तक विधानसभा की 9 सीटों पर उपचुनाव के लिए अलग-अलग वोट डाले गए थे. इनमें से 7 सीटों पर कांग्रेस और एक पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. कांग्रेस के खाते में मंडावा, सुजानगढ़, सरदारशहर, सहाड़ा , धरियावद और वल्लभनगर की सीट गई थी, जबकि भाजपा के खाते में राजसमंद और आरएलपी ने खींवसर सीट पर उपचुनाव जीता था. इनमें से ज्यादातर सीटें कांग्रेस के कब्जे वाली थीं. इससे पहले साल 2013 से लेकर 2018 के बीच कांग्रेस ने नसीराबाद, वैर, सूरतगढ़ और मांडलगढ़ सीट पर उपचुनाव में जीत हासिल की थी, जबकि भाजपा के खाते में धौलपुर और कोटा दक्षिण सीट की जीत नसीब हो सकी थी.
स्थगित हुए तीन चुनावों में यह नतीजा : बीते 10 साल में तीन बार ऐसा हुआ कि विधानसभा चुनाव के बीच प्रत्याशी का निधन हो गया और वोटिंग स्थगित हो गई. इन चुनावी मुकाबले में कांग्रेस ने दो दफा, तो भारतीय जनता पार्टी ने एक बार जीत हासिल की थी. साल 2014 की शुरुआत में चूरू में भाजपा, जनवरी 2019 में रामगढ़ और जनवरी 2024 में श्रीकरणपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की.