आगरा : ये मोहब्बत की निशानी ताजमहल है. जो देश और दुनिया में मशहूर है. ताजमहल से महज 300 मीटर की दूरी पर मलको गली में दुनिया के लिए 'बेनजीर' आगरा के 'नजीर' जनता के बीच कब्र में अनजान की तरह हैं. जी हां. हम बात कर रहे हैं. शायर और नज्म के 'पितामह' कहे जाने वाले मशहूर शायर नजीर अकबराबादी की. जो पैदा भले ही दिल्ली में हुए. मगर, आगरा के आंगन में उनका बचपन से लेकर बुढ़ापा बीता. बसंत पंचमी पर आज नजीर की याद जहन में फिर तरोताजा हो आई है.
दिल्ली में जन्म, आगरा में मजार : आगरा किले के किलेदार नवाब सुलतान खां की बेटी का दिल्ली के मोहम्मद शाह रंगीला से निकाह हुआ था. सन् 1735 में दिल्ली में नजीर का जन्म हुआ था. उनका असली नाम वली मोहम्मद था. नजीर अकबराबादी का ताजगंज की गलियों में बचपन बीता. उनकी रचनाओं को खूब बुलंदी मिली. कहते हैं कि, नजीर अकबराबादी को ताजमहल से इस कदर मोहब्बत थी कि, वे कभी आगरा छोडकर नहीं गए. वे ताजमहल के साए में बडे़ हुए और यहां पर ही सन् 1830 में सुपुर्द के खाक किए गए.
बसंत पंचमी पर लगता था मेला : ताजगंज की मलको गली में मशहूर शायर नजीर अकबराबादी की मजार के पास ही उनके परिवार की मजार बनी है. उनकी क़ब्र पर अब आवारा जानवर घूमते रहते हैं, चारों तरफ गंदगी है. कोई भी साहित्यकार, कलाप्रेमी या लेखक इस तरफ ध्यान नहीं देता. यहां तक कि इसे संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया गया. हर साल बसंत पंचमी पर लगने वाला बसंत मेला, इस साल यहां पर नहीं लग रहा है.
सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल : बज्म-ए-नजीर के अध्यक्ष रहे स्व. उमर तैमूरी के बेटे आरिफ तैमूरी बताते हैं कि मीर, इब्ने इंशा, मुसहफी वगैरह नजीर अकबराबादी के समकालीन थे. नजीर ने हर विषय पर लिखा. सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल के तौर पर हर साल बसंत पर उनकी याद में मेला लगाया जाता था. मुशायरा होता था. जिसमें राष्ट्रीय स्तर के शायर शिरकत करते थे. लेकिन, अब स्थानीय लोगों की अनदेखी और कार्यक्रम में आए महमानों से अभद्रता करने की वजह से बसंत का मुशायरा भी यहां पर नहीं होगा. बुधवार सुबह नजीर अकबराबादी की कब्र पर चादरपोशी की जाएगी. अब ना मेला लगेगा और ना कोई कार्यक्रम यहां पर होगा.
जन सामान्य पर लिखी नज्में : नजीर अकबराबादी ने पूरी की पूरी शायरी को नई दिशा दी. उन्होंने अपनी नज्म और गजल से नए प्रतिमान गढ़े. नजीर ने फेरी लगाने वाले से लेकर भीख मांगने वाले के लिए नज़्म और शेर लिखे. उनके दौर में तमाम ककड़ी वाले नजीर की लिखे गीत को कुछ इस तरह से गाकर सामान बेचा करते थे.
क्या प्यारी-प्यारी मीठी और पतली पतलियां हैं.
गन्ने की पोरियां हैं, रेशम की तकलियां हैं.
फरहाद की निगाहें, शीरीं की हसलियां हैं.
मजनूं की सर्द आहें, लैला की उंगलियां हैं.
क्या खूब नर्मो नाजुक, इस आगरे की ककड़ी.
और जिसमें खास काफिर, इस्कन्दरे की ककड़ी.
श्री कृष्ण, राधा और मीरा पर लिखी थी नज्म : नजीर ने अपनी शायरी के लिए अपने आसपास बिखरी हुई जिंदगी से विषय चुने. उन्होंने होली, दिवाली, राखी, शब-ए-बारात, ईद, पतंगबाजी, कबूतरबाजी, बरसात, पशु-पक्षियों, फलों से लेकर आटा-दाल समेत इस तरह के कई विषयों पर नज़्म और गजलें लिखीं. उनकी शायरी में हिंदू मुस्लिम एकता का भी परिचय दिया. उन्होंने श्री कृष्ण, राधा, मीरा और मुस्लिम त्योहारों के साथ हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों पर भी कई नज्में लिखीं. जिसमें एक नज्म माखन चोर कृष्ण के लिए लिखी, जो ...
' ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन.
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन.
यारों सुनो यह दधि के लुटैया का बालपन.
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन.
मोहन सरूप निरत करैया का बालपन.
बन बन के ग्वाल गौए चरैया का बालपन.
नजीर की नज्में लहकतीं
'गुलजार खिले हो परियों के और मजलिश की तैयारी हो.
कपड़ों पर रंग के छीटों से खुशरंग अजब गुलकारी हो.
मुंह लाल, गुलाबी आंखें हों और हाथों में पिचकारी हो.
उस रंग भरी पिचकारी को, अंगिया पर तककर मारी हो.
सीनों से रंग ढलकते हों, तब देख बहारें होली की.
सौंदर्यीकरण किया, सफाई करवाना भूले : आरिफ तैमूरी का कहना है कि, बीते साल स्मार्ट सिटी में मजार का सौंदर्यीकरण कराया गया था. यहां पर साफ़ सफाई नहीं होती है. जिससे मजार के आसपास कूड़े और आवारा जानवरों का कब्जा रहता है. आज उनकी मजार पर असमाजिक तत्वों का डेरा रहता है.
नजीर की गजल सुनकर मीर ने दी थी शाबाशी : बता दें कि, सन् 1770 में मशहूर शायर मीर तकी मीर आगरा आए थे. मीर तकी मीर ने नजीर की गजल पर उन्हें शाबाशी दी थी. नजीर की सबसे प्रमुख प्रस्तुति बंजारा नामा बताई जाती है. उन्होंने करीब दो लाख रचनाएं लिखीं. जिनमें से अधिकतर रचनाएं नष्ट हो गईं. अब सिर्फ 6000 रचनाएं बची हैं. जिनमें करीब 600 गजलें शामिल हैं.
हिंदू मुस्लिम दंगों पर यहीं से गया शांति का पैगाम : बता दें कि, करीब 100 साल पहले आगरा में हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए थे. तब आगरा में नजीर अकबराबादी की मजार से एक जुलूस निकाला गया था. जिसमें देश और दुनिया को शांति का पैगाम दिया था.
प्रमुख कृतियां : नज़ीर ग्रन्थावली, नज़ीर ग्रन्थावली-2, समधिन, ऊमस, दिवाली, ईद उल फ़ितूर, रीछ का बच्चा, बचपन समेत अन्य शामिल हैं.
स्मारक बनाया जाए, जिससे जानें युवा : मोहम्मद असलम कहते हैं कि, इस बार बसंत मेला नहीं लग रहा है. ये सही नहीं है. पहले यहां पर शायर आते थे. अच्छा लगता था. झूले लगते थे. चौधरी बुरहान कुरैशी ने बताया कि, यहां पर हालात बदहाल हैं. साफ सफाई नहीं हो रही है. नजीर के बारे में युवा जानते नहीं हैं. क्योंकि, यहां पर कुछ नहीं लिखा है. ना कोई स्मारक है. दिनेश माहौर ने बताया कि, यहां पर कार्यक्रम होता था. बसंत क्या है. इस बारे में अब आगे आने वाली कैसे समझेगी. इसलिए, यहां पर बसंत उत्सव के कार्यक्रम हों.
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