मंडला। जंगल में जंगली जानवरों का घायल होना कोई नई बात नहीं है लेकिन बात जब टाइगर की आती है तो वन्यजीव प्रेमियों का चिंतित होना स्वाभाविक है. पिछले दिनों कान्हा नेशनल पार्क में ऐसे ही 4 से 5 घायल बाघ नजर आए हैं. ऐसे बाघों की तस्वीरें भी सामने आई हैं. एक बाघ के गले में कांटा चुभा हुआ है तो एक बाघ के माथे पर निशान हैं तो वहीं एक बाघ लंगड़ाकर चल रहा है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि पार्क प्रबंधन क्या घायल बाघों की मॉनिटरिंग नहीं कर रहा है.
कान्हा नेशनल पार्क में कई बाघ घायल
कान्हा नेशनल पार्क में 4 से 5 बाघ घायल हालत में घूम रहे हैं. किसली जोन इंद्री रोड में एक बाघ नजर आया है जिसके माथे में गंभीव घाव का निशान है, इस बाघ का एक दांत भी टूटा हुआ है. इसके अलावा कान्हा जोन में नीलम (टी-65) को साही के कांटे गले में लगे हुए हैं. पिछले एक पखवाड़े में 2 बार नीलम (टी-65) को साही के कांटे लग चुके हैं. इसके अलावा यहां एक शावक भी लंगड़ाकर चल रहा है उसके पंजे में चोट के निशान हैं. यहां बाघ और शावक घायल अवस्था में घूम रहे हैं.
पार्क प्रबंधन के मैदानी अमले पर सवाल
क्या वाकई कान्हा नेशनल पार्क में बाघों की सुरक्षा में लापरवाही की जा रही है. क्या पार्क प्रबंधन का मैदानी अमला और अधिकारी बाघों की मॉनिटरिंग नहीं कर रहे हैं. क्या यही वजह है कि कान्हा में बाघ घायल नजर आ रहे हैं और उन्हें उपचार नहीं मिल पा रहा है. जिसके चलते कान्हा में बाघों की सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं. हालांकि कान्हा नेशनल पार्क के उपसंचालक इन सभी बातों को सिरे से खारिज करते हुए नजर आते हैं.
'सभी घायल बाघों की हो रही निगरानी'
कान्हा नेशनल पार्क के उपसंचालक पुनीत गोयल का कहना है कि "किसली में एक बाघ है जिसके सिर पर चोट ऑबजर्व की गई है. अभी वह चोट नेचुरली हील हो रही है इस कारण उसमें उसे छेड़छाड़ नहीं करते. उसके मूवमेंट में कोई दिक्कत नहीं है और उसकी सतत निगरानी की जा रही है. ये नेशनल पार्क है और जंगल में जानवर एक दूसरे का शिकार करते हैं और इस दौरान उनका चोटिल होना सहज बात है साथ ही एक दूसरे से लड़ाई में भी चोटिल होते हैं. ऐसे कई प्रकरण सामने आते रहते हैं. पार्क प्रबंधन ऐसे सभी बाघों की मॉनिटरिंग कर रहा है."
ये भी पढ़ें: कान्हा टाइगर रिजर्व में बाघ टी-67 की मौत, एक हफ्ते के अंदर खोया दूसरा बाघ MP कान्हा टाइगर रिजर्व में एक और बाघ ने दम तोड़ा, मौत की वजह वर्चस्व की लड़ाई या कुछ और |
'नेचुरली हीलिंग पावर होती है हाई'
उपसंचालक पुनीत गोयल ने बताया कि "वन्य प्राणियों की विशेषता होती है कि उनकी नेचुरली हीलिंग पावर बहुत हाई होती है. ऐसे में कोशिश की जाती है कि उस चोट को नेचुरली हील होने दिया जाए और यदि ऐसा नहीं होता है तो फिर उसका ट्रीटमेंट करते हैं लेकिन पहले पूरा मौका देते हैं कि वह चोट अपने आप ठीक हो. चूंकि वन्य प्राणी प्राकृतिक वातावरण में रहते हैं ऐसे में ह्यूमन इंटरफेरेंस कम से कम होना चाहिए."