जोधपुर. देश में हर साल चूहों की वजह से फसलों और अन्न भंडारण को काफी नुकसान होता है. इस नुकसान को चूहों पर नियंत्रित कर कम किया जा सकता है, लेकिन रोकना संभव नहीं है. चूहों पर नियंत्रण का जिम्मा जोधपुर काजरी के पास है. काजरी में अखिल भारतीय कशेरूकी नाशीजीव प्रबंधन नेटवर्क परियोजना के तहत 1977 से इस पर शोध और अध्ययन चल रहा है. इसी परियोजना के अधीन ही देश भर में नौ अलग-अलग केंद्र भी हैं, जहां पर शोध के आधार पर हर वर्ष अलग-अलग क्षेत्रवार चूहों से फसलों को बचाने के लिए किसानों के लिए एडवाइजरी जारी होती है, जिससे फसलों को कम से कम नुकसान पहुंचे. इसके लिए केंद्र की टीमें लगातार देश के हर हिस्से का दौरा करती रहती हैं. अब इस परियोजा के तहत चिड़िया, नील गाय, सुअर और बंदर को भी शामिल किया गया है, जिनसे फसलों को नुकसान हो रहा है, उन पर काम चल रहा है.
तेज जहर और धीमा जहर कारगर : काजरी में चल रही इस परियोजना के समन्वयक विपिन चौधरी ने बताया कि चूहों से निजात पाने के लिए इनको मारना पड़ता है. इसके लिए देश में तेज जहर और धीमे जहर का उपयोग होता है. तेज जहर के रूप में जिंक फॉस्फेट और धीमा जहर के रूप में ब्रोमोडाइन का उपयेाग होता है. नए जहर की खोज चल रही है, जिसका उपयोग किसानों को सावधानी पूर्वक चुग्गे के साथ चूहों के बिलों में डालना सिखाया जाता है. इस दौरान उनको खुद की सुरक्षा के बारे में बताया जाता है.
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मानव की तरह तेज मस्तिष्क : विपिन चौधरी ने बताया कि चूहे स्तनधारी जीव हैं. इनका मस्तिष्क मानव के समान है. यह इतने तेज होते हैं कि नियंत्रण की कवायद का पता चलते ही यह जगह बदल लेते हैं. इसका संदेश चूहे अपने ग्रुप में भी देते हैं. जैसे जब कोई चूहा तेज जहर का एक-दो दाना ही खाता है और वह बच जाता है, तो दुबारा उस दाने की तरफ नहीं जाता. दाना खतरनाक है इसका संदेश भी चूहा दूसरे चूहों को दे देता है. ऐसी स्थिति में किसानों को फिर धीमा जहर का उपयोग करना होता है.
हर क्षेत्र में अलग-अलग नुकसान : दुनिया में चूहों की ढाई हजार प्रजातियां पाई जाती हैं. इनमें भारत में 100 से अधिक हैं. इनमें से 17-18 प्रजाति चूहों की ऐसी है, जो फसलों को नुकसान पहुंचाती है. राजस्थान में रतोड़ प्रजाति का चूहा मिलता है, जो रात को ही बाहर निकलता है. ऐसे चूहे भी हैं, जिनको पानी के पास रहना पसंद होता है. वे गन्ने और चावल की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. नॉर्थ ईस्ट में बांस को नुकसान पहुंचाते हैं. हर स्थिति में इनकी गतिविधियां देख कर इन पर नियंत्रण और निजात पाने पर शोध होता है.
रेटरी में होता है अध्ययन : काजरी के केंद्र में एक रेटरी बनाई गई है, जिसमें डेढ़ मीटर तक मिट्टी भर कर उसमें चूहे छोड़े जाते हैं. उनको खेत जैसा माहौल दिया जाता है. रेटरी में नाइट विजन कैमरे लगे हैं, जो चूहों की हर गतिविधियों को रिकॉर्ड करते हैं. इनके आधार पर यह पता लगाया जाता है कि चूहा कितना गहरा बिल खोदता है, उसकी प्रवृति क्या है ? चौधरी ने बताया कि हाल ही उन्होंने आंध्रप्रदेश के मातेरू के खेत में देखा कि चूहों ने अपने बिल में अलग अनाज स्टोर करने की जगह बना रखी है, जहां पर चार किलो तक अनाज मिला. छोटी घूस प्रजाति का एक चूहा है, जो राजस्थान में नहीं था, लेकिन परिवहन के माध्यम से यहां पहुंचा है. इसके दांत हर दिन बढ़ते हैं, जिन्हें घिसने के लिए यह दांत रगड़ता रहता है.
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समझदार प्राणी है चूहा : चौधरी ने बताया कि काजरी व अधीनस्थ केंद्रों के अध्ययन में यह भी सामने आया है कि चूहा इतना समझदार है कि वह अपने बिल के अंदर ही अलग-अलग सेपरेट चैंबरनुमा बिल बनाता है. एक में वह रहते हैं, जबकि दूसरे में ब्रीडिंग करते हैं. एक चैंबर में बच्चों को रखते हैं और अलग भोजन स्टोरेज करते हैं. इसलिए हम किसानों को सलाह देते हैं कि चूहों का बिल पूरा फोड़ें, जिससे चूहा वहां वापस बिल ना बना सके. कई बार किसान उपर से बिल फोड़ देते हैं, जिसके कारण चूहे फिर पनप जाते हैं.
किसानों को यह प्रमुख सलाह : चूहों से फसल को बचाने के लिए बताया जाता है कि एक फसल लेने के बाद खेत को पूरा साफ करें. अगर फसल का कचरा छोड़ा जाता है, तो वहां चूहे पनप जाते हैं. इसी तरह से खेत की मेड़ ज्यादा उंची नहीं बनानी चाहिए. उंची मेड़ बनाने से कई चूहें उन पर तिनकों को घोसला बनाकर आराम से रह सकते हैं. नीची मेड़ होती है, तो चूहे वहां रुक नहीं पाते हैं. इसके अलावा खेत में जुताई भी गहरी करनी चाहिए.