देहरादूनः पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण हमेशा एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है. जिसकी मुख्य वजह उत्तराखंड का करीब 71 फीसदी वन क्षेत्र है. ऐसे में वनों के संरक्षण से ही पर्यावरण का संरक्षण किया जा सकता है. पर्यावरण संरक्षण को लेकर हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. इस दिन सरकार वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के साथ ही जल संरक्षण पर भी जोर देती है. ताकि लोग बढ़-चढ़कर वृक्षारोपण और जल संचयन के प्रति संकल्प लें, जिससे पर्यावरण का संरक्षण किया जा सके.
उत्तराखंड में समय-समय पर पर्यावरण संरक्षण की मांग उठती रही है. इसके मुख्य कारण, विकास कार्यों की वजह से वनों का कम होना, वनाग्नि, आपदा और वन भूमि पर हो रहे अतिक्रमण है. हर साल उत्तराखंड की जंगलों में आगजनी की हजारों घटनाएं रिकॉर्ड की जाती है. जिस कारण हजारों हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो जाते हैं. जिसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ता है.
वनाग्नि से पर्यावरण को नुकसान: वन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, पिछले 7 महीने में प्रदेश भर में 1,198 वनाग्नि की घटनाएं रिकॉर्ड की गई. जिसमें 1630.72 हेक्टेयर वन क्षेत्र जलकर राख हो गया है. साल 2023 में 499 वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की गई थी. जिसमें 588.09 हेक्टेयर वन क्षेत्र जलकर राख हो गया था. इसी क्रम में साल 2022 में 2042 वनाग्नि की घटनाएं जिसमें 3216.57 हेक्टेयर वन क्षेत्र जल गया था. ऐसे में साफ है कि वनाग्नि की घटनाओं पर लगाम नहीं लगाया गया तो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए गए कार्य व्यर्थ हो जाएंगे.
आपदा और अतिक्रमण से वनाग्नि से पर्यावरण को नुकसान: वनाग्नि के साथ ही हर साल उत्तराखंड में आने वाली आपदा की वजह से भी वन भूमि को बड़ा नुकसान पहुंचता है. हर साल सैकड़ों हेक्टेयर वन भूमि जमींदोज हो जाती है. हालांकि, आपदा पर लगाम तो नहीं लगाया जा सकता लेकिन वन भूमि को हो रहे नुकसान को जरूर कम किया जा सकता है. इसके अलावा वन भूमि पर होने वाले अतिक्रमण का मामला भी अमूमन देखने को मिलता है. पिछले साल मुख्यमंत्री धामी के निर्देश पर वन भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने के लिए बृहद स्तर पर अभियान चलाया गया था. लेकिन अभी भी हजारों हेक्टेयर वन भूमि अतिक्रमण की जग में है.
अतिक्रमण की जद में वनभूमि: वन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, अभी भी 10458.48 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि अतिक्रमण की जद में है, जिसे हटाना विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. पिछले साल सीएम धामी के निर्देश पर वन भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने के लिए अभियान शुरू किया गया था. इस अभियान के तहत 1355.99 हेक्टेयर वन भूमि ही अतिक्रमण मुक्त कराई जा सकी है. जबकि हजारों हेक्टेयर भूमि अभी भी अतिक्रमण की जद में है. वन विभाग के पश्चिमी कुमाऊं वृत में सबसे अधिक 9317.67 हेक्टेयर वन भूमि अतिक्रमण की जद में है. ऐसे में वन भूमि को अतिक्रमण मुक्त किए जाने को लेकर वन विभाग नए सिरे से रणनीति बनाने पर जोर दे रहा है. ताकि वन संपदा का संरक्षण किया जा सके.
उत्तराखंड गठन के बाद से सितंबर 2023 तक 43,806 हेक्टेयर वन भूमि को करीब 3,903 विकास कार्यों के लिए ट्रांसफर किया जा चुका है. जिसमें सड़क, पेयजल, सिंचाई, जल विद्युत परियोजना, खनन समेत अन्य विकास कार्य के लिए वन भूमि के ट्रांसफर का मामला शामिल है. उत्तराखंड राज्य के भौगोलिक क्षेत्रफल की बात करें तो उत्तराखंड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किलोमीटर है. जिसमें 46,035 वर्ग किलोमीटर पर्वतीय क्षेत्र और 7,448 वर्ग किलोमीटर मैदानी क्षेत्र है. कुल पर्वतीय क्षेत्र 46,035 वर्ग किलोमीटर में से करीब 38 हजार वर्ग किलोमीटर का हिस्सा वन क्षेत्र है.
43 हजार से ज्यादा वन भूमि ट्रांसफर: वन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, प्रदेश के करीब 43,806 हेक्टेयर वन भूमि को 3,903 विकास कार्यों के लिए ट्रांसफर किया गया है. जिसमें से सबसे अधिक 9264.5583 हेक्टेयर वन भूमि को सड़कों के 2,338 मामले में ट्रांसफर किया गया है. इसके अलावा, पेयजल से जुड़े 662 मामले में 165.05 हेक्टेयर, सिंचाई से जुड़े 71 मामले में 70.2529 हेक्टेयर, पारेषण लाइन से जुड़े 118 मामले में 2811.9535 हेक्टेयर, जल विद्युत परियोजना के 80 मामले में 2250.0790 हेक्टेयर, खनन से जुड़े 20 मामले में 8661.0080 हेक्टेयर इसके अलावा स्कूल, कार्यालय, खेल, टावर समेत अन्य 614 मामले से जुड़े कार्यों के लिए 20553.1215 हेक्टेयर वन भूमि ट्रांसफर की जा चुकी है.
वहीं, इस पूरे मामले पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि पर्यावरण के संरक्षण के लिए जंगलों को बचाना हम सभी का दायित्व है. जंगलों को बचाने के लिए सचेत रहने की जरूरत है. ऐसे में हम सभी सचेत होकर इस दिशा में काम करेंगे.
विकास कार्यों समेत अन्य वजहों से कम हो रहे जंगल के सवाल पर कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि विकास के चलते वन भूमि के ट्रांसफर की घटनाएं बढ़ी है. लेकिन उत्तराखंड के लोग पर्यावरण दिवस और हरेला पर्व पर अधिक वृक्षारोपण करते हैं. ऐसे में उनका मानना है कि पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए विकास होना चाहिए. कैबिनेट मंत्री ने कहा कि विकास के साथ ही पर्यावरण भी जरूरी है. लिहाजा, दोनों में संतुलन बनाकर कार्य करना चाहिए.
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